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नागपंचमी मंगलवार, 02 अगस्त को, बन रहा है “शिव योग”

इस बार नाग पंचमी बेहद खास, “मंगलागौरी व्रत” का भी बन रहा विशेष संजोग
शिव योग” के शुभ मुहूर्त में नाग पंचमी पर करें “काल सर्प” दोष शांति

ज्योतिषाचार्य पं राजीव शर्मा

BareillyLive. इस बार नागपंचमी मंगलवार, 02 अगस्त को है। नागपंचमी पर शुभ फल देने वाले सूर्योदय से उ.फा. नक्षत्र लगेगा जोकि सायं 5:29 बजे तक, तदोपरान्त हस्त नक्षत्र आरम्भ होगा एवं विशेष “शिव योग” सायं 6:36 बजे तक रहेगा। तदोपरांत “सिद्ध योग” आरम्भ होगा। इस दिन कन्या के चन्द्र के विशेष योग में नागपंचमी मनायी जायेगी। कालसर्प दोष निवारण के लिए यह विशिष्ट दिन है।

नागपंचमी के सिद्ध मुहुर्त प्रात: 9:07 बजे से अपराह्ण 2:04 बजे तक चर लाभ, अमृत के चौघड़िया, अपराह्न 3:46 बजे से सायं 5:24 बजे तक शुभ के चौघड़िया में कालसर्प दोष शांति कराना अति उत्तम रहेगा। वर्ष के मध्य में कालसर्प योग जिस समय बने उस समय अनुष्ठान भी सर्वश्रेष्ठ रहता है।

कालसर्प योग यज्ञ का आरम्भ या समाप्ति पंचमी,  अष्टमी, दशमी या चुतुर्दशी तिथि वार चाहे जो भी हो, भरणी, आद्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, उत्तराषाढ़ा, अभिजित एवं श्रवण नक्षत्र श्रेष्ठ माने जाते हैं। परन्तु जातक की राशि से ग्रह गणना का विचार करना परम आवश्यक होता है।

कालसर्प योग

ग्नि पुराण में लगभग 80 प्रकार के नाग कुलों का वर्णन मिलता है, जिनमें अनन्त, वासुकी, पद्म, महापध, तक्षक, कुलिक, कर्कोटक और शंखपाल प्रमुख माने गये हैं। स्कन्दपुराण, भविष्यपुराण और कूर्मपुराण में भी इनका उल्लेख मिलता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार राहू के जन्म नक्षत्र “भरणी” के देवता काल हैं एवं केतु के जन्म नक्षत्र ‘ ‘अश्लेषा के देवता सर्प हैं। अत: राहू-केतु के जन्म नक्षत्र देवताओं के नामों को जोड़कर “कालसर्प योग” कहा जाता है। राशि चक्र में 12 राशियां हैं, जन्म पत्रिका में 12 भाव हैं एवं 12 लग्न हैं। इस तरह कुल 144 = 288 कालसर्प योग घटित होते हैं।

कालसर्प दोष, पूजा-शांति विधान

प्रात:काल स्नान आदि से निवृत्त होकर पूजा के स्थान पर कुश का आसन स्थापित करके सर्वप्रथम हाथ में जल लेकर अपने ऊपर व पूजन सामग्री पर छिड़कें, फिर संकल्प लें, “मैं कालसर्प दोष शांति हेतु यह पूजा कर रहा हूँ। अत: मेरे सभी कष्टों का निवारण कर मुझे कालसर्प दोष से मुक्त करें।” तत्पश्चात् अपने सामने चौकी पर एक कलश स्थापित कर पूजा आरम्भ करें। कलश पर एक पात्र में सर्प-सर्पनी का यंत्र एवं कालसर्प यंत्र स्थापित करें, साथ ही कलश पर तीन तांबे के सिक्के एवं तीन कौडिय़ां सर्प-सर्पनी के जोड़े के साथ रखें, उस पर केसर का तिलक लगायें, अक्षत चढ़ायें, पुष्प चढ़ायें तथा काले तिल, चावल व उड़द का पकाकर शक्कर मिश्रित कर उसका भोग लगायें। फिर घी का दीपक जला कर निम्न मंत्र का उच्चारण करें-

ऊँ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु।

ये अंतरिक्षे ये दिवितेभ्य: सर्पेभ्यो नम: स्वाहा।।

राहु का मंत्र- ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:।

अब गणपति पूजन करें, नवग्रह पूजन करें, कलश पर रखीं समस्त नाग-नागिन की प्रतिमा का पूजन करें व रूद्राक्ष माला से उपरोक्त कालसर्प शांति मंत्र अथवा राहू के मंत्र का उच्चारण एक माला जाप करें। उसके पश्चात् कलश में रखा जल शिवलिंग पर किसी मंदिर में चढ़ा दें, प्रसाद नंदी (बैल) को खिला दें, दान-दक्षिणा व नये वस्त्र ब्राह्मणों को दान करें। कालसर्प दोष वाले जातक को इस दिन व्रत अवश्य करना चाहिए।

श्रावण मास की शुक्ल पंचमी को नाग पूजा का विधान है। इस दिन पांचों नागों (अनन्त, वासुकी, तक्षक, कर्कोटक और पिंगल) की पूजा की जाती है। इसीलिए इसे नाग पूजा कहा जाता है।

कालसर्प दोष शांति मंत्र

ऊँ नागकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात्

gajendra tripathi

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