नई दिल्ली। इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress) के नए अध्यक्ष की तलाश जहां से शुरू हुई थी, घूम-फिरकर वहीं पहुंच ठिठक गई। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से हुई पार्टी कार्यसमित (CWC) की हंगामेदार बैठक में आरोप-प्रत्यारोप के बीच कोई फैसला नहीं हो सका। अंततः तय हुआ कि पार्टी की कमान सीधे तौर पर गांधी परिवार के पास ही रहेगी। यानी सोनिया गांधी ही फिलहाल एक साल के लिए और अंतरिम अध्यक्ष बनी रहेंगी।
कांग्रेस में नेतृत्व संकट के बीच आज सोमवार को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में नेतृत्व के सवाल पर खुलकर बात हुई। बैठक के दौरान पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा था कि वह अब आगे पार्टी अध्यक्ष नहीं बने रहना चाहती हैं। इसके साथ ही उन्होंने पार्टी को नया अध्यक्ष चुनने के लिए भी कहा था. हालांकि, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, एके एंटनी समेत कई नेताओं ने सोनिया गांधी से पद पर बने रहने की अपील की थी। कई अन्य नेताओं ने भी उनसे पद पर बने रहने की अपील की थी.
जानकारी के मुताबिक CWC की येहबैठक सोनिया गांधी को करीब 2 हफ्ते पहले लिखी गई एक चिट्ठी की प्रतिक्रिया के तौर पर बुलाई गई थी। कम से कम 23 नेताओं जिनमें CWC के सदस्य, UPA सरकार में मंत्री रहे नेता और सांसदों ने सोनिया गांधी को संगठन के मसले पर चिट्ठी लिखी थी। चिट्ठी में सशक्त केंद्रीय नेतृत्व के साथ पार्टी को चलाने की सही रणनीति पर जोर दिया गया था। इसमें कहा गया था कि नेतृत्व ऐसा हो जो सक्रिय हो और जमीन पर काम करता दिखे।
आपको बता दें कि आज कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई बैठक में जो कुछ हुआ वह कांग्रेस जैसी पार्टी के लिए हैरतअंगेज था। कई बार हालात तनवपूर्ण हो गए और जमकर हंगामा हुआ। दरअसल, 23 वरिष्ठ कांग्रेसियों की नेतृत्व में परिवर्तन को लेकर सोनिया गांधी को लिखी चिट्ठी के मामले ने तूल पकड़ लिया। सोनिया गांधी ने चिट्ठी को वजह बताते हुए इस्तीफे की पेशकश करने के साथ ही अन्य नेताओं से नया पार्टी अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए कहा। इस पर मनमोहन सिंह और एके एंटनी ने हस्तक्षेप किया। राहुल गांधी की बारी आते-आते माहौल गर्मा चुका था। राहुल गांधी ने इन 23 नेताओं पर भाजपा के साथ मिलकर चिट्ठी लिखने का आरोप लगाया जिससे बात और बिगड़ गई।
सोनिया गांधी ने अपना पद (कार्यकारी अध्यक्ष) छोड़ने की पेशकश करते हुए गुलाम नबी आजाद और अन्य नेताओं के पत्र का हवाला दिया। सोनिया ने अन्य नेताओं से नया पार्टी अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए कहा और केसी वेणुगोपाल को एक पत्र सौंपकर असंतुष्ट नेताओं की तरफ से भेजे गए पत्रों का जवाब दिया। सोनिया की पेशकश पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उनसे पद पर बने रहने का आग्रह किया। मनमोहन सिंह और एके एंटनी ने उन नेताओं की आलोचना की जिन्होंने नेतृत्व में बदलाव की मांग करते हुए पत्र लिखा था।
इसी दौरान कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने सवाल किया, “सोनिया गांधी के अस्पताल में भर्ती होने के समय ही पार्टी नेतृत्व को लेकर पत्र क्यों भेजा गया था?” उन्होंने कहा, “पार्टी नेतृत्व के बारे में सोनिया गांधी को पत्र उस समय लिखा गया था जब राजस्थान में कांग्रेस सरकार संकट का सामना कर रही थी। पत्र में जो लिखा गया था उस पर चर्चा करने का सही स्थान सीडब्ल्यूसी की बैठक है, मीडिया नहीं।” उन्होंने आरोप लगाया कि यह पत्र भाजपा के साथ मिलीभगत में लिखा गया।
प्रियंका गांधी वाड्रा ने राहुल गांधी की बात से पूरी तरह सहमति जताई। उन्होंने भाई के सुर में सुर मिलाते हुए चिट्ठी लिखने वाले कांग्रेसियों की आलोचना की। उन्होंने अप्रत्यक्ष तौर उन नेताओं को दोहरे चरित्र का बताया।
भाजपा से मिलीभगत के आरोप पर गुलाम नबी आजाद चिढ़ गए। वह राज्यसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता हैं। उनकी अगुवाई में ही वरिष्ठ कांग्रेसियों ने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी थी। आजाद ने कहा, “अगर भाजपा से सांठ-गांठ के आरोप सिद्ध होते हैं तो मैं त्यागपत्र दे दूंगा।”
राहुल गांधी के भाजपा के साथ मिलीभगत का आरोप लगाने के बाद कपिल सिब्बल ने ट्वीट किया, “राजस्थान हाईकोर्ट में कांग्रेस पार्टी को सफलतापूर्वक डिफेंड किया। मणिपुर में भाजपा सरकार गिराने में पार्टी का बचाव किया। पिछले 30 साल में किसी मुद्दे पर भाजपा के पक्ष में कोई बयान नहीं दिया लेकिन फिर भी हम ‘बीजेपी के साथ मिलीभगत कर रहे हैं।’” बाद में उन्होंने इस ट्वीट डिलीट को कर दिया और कहा कि राहुल गांधी ने उन्हें खुद फोन करके कहा कि उन्होंने ऐसा नहीं कहा था।
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