धर्मराज दशमी का व्रत एवं त्योहार चैत्र शुक्ल पक्ष की दशमी (गुरुवार, 22 अप्रैल) को है। धर्मराज को यमराज भी कहते हैं। यमराज को पितृपति और दण्डधर भी कहते हैं।
सबसे पहले युधिष्ठिर ने अपने खोए हुए भाइयों को पाने के लिए यक्ष की कृपा से यह व्रत रखा था। इस व्रत के संबंध में भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था। यदि किसी का यात्रा पर गया पति किसी कारणवश लौट नहीं पा रहा है तो पत्नी को यह व्रत रखना चाहिए। वैकुंठ में जाने की इच्छा से भी यह व्रत रखा जाता है।
इस व्रत को रखने से सभी तरह की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। कन्याएं यह व्रत रखती हैं तो उन्हें सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है। मान्यता अनुसार रोगी रखता है तो रोग दूर हो जाता है। पुत्र की कामना, अच्छी खेती, अच्छे राजकार्य के लिए भी यह व्रत रखा जाता है।
पुराणों में धर्मराज की कई कथाएं मिलती हैं। उनमें से एक कथा ज्यादा प्रचलित है। कहते हैं कि एक ब्राह्मणी मृत्यु के बाद यम के द्वार पहुंची। वहां उसने कहा कि मुझे धर्मराज के मंदिर का रास्ता बताओ। एक दूत ने कहा कि कहां जाना है? वह बोली मुझे धर्मराज के मंदिर जाना है। वह महिला बहुत दान-पुण्य वाली थी। उसे विश्वास था कि धर्मराज के मंदिर का रास्ता अवश्य खुल जाएगा। दूत ने उसे रास्ता बता दिए। वहां देखा कि बहुत बड़ा-सा मंदिर है। वहां हीरे-मोती जड़ती सोने के सिंहासन पर धर्मराज विराजमान हैं और न्यायसभा ले रहे हैं। न्याय नीति से अपना राज्य सम्भाल रहे थे। यमराज सबको कर्मानुसार दंड दे रहे थे। ब्राह्मणी ने प्रणाम किया और बोली मुझे वैकुण्ठ जाना हैं। धर्मराजजी ने चित्रगुप्त से कहा इसका लेखा–जोखा सुनाओ। चित्रगुप्त ने लेखा सुनाया। सुनकर धर्मराजजी ने कहां तुमने सब धर्म किए पर धर्मराजज की कहानी नहीं सुनी। वैकुण्ठ में कैसे जाएगी?
महिला ने पूछा, “धर्मराजजी की कहानी के क्या नियम हैं?” धर्मराजजी बोले, “कोई एक साल, कोई छह महीने, कोई सात दिन ही सुने पर धर्मराजजी की कहानी अवश्य सुने। फिर उसका उद्यापन कर दे। उद्यापन में काठी, छतरी, चप्पल, बाल्टी रस्सी, टोकरी, लालटेन, साड़ी ब्लाउज का बेस, लोटे में शक्कर भरकर, पांच बर्तन, 6 मोती, 6 मूंगा, यमराजजी की लोहे की मूर्ति, सोने की मूर्ति, चांदी का चांद, सोने का सूरज, चांदी का सातिया ब्राह्मण को दान करें। प्रतिदिन चावल का सातिया बनाकर कहानी सुनें।”
यह बात सुनकर ब्राह्मणी बोली, “हे धर्मराज मुझे 7 दिन के ले वापस पृथ्वीलोक पर भेज दो। मैं कहानी सुनकर वापस आ जाऊंगी।” धर्मराज ने उसका लेखा–जोखा देखकर 7 दिन के लिए पुन: पृथ्वीलोक भेज दिया। ब्राह्मणी जीवित हो गई। ब्राह्मणी ने अपने परिवार वालों से कहा, “मैं 7 दिन के लिए धर्मराजजी की कहानी सुनने के लिए वापस आई हूं। इस कथा को सुनने से बड़ा पुण्य मिलता है।”
ब्राह्मणी ने चावल का सातिया बनाकर परिवार के साथ 7 दिनों तक धर्मराज की कथा सुनी। 7 दिन पूर्ण होने पर धर्मराज ने अपने दूत भेजकर उसे वापस ऊपर बुला लिया। अंत में ब्राह्मणी को वैकुण्ठ में श्रीहरी के चरणों में स्थान मिला।
धर्मा अनुरागी श्री धर्मराज सभी पर अपनी कृपा बनाए रखें l
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