एस्ट्रोडेस्क, BareillyLive. पुत्र की दीर्घायु के लिए किया जाने वाला अहोई अष्टमी का व्रत कल सोमवार यानि 17 अक्टूबर 2022 को है। प्रदोष व्यापिनी कार्तिक कृष्ण पक्ष की सप्तमी अथवा अष्टमी के दिन यानी जिस वार की दीपावली हो, उसके एक सप्ताह पहले उसी वार को अहोई अष्टमी का व्रत एवं पूजन किया जाता है।
ज्योतिषाचार्य पं राजीव शर्मा के अनुसार यदि दो दिन प्रदोष व्यापिनी अष्टमी तिथि हो या न हो दोनों ही स्तिथियों में ये दूसरे ही दिन यह व्रत किया जाता है अन्यथा पहले ही दिन मनाया जाता है। इस बार दिनाँक 17 अक्टूबर 2022,सोमवार को अहोई अष्टमी मनाई जाएगी।
ज्योतिषाचार्य पं राजीव शर्मा बताते हैं कि इस दिन सप्तमी तिथि प्रातः 9ः30 बजे तक तदोपरांत अष्टमी तिथि आरम्भ होगी जोकि अगले दिन तक रहेगी। पुनर्वसु नक्षत्र सम्पूर्ण दिन रात रहेगा तदोपरान्त योगों का सम्राट पुष्य नक्षत्र अगले दिन लगेगा। अतः 17 अक्टूबर 2022, सोमवार को प्रदोष व्यापिनी अष्टमी तिथि प्राप्त होगी। इस दिन अत्यंत शुभ योगों में व्रत का कई गुना अधिक फल प्राप्त होगा। संतान की दीर्घायु एवं सुख-समृद्धि के लिए माताएं अहोई माता की पूजा करके यह व्रत रखती हैं।
तेल से बने पदार्थ जैसे मट्ठी,सीरा,गुलगुले,पूए, चावल और साबुत उरद की दाल,मूली के साथ ही गेहूं अथवा मक्की के सात दाने हाथ मे लेकर, तेल का दिया जलाकर अहोई माता का पूजन करें। जल के पात्र को रखकर उस पर स्वास्तिक बनाएं। मिट्टी की हांडी व बर्तन में खाने वाला सामान डालकर पूजा करें।
इस दिन माताएं अपनी संतान की दीर्घायु एवं मंगल कामना के लिए सूर्योदय से पहले उठकर स्नान व ध्यान कर आहार लेती हैं व सारा दिन निराहार व्रत करती हैं। सब प्रकार की कच्ची रसोई बनाई जाती है। संध्या को दीवार में आठ कोष्ठक की एक पुतली रखी जाती है उसी के समीप स्याहु(साही)के बच्चों की और सेई की आकृति बनाई जाती है। अहोई माता यानी पार्वती माँ के सामने एक पात्र में चावल भरकर रख दें।
इसके साथ ही मूली, सिंघाड़ा व पानी फल रखें। माँ के सामने एक दीपक जला दें। एक लोटे में जल रखें और उसके ऊपर करवाचौथ में इस्तेमाल किया गया करवा रखें। दीपावली के दिन इस करवे के पानी का छिड़काव पूरे घर में करते हैं। अब हाथ मे गेहूं या चावल लेकर अहोई अष्टमी व्रत कथा पढ़ें। इसके उपरांत माँ अहोई की आरती करें और पूजा खत्म होने के बाद उस चावल को दुपट्टे या साड़ी के पल्लू में बाँध लें। शाम को अहोई माता की एक बार और पूजा करें और भोग चढ़ायें तथा लाल रंग के फूल चढ़ायें।
शाम को भी अहोई अष्टमी व्रत कथा पढ़ें और आरती करें। तारों को अर्ध्य दें। ध्यान रहे कि पानी सारा उपयोग नहीं करना है। कुछ बचा लेना है ताकि दीवाली के दिन इसका इस्तेमाल किया जा सके। पूजा के बाद घर के बड़ों का आशीर्वाद प्राप्त करें। सभी को प्रसाद बाँटकर भोजन ग्रहण करें। इस दिन गन्ने की भी पूजा की जाती है। शाम को चंद्र दर्शन करके व तारे को अर्ध्य देकर व्रत खोला जाता है।
प्राचीनकाल मे एक साहूकार के सात बेटे और सात बहुएँ थीं। इस साहूकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएँ और ननद मिट्टी लाने जंगल गई। साहूकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याहु(सेही) अपने सात बेटों के साथ रहती थी। मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी की चोट से स्याहु का एक बच्चा मर गया। स्याहु इस पर क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी।
स्याहु की बात से डरकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से एक एक कर बिनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधबा ले। सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं वे सात दिन बाद मर जाते हैं। इसके बाद उसने पंडित को बुलाकर कारण पूछा तो पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।
सेवा से प्रसन्न सुरही उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है। वहां स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहु होने का आशीर्वाद देती है। स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहू का घर पुत्र और पुत्र बंधुओं से हरा भरा हो जाता है।
ज्योतिषाचार्य पं राजीव शर्मा।
बालाजी ज्योतिष संस्थान, बरेली।
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