भारत आज मेडिकल हब बन चुका है। रेबीज, पोलियो आदि की वैक्सीन यहां से बड़े पैमाने पर निर्यात होती हैं। कोविड-19 (कोरोना वायरस) की दो वैक्सीन का यहां उत्पादन हो रहा है। लेकिन, आज भी कई ऐसे वायरस हैं जिनकी कोई वैक्सीन या अन्य दवा नहीं बन सकी है। Scedosporium prolificans ऐसा ही एक फंगल वायरस है जिसे आज भी लाइलाज मना जाता है। इस दुर्लभ वायरस से पीड़ित थे पीयूष सिन्हा जिन्हें देश के नामी अस्पतालों में वर्षों चले महंगे इलाज के बाद भी बचाया नहीं जा सका और 52 साल की उम्र में ही वह दुनिया को अलविदा कह गए।
पीयूष सिन्हा ने हरियाणा के गुरुग्राम स्थित मेदांता मेडिसिटी अस्पताल में 31 मई 2014 को आखिरी सांस ली थी। उनका इलाज करने वाले डॉ अनिल भान और डॉ प्रसाद राव की मेडिकल टीम के अनुसार, फंगल वायरस Scedosporium prolificans से विश्व में उस समय तक की यह छठी मौत थी।
बरेली निवासी मधुरिमा सक्सेना बताती हैं कि उनके छोटे भाई पीयूष सिन्हा Scedosporium prolificans से लगभग तीन साल तक देश के नामी अस्पतालों में जूझते रहे लेकिन हृदय एवं वॉल्व के चार ऑपरेशन के बाद भी मौत ने आखिर उन्हें अपने जबड़े में ले ही लिया।
उत्तर प्रदेश के बांदा के रहने वाले शिव शंकर सिन्हा की 1976 में एयरफोर्स में तैनाती के दौरान दिल्ली में मौत हो गई थी। उसके बाद परिवार नई दिल्ली में ही जनकपुरी के पास डाबरी एक्सटेंशन पूर्व में बस गया। शिव शंकर सिन्हा एवं सरोजनी सिन्हा के यहां 2 अगस्त 1962 को जन्मे उनके छोटे पुत्र पीयूष सिन्हा ने दिसंबर 2009 में हृदय रोग से पीड़ित होने पर दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में हृदय की धमनियां साफ कराई थीं जहां उनके स्टंट भी डाला गया। डॉक्टर मोहंती की टीम ने पीयूष सिन्हा के न चाहते हुए भी शरीर के बाहर एक खुला पेसमेकर भी लगाया था। गंभीर स्वास्थ्य समस्या आने पर पीयूष सिन्हा का दिसंबर 2011 में ऑपरेशन कर अधिक क्षमता का पेसमेकर लगा दिया गया। इसके बाद भी उनकी स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां दूर नहीं हुईं। मधुमेह से ग्रस्त पीयूष सिन्हा को ड़ॉक्टर स्वस्थ होने का भरोसा तो दिलाते रहे पर स्वास्थ्य बिगड़ता गया। हालात इस कदर खराब हुए कि गुरुग्राम की एक निजी कंपनी में कार्यरत पीयूष सिन्हा की नौकरी भी चली गई। कुछ समय बाद वह पूरी तरह बिस्तर के ही होकर रह गए। हर महीने सर गंगाराम अस्पताल में चेकअप के लिए जाने के बावजूद डॉक्टर उनका रोग नहीं पकड़ पा रहे थे जो दूसरी बार ऑपरेशन कर लगाए गए पेसमेकर से आये फंगल वायरस के रूप में उन्हें लग चुका था। इसी के चलते सितम्बर 2012 में उन्हें तीसरी बार सर गंगाराम अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां डॉ गणेश शिवनानी और डॉ सुजाय शाद की मेडिकल टीम ने बड़ा ऑपरेशन करके उनको सही होने का भरोसा दिलाया। 