नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में अग्रिम जमानत के प्रावधान वाले विधेयक को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंजूरी दे दी है। गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि आपातकाल के दौरान तत्कालीन अविभाजित उत्तर प्रदेश में अग्रिम जमानत देने वाले कानून को हटा दिया गया था। राष्ट्रपति की अनुमति के बाद इसे दोबारा लागू किया जा सकेगा। इस बिल के तहत उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में सीआरपीसी की धारा 438 के तहत संशोधन किया जाएगा।

अधिकारियो ने बताया कि राष्ट्रपति ने सोमवार को कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर बिल (2018) को मंजूरी दी। गौरतलब है कि देश में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड ही ऐसे दो राज्य हैं जहां अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं है। उत्तराखंड कभी अभाजित उत्तर प्रदेश का हिस्सा हुआ करता था।  चार दशकों बाद राष्ट्रपति की अनुमति के बाद इस कानून को दोबारा लागू करने की प्रक्रिया पर काम किया जा सकेगा।  

संशोधित कानून के  अनुसार अग्रिम जमानत की सुनवाई के दौरान आरोपी के मौजूद रहने की अनिवार्यता खत्म हो जाएगी। नए कानून के तहत अदालत के पास अग्रिम जमानत देने के लिए कुछ अनिवार्य शर्तें रखने का अधिकार होगा। गंभीर अपराध के मामलों में अदालत चाहे तो अग्रिम जमानत देने से इनकार भी कर सकती है। जिन मामलों में दोषी को फांसी की सजा मिली हो या जो मामले गैंग्सटर एक्ट के तहत दर्ज हों, उनमें अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं होगा।

उत्तर प्रदेश में राज्य विधि आयोग ने वर्ष 2009 में भी संशोधित बिल को दोबारा लागू करने की सिफारिश की थी। इसके बाद 2010 में मायावती की सरकार ने बिल पास कर इसे केंद्र के अनुमोदन के लिए भेजा था लेकिन मामला ठंडे बस्ते में चला गया। बाद में केंद्र सरकार की तरफ से इसे यह कह कर वापस भेज दिया गया कि इसमें अभी कुछ बदलावों की जरूरत है। 

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