याकूब मेमन की फांसी बरकरार, राष्ट्रपति ने भी खारिज की दया याचिका

नयी दिल्ली, 29 जुलाई।  1993 के मुंबई बम विस्फोट मामले में मौत की सजा पाने वाले याकूब अब्दुल रजाक मेमन की दया याचिका राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने खारिज कर दी।
सूत्रों ने बताया कि याकूब मेमन ने आज सुबह राष्ट्रपति को दया याचिका भेजी थी। राष्ट्रपति ने गृहमंत्रालय से विचार विमर्श के बाद दया याचिका खारिज की। गृह मंत्रालय ने कहा, याचिका ने कुछ नया नहीं था। सुप्रीम कोर्ट ने आज (बुधवार) याकूब मेमन की याचिका को खारिज कर दिया और उसकी फांसी की सजा को बरकरार रखा था।

वहीं, मेमन की क्‍यूरेटिव पेटिशन पर दोबारा सुनवाई के लिए भी शीर्ष कोर्ट ने खारिज कर दिया। इस याचिका पर अब दोबारा सुनवाई नहीं होगी। शीर्ष कोर्ट ने अपनी टिप्‍पणी में कहा कि डेथ वारंट को सही बताते हुए कहा कि याकूब को कल ही फांसी होगी। अब गुरुवार सुबह सात बजे नागपुर जेल में मेमन को फांसी दी जाएगी।  उधर, महाराष्‍ट्र के राज्‍यपाल विद्यासागर राव ने भी याकूब की दया याचिका को आज खारिज कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट में आज तीन जजों की पीठ ने याकूब मेमन की उस याचिका पर सुनवाई की, जिसमें मेमन ने 30 जुलाई को निर्धारित अपनी फांसी पर रोक लगाने का आग्रह (क्‍यूरेटिव पेटीशन) किया था। कोर्ट में मेमन की अर्जी पर दोनों पक्षों की बहस पूरी होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्‍यूरेटिव पेटिशन पर तीनों जजों का फैसला सही था। इस याचिका को लेकर सभी कानूनी कार्यवाही सही तरीके से पूरी की गई। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्‍पणी में कहा कि टाडा कोर्ट का डेथ वारंट का फैसला सही है।

सुप्रीम कोर्ट ने याकूब रजाक मेमन की 1993 के मुंबई बम विस्फोट मामले में कल फांसी के फैसले पर अमल के खिलाफ याचिका खारिज की। न्यायालय ने कहा कि मौत की सजा पर अमल का फरमान सही है। न्यायालय को टाडा अदालत की ओर से जारी मौत की सजा पर अमल के वारंट में कोई खामी नहीं मिली।

मंगलवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की पीठ ने इस याचिका पर खंडित निर्णय दिया, जिससे मेमन की फांसी पर पेंच फंस गया था। मेमन की किस्मत पर मंगलवार को उस समय अनिश्चितता पैदा हो गई जब उच्चतम न्यायालय ने उसकी किस्मत पर फैसले के लिए तीन न्यायाधीशों की पीठ का गठन कर दिया। इससे पहले दो न्यायाधीशों की पीठ 30 जुलाई को प्रस्तावित सजा पर अमल पर रोक की मांग वाली मेमन की याचिका पर बंट गई। इस विषय पर न्यायमूर्ति एआर दवे और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ के बीच असहमति के बीच, यह मामला प्रधान न्यायाधीश एचएल दत्तू को भेजा गया जिन्होंने मेमन की किस्मत का फैसला करने के लिए न्यायमूर्ति दीपक मिश्र, न्यायमूर्ति प्रफुल्ल सी पंत और न्यायमूर्ति अमिताव राय की बड़ी पीठ का गठन किया।

बता दें कि मेमन मुंबई विस्फोट मामले में मौत की सजा पाने वाला एकमात्र दोषी है जो गुरुवार को को 53 वर्ष का होने वाला है। नई पीठ ने आज इस बात पर सुनवाई की कि 30 अप्रैल को मुंबई की टाडा अदालत की ओर से जारी मौत वारंट पर रोक लगाई जाए या नहीं। मेमन ने दावा किया था कि अदालत के सामने सभी कानूनी उपचार खत्म होने से पहले ही वारंट जारी कर दिया गया। न्यायमूर्ति एआर दवे ने मौत के वारंट पर रोक लगाये बगैर उसकी याचिका खारिज कर दी, वहीं न्यायमूर्ति कुरियन की राय अलग रही और उन्होंने रोक का समर्थन किया।

दोनों न्यायाधीशों के बीच किसी विषय पर अलग अलग राय होने पर पैदा कानूनी स्थिति के बारे में पूछे जाने पर पीठ को बताया गया कि यदि एक न्यायाधीश इस पर रोक लगाता है और दूसरा नहीं, तो फिर कानून में कोई व्यवस्था नहीं रहेगी। न्यायमूर्ति दवे का नजरिया था कि 21 जुलाई को मेमन की उपचारात्मक याचिका को खारिज करने में कुछ खामी नहीं थी और महाराष्ट्र के राज्यपाल उसकी दया याचिका पर फैसला कर सकते हैं क्योंकि दोषी कैदी अपनी सभी कानूनी उपचारों का प्रयोग कर चुका है। शीर्ष अदालत की ओर से मेमन की उपचारात्मक याचिका पर फैसले में सही प्रक्रिया का पालन नहीं करने की बात कहने वाले न्यायमूर्ति कुरियन ने कहा कि इस खामी को दूर किया जाना चाहिए और उपचारात्मक याचिका पर नए सिरे से सुनवाई होनी चाहिए।

न्यायाधीश ने कहा कि ऐसी परिस्थिति में मौत के वारंट पर रोक लगाई जानी चाहिए। न्यायमूर्ति दवे ने इस मसले पर मनु स्मृति का एक श्लोक उद्धृत करते हुए कहा कि खेद है, मैं मौत के फरमान पर रोक लगाने का हिस्सा नहीं बनूंगा। प्रधान न्यायाधीश को निर्णय लेने दीजिए।

एजेन्सी

vandna

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