वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान केंद्र (सीएसआईआर) और जिनोमिक्स एण्ड इंटीग्रेटिव बायलॉजी (आईजीआईबी) संस्थान द्वारा किए गए अनुसंधान के अनुसार एक नोट में औसतन कवक (70 फीसदी), बैक्टीरिया (9फीसदी) और विषाणु (एक फीसदी से कम) जीव होते हैं।
आईजीआईबी के प्रधान वैज्ञानिक एवं इस शोधपत्र के लेखकों में एक एस रामचंद्रन ने कहा, ‘हमने स्टेफाइलोकोकस ऑरियस और इंरटकोकस फेकैलिस समेत 78 रोजजनक सूक्ष्मजीव की पहचान की है। हमारे विश्लेषण से यह भी पता चला है कि कागज के इन नोट (मुद्रा) पर विविध प्रकार के सूक्ष्मजीव होते हैं और कई एंटीबायोटिक प्रतिरोधी भी होते हैं।’
शोधपत्र के अनुसार नोटों के इन रोगजनक सूक्ष्मजीवों से चर्मरोग, कवक और पेट के संक्रमण, सांस संबंधी परेशानियां और यहां तक तपेदिक भी हो सकती है। दिल्ली महानगर में रेहड़ी पटरीवालों, किराने की दुकानों, कैंटीन, चाय की दुकानों, हार्डवेयर की दुकानों, दवा की दुकानों आदि से नमूने इकट्ठे किए गए थे। उनमें 10, 20 और 100 रुपए के नोट थे जिनका व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है। आस्ट्रेलिया जैसे कई देशों ने इन्हीं कारणों से कागज के नोट के स्थान पर प्लास्टिक के नोट चलाए हैं।
रामचंद्रन ने कहा, ‘हम पहले से ही प्लास्टिक मुद्रा (क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड) का इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन उनका इस्तेमाल व्यापक नहीं है । व्यक्ति को अवश्य ही स्वच्छता के तौर तरीके अपनाना चाहिए तथा इन नोटों को संभालने के बाद किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचने के लिए हाथ को रोगाणुमुक्त कर लेना चाहिए।
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