देव प्रबोधिनी एकादशी : रविवार को उपवास व सोमवार को तुलसी विवाह

उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये, त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥

उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव, गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥

इस बार 14 नवंबर 2021 (रविवार) को एकादशी उपवास रखा जाएगा जबकि तुलसी विवाह 15 नवंबर 2021 (सोमवार) को होगा। एकादशी के उपवास को लेकर किसी तरह के भ्रम में न रहें। एकादशी का उपवास 15 नवंबर को केवल साधु-संतों के लिए होगा।

कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देव प्रबोधिनी एकादशी, देवोत्थान एकादशी और ग्यारस के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यतानुसार श्री हरि विष्णु चार माह के शयन के उपरांत कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को योग निद्रा से जागृत होते हैं। देव शयनी एकादशी चातुर्मास से सभी मांगलिक कार्य वर्जित थे जो कि पुनः देवोत्थान एकादशी से प्रारंभ होंगे। देवोत्थान एकादशी से भगवान श्री हरी विष्णु पुनः सृष्टि का कार्यभार संभाल लेते हैं। इस दिन से सभी तरह के मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।

शुभ मुहूर्त

एकादशी तिथि 14 नवंबर को प्रातः 5:48 बजे से प्रारंभ होकर 15 नवंबर प्रातः काल 6:39 बजे तक रहेगी।

पूजा विधि

देवोत्थान एकादशी पर दीपावली की तरह ही स्वच्छता पर विशेष ध्यान दें। नित्य कर्म से निवृत्त होकर संपूर्ण घर को स्वच्छ करें। एकादशी पर्व पर नदी में स्नान का विशेष महत्व होता है। अगर ऐसा संभव न हो तो घर पर ही गंगाजल से स्नान कर सकते हैं ।

श्री हरि विष्णु चार माह के शयन के उपरांत देवशयनी एकादशी पर जागृत होते हैं तो उनके स्वागत हेतु विशेष नियमों का पालन देवोत्थान एकादशी पर किया जाता है। जैसे कि पूरे घर को रंगोली और गेरू से  से सजाया जाता है। गन्ने और आम के पत्तों से श्री हरि विष्णु के लिए मंडप बनाएं। विष्णु जी को मंदिर में स्थापित करें। घी की अखंड ज्योति जालए जो अगले दिन तक प्रज्वलित रहे तो अति शुभ माना जाता है। श्री हरि विष्णु और देवी लक्ष्मी को स्नानादि कराने के उपरांत वस्त्र, रोली, अक्षत, सफेद कुमकुम और पीले पुष्प अर्पित करें। पंच मिठाई, पंचमेवा, तुलसी के पत्ते पंचामृत भोग लगाएं। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। घी के दीपक से आरती करें। शाम के समय 11 दीपक प्रज्वलित करें। देवोत्थान एकादशी पर रात्रि जागरण, पूजा अर्चना अति शुभ फल कारक मानी गई है।

एकादशी का महत्व और उपाय

धार्मिक मान्यता अनुसार ऐसा माना जाता है कि जो भी जातक पूर्ण श्रद्धा भाव से एकादशी का उपवास रखते हैं, उन सभी को एक हजार अश्वमेघ यज्ञ और सौ राजसूय यज्ञ के बराबर फल प्राप्त होता है।

जो भी जातक कुण्डली में पितृदोष से पीड़ित हैं, यदि वे एकादशी का उपवास रखें तो पितरों का विषेश आशीर्वाद प्राप्त होता है। उनके पितरों को भी लाभ मिलता है। पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष प्राप्त होता है।

देव प्रबोधिनी एकादशी का उपवास रखने से भाग्य जागृत होता है। भगवान विष्णु के साथ देवी लक्ष्मी की आराधना करने से कर्ज से मुक्ति मिलती है। इस दिन घर परिवार में सुख-शांति के हेतु तुलसी पर घी का दीपक जलाएं। भगवान विष्णु के मंत्र का जाप करते हुए तुलसी की 11 बार परिक्रमा करें। जरूरतमंदों को पीली वस्तुओं का दान करें। देव प्रबोधिनी एकादशी पर गुरुजी को पीले वस्त्र, हल्दी, चने की दाल, पीले लड्डू का दान करना भी शुभ माना जाता है ।

ज्योतिषाचार्य राजेश कुमार शर्मा,

श्री अवध विमल ज्योतिष संस्थान, बरेली