बबलू चन्द्रा,  नैनीताल। नदी-गधेरों में नहा-धोकर गुलाबी ताजी मूलियों की रंगत और भी निखर जाती है¡ सेहत के लिए हरे पत्तों की भाजी हर किसी को भाती है। सिलबट्टे पर पिसा हरा पुदीना, धनिया और लहसुन-मिर्च का नमक हो, साथ में मीठी मूली की भी बट्टे से दबा कर कुटाई या फिर मूली का थेचवा हो, नमक के साथ सलाद हो, हरे पत्तों की भुज्जी हो या फिर दोनों की सब्जी, तरकश भरे स्वाद के साथ दोंनो ही सेहत के लिए बेमिसाल हैं।

नैनीताल से चंद किमी दूर हल्द्वानी-नैनीताल राजमार्ग पर रिया और नैना गांवों की मूलियां बरबस ही राहगीरों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती हैं। ज्योलीकोट के पास राजमार्ग पर आजकल जगह-जगह लाल मूली की दुकानें सजी नजर आती हैं। इनके मन मोह लेने वाले आकार और रंग का राज सिर्फ और सिर्फ इनको उगाने वाले ग्रामीणों की अथक मेहनत है। अपन खून रोज जोको (जोंक) को देकर पसीने से इन्हें सींचने वाले ग्रामीण हर साल मूली सहित अन्य सब्जियों की अच्छी पैदावार करते है। इस फसल के तैयार होने के बाद ग्रामीणों को दोगुनी मेहनत करनी पड़ती है। अलसुबह खेतो से निकालने के बाद इन्हें नदी किनार या पानी वाले अन्य तटों तक पहुंचाया जाता है, फिर रगड़-रगड़ कर बारीकी से धोया जाता है, ख़राब पत्तों को काटा-छांटा जाता है। सीधे तौर पर बाजार या मंडी उपलब्ध न हो पाना एक ब़ड़ी समस्या है, विशेषकर रिया गांव जहां से एक किमी की खड़ी चढाई पर पीठ पर मूली के साथ ही अन्य सब्जियों को ढोकर सड़क पर पहुंचाया जाता है। मंडी तक पहुंचते-पहुंचते वह दाम नहीं मिल पाता जिससे खेतीबाड़ी पर हुआ खर्च, मंडी तक पहुंचाने खर्च और अपनी मेहनत की भरपाई कर सके।

इस बारे में बात करने पर ग्रमीण कहते हैं कि हमारा नाम जानकर क्या करेंगे साहब, बस हमारी उपज को मंडी तक पहुंचाने का इंतजाम हो जाए, हमें किसी से और कुछ नहीं चाहिए। जाहिर है कि यहां भी ग्रामीणों की सबसे बड़ी समस्या वही है जो पूरे उत्तराखंड में पर्वातीय क्षेत्र के किसानों की है। और यह समस्या है कृषि और फलों की उपज का समय पर मंडी नहीं पहुंच पाना जिसकी वजह से काफी सब्जी और फल बर्बाद हो जाते हैं।

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