5 सितंबर 2012 को हुए इस ऑपरेशन के बाद जब पीयूष सिन्हा को वार्ड में शिफ्ट नहीं किया गया तो उनके परिवारीजनों को चिंता हुई। डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें अभी कुछ दिन आईएमसीयू में ही रखना पड़ेगा। साथ ही परिवारजनों को 28 दिन तक महंगे इंजेक्शन बाहर से लाकर देने होंगे। उस समय इस एक इंजेक्शन की कीमत करीब 15 हजार रुपये थी। इतने महंगे 28 इंजेक्शन लगने के बाद भी डॉक्टरों ने उन्हें आईएमसीयू से वार्ड में शिफ्ट न करके सीधे घर ले जाने की सलाह दी और कहा गया कि आप अपने घर के कमरे को ही आईएमसीयू का दर्जा देकर वहां मरीज का इलाज कराते रहें। पीयूष सिन्हा सर गंगाराम अस्पताल के आईएमसीयू में रहने वाले पहले ऐसे मरीज थे जो एक महीने से अधिक वहां रहे और इसका भी एक रिकॉर्ड बना।
परिवार को आर्थिक रूप से तोड़ देने वाले इतने महंगे इलाज के वावजूद पीयूष सिन्हा की समस्या का हल नहीं हुआ और फंगल वायरस कुछ समय बाद उनके हृदय के वॉल्ब तक पहुंच गया। सर गंगाराम अस्पताल के डॉक्टरों के कहने पर उन्हें गुरुग्राम स्थित मेदांता मेडिसिटी में भर्ती कराया गया जहां डॉ अनिल भान की टीम ने उनके हृदय के वॉल्ब का नवंबर 2012 में ऑपरेशन किया। इसके बाद मेदांता के डॉक्टरों की सलाह पर फंगल वायरस Scedosporium prolificans के इलाज के लिए दिल्ली के बत्रा अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां डॉ अरुण दीवान की मेडिकल टीम ने उनका कुछ दिन अस्पताल में ही इलाज किया। इसके बाद नियमित दवा लेते रहने की हिदायत के साथ घर भेज दिया। लेकिन, नियमित रूप से दवा लेने के बावजूद फंगल वायरस ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। पीयूष सिन्हा को 14 अक्टूबर 2013 को एक बार फिऱ बत्रा अस्पताल में भर्ती कराया गया। इसके बाद बत्रा अस्पताल के डाक्टरों की सलाह पर मेदांता में भर्ती कराया गया जहां 28 अक्टूबर 2013 को हृदय के वॉल्ब का पुनः ऑपरेशन किया गया।
हृदय वॉल्ब के इस दूसरे ऑपरेशन के बाद भी फंगल वायरस ने पीयूष का पीछा नहीं छोड़ा। इस पर मेदांता मेडिसिटी अस्पताल में ही 26 मार्च 2014 को तीसरी बार हृदय वॉल्ब का ऑपरेशन किया गया। दो बार हृदय के ऑपरेशन और तीन बार हृदय वॉल्ब के ऑपरेशन के बावजूद आर्थिक रूप से वर्बाद हो चुके पीयूष सिन्हा का पीछा फंगल वायरस ने नहीं छोड़ा। शरीर से काफी कमजोर हो चुके पीयूष सिन्हा की इसी के चलते 31 मई 2014 को मेदांता मेडिसिटी में ही मृत्यु हो गई। उनकी पत्नी अनीता सिन्हा दिल्ली के एक विद्यालय में नौकरी करती हैं जबकि एकमात्र पुत्री शिवांगी बीटेक कर चुकी है। अब उनका परिवार दिल्ली के ही द्वारका में रहता है।
(लेखक कई बड़े अखबारों में काम कर चुके वरिष्ठ पत्रकार हैं)
बरेली@BareillyLive. शहर के जयनारायण सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज में जिला प्रशिक्षण आयुक्त पुष्पकांत शर्मा…
हाई फ्लड लाइट और वॉच टावर की संख्या को बढ़ाने को कहा, मेला क्षेत्र में…
बरेली@BareillyLive. उत्तर प्रदेश भारत स्काउट एवं गाइड के निर्देशन एवं जिला संस्था बरेली के तत्वावधान…
बरेली @BareillyLive. चीन द्वारा कब्जा की गई भारत की भूमि को मुक्त करने की मांग…
बरेली @BareillyLive. रामगंगा नदी के चौबारी मेले में कार्तिक पूर्णिमा स्नान के कारण बरेली में…
Bareillylive : संगठन पर्व के चलते शहर के मीरगंज विधानसभा के मंडल मीरगंज व मंडल…