हमारा खून एक-दूसरे के काम आता है। मनुष्य के यकृत (लीवर) और गुर्दे का प्रत्यारोपण (Transplant) अब आम बात हो गयी है। यहां तक कि अब तो हृदय तक का प्रत्यारोपण हो जाता है। लेकिन, आपने यह नहीं सुना-पढ़ा होगा कि एक मनुष्य का मल दूसरे मनुष्य के काम आ रहा है या दूसरे मनुष्य के शरीर में चढ़ाया जा रहा है। जी हां, वही मल जिसे हम पोट्टी या टट्टी बोलते हैं और सुबह-सुबह पाखाने में निकाल कर आते हैं।
दरअसल, हमारी आँतों में बहुत सारे ऐसे सूक्ष्म जीव रहते हैं जो हमारे शरीर के लिए जरूरी होते हैं। अगर इनका संतुलन बिगड़ जाए या इनमें से कुछ खत्म हो जाएं तो हमारा शरीर विभिन्न बीमारियों से ग्रसित हो जाता है। पेट की ऐसी ही दो बीमारियां हैं- आईबीएस (इरिटेबल बाउल सिंड्रोम) और अल्सरेटिव कोलाइटिस। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में इन दोनों को लाइलाज माना जाता है। जब अमेरिका में रिसर्च की गई तो इन बीमारियों का संबंध भी गट माइक्रोबायोम अर्थात पेट में आश्रय पाने वाले सूक्ष्म जीवों से निकला।
हम जो मल त्यागते हैं उसमें भी वही सूक्ष्म जीवाणु होते हैं जो हमारी आँतों में पाए जाते हैं। वैज्ञानिकों ने विचार किया क्यों न किसी स्वस्थ व्यक्ति का मल बीमार व्यक्ति की आंतों में पहुंचा दिया जाए जिससे स्वस्थ करने वाले सूक्ष्म जीव वहां पनप जाएंगे और व्यक्ति स्वस्थ हो जाएगा। यह प्रयोग सफल रहा। बाद में अमेरिकी सरकार की नियामक एजेंसी ने भी इस इलाज को मान्यता दे दी। इस प्रक्रिया को करने के लिए ऐसा फेकल डोनर ढूंढा जाता है जिसने अपने जीवन में कभी भी एंटीबायोटिक्स का प्रयोग ना किया हो। एंटीबायोटिक्स हमारे लिए जीवन रक्षक तो हैं लेकिन इनका बिना सोचे-समझे अंधाधुंध प्रयोग हमारी कई समस्याओं का कारण भी है।
ऐसा नहीं है कि मानव मल का इलाज में प्रयोग अमेरिका में पहली बार किया गया है। इससे पहले चीन की चिकित्सा पद्धति में भी इसका प्रयोग देखने को मिलता है। वहां यदि किसी व्यक्ति के दस्त ठीक नहीं होते थे तो अंत में उसे स्वस्थ व्यक्ति का मानव मल घोलकर पिलाया जाता था और इससे सकारात्मक परिणाम मिल जाते थे। वहाँ के चिकित्सा शास्त्र की बारहवीं शताब्दी में लिखी पुस्तकों में इसका जिक्र है। पिछली शताब्दी तक वहाँ के पारम्परिक चिकित्सक इसका प्रयोग करते थे। दस्त ठीक करने का ऐसा ही तरीका चिम्पैंजियों में भी देखा गया है। दस्त लगने पर वे अपने स्वस्थ साथी का मल खाकर ठीक होते हैं लेकिन वे इसका प्रयोग दस्त लगने पर ही करते हैं, सामान्य अवस्था में नहीं।
पंकज गंगवार
(लेखक पोषण विज्ञान के गहन अध्येता होने के साथ ही न्यूट्रीकेयर बायो साइंस प्राइवेट लिमिटेड के चेयरमैन भी हैं)
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