संकष्टी चतुर्थी [सकट}2023 : संकष्टी का अर्थ होता है संकटों को दूर करने वाला और चतुर्थी का अर्थ चांद्र मास के किसी पक्ष की चौथी तिथि होता है। चतुर्थी के दिन चन्द्र दर्शन को बहुत शुभ माना जाता है। चन्द्रोदय के बाद ही व्रत पूर्ण होता है। मान्यता यह भी है कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
जो लोग हर महीने संकष्टी चतुर्थी के दिन उपवास करते हैं, उन्हें भगवान गणेश द्वारा शुभ, सुख, समृद्धि का आशीर्वाद दिया जाता है और साथ ही भगवान गणेश उन्हें जीवन में सभी बाधाओं से बचाते हैं ।
पंचांग के अनुसार,साल की पहली संकष्टी चतुर्थी यानी सकट चौथ माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 10 जनवरी 2023 मंगलवार को दोपहर 12 बजकर 09 मिनट से शुरू होगी।मान्यता है कि इस व्रत को करने से विघ्नहर्ता गणेश संतान के सारे संकटों को दूर करते हैं।
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पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार सभी देवी-देवताओं के ऊपर भारी संकट आ गया | जब वह खुद उस संकट का समाधान नहीं निकाल पाए तो भगवान शिव के पास मदद मांगने के लिए गए | भगवान शिव ने गणेश जी और कार्तिकेय से संकट का समाधान करने के लिए कहा तो दोनों भाइयों ने कहा कि वे आसानी से इसका समाधान कर लेंगे | इस प्रकार शिवजी दुविधा में आ गए | उन्होंने कहा कि इस पृथ्वी का चक्कर लगाकर जो सबसे पहले मेरे पास आएगा वही समाधान करने जाएगा |
भगवान कार्तिकेय बिना किसी देर किए अपने वाहन मोर पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए निकल गए | वहीं गणेश जी के पास मूषक की सवारी थी | ऐसे में मोर की तुलना में मूषक का जल्दी परिक्रमा करना संभव नहीं था | तब उन्होंने बड़ी चतुराई से पृथ्वी का चक्कर ना लगाकर अपने स्थान पर खड़े होकर माता पार्वती और भगवान शिव की 7 परिक्रमा की | जब महादेव ने गणेश जी से पूछा कि उन्होंने ऐसा क्यों किया तो इस पर गणेश जी बोले माता पिता के चरणों में ही पूरा संसार होता है |
इस वजह से मैंने आपकी परिक्रमा की | यह उत्तर सुनकर भगवान शिव और माता पार्वती बेहद प्रसन्न हुए और उन्होंने देवताओं का संकट दूर करने के लिए गणेश जी को चुना | इसी के साथ भगवान शिव ने गणेश जी को यह आशीर्वाद भी दिया कि जो भी चतुर्थी के दिन गणेश पूजन कर चंद्रमा को जल अर्पित करेगा उसके सभी दुख दूर हो जाएंगे | साथ ही पापों का नाश होगा और सुख समृद्धि की प्राप्ति होगी |
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एक दिन माता पार्वती नदी किनारे भगवान शिव के साथ बैठी थीं। उनको चोपड़ खेलने की इच्छा हुई, लेकिन उनके अलावा कोई तीसरा नहीं था, जो खेल में हार जीत का फैसला करे। ऐसे में माता पार्वती और शिव जी ने एक मिट्टी की मूर्ति में जान फूंक दी और उसे निर्णायक की भूमिका दी। खेल में माता पार्वती लगातार तीन से चार बार विजयी हुईं, लेकिन एक बार बालक ने गलती से माता पार्वती को हारा हुआ और भगवान शिव को विजयी घोषित कर दिया। इस पर पार्वती जी उससे क्रोधित हो गईं।
क्रोधित पार्वती जी ने उसे बालक को लंगड़ा बना दिया। उसने माता से माफी मांगी, लेकिन उन्होंने कहा कि श्राप अब वापस नहीं लिया जा सकता, पर एक उपाय है। संकष्टी के दिन यहां पर कुछ कन्याएं पूजन के लिए आती हैं, उनसे व्रत और पूजा की विधि पूछना। तुम भी वैसे ही व्रत और पूजा करना। माता पार्वती के कहे अनुसार उसने वैसा ही किया। उसकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान गणेश उसके संकटों को दूर कर देते हैं।
संकष्टी व्रत में अन्न नहीं खाया जाता है, इस व्रत में दिन में फल, जूस, मिठाई बस खाया जाता है| शाम को पूजा के बाद फलाहार जिसमें साबूदाना खिचड़ी, राजगिरा का हलवा, आलू मूंगफली, सिंघाड़े के आटे का समान खा सकते है. व्रत वाले खाने को सेंधा नमक में बनाया जाता है. व्रत में मिट्टी के अंदर, जड़ वाली सब्जी खा सकते है|
गणेश जी को मनाना बहुत आसान होता है, वे बहुत सीधे और जल्दी प्रसन्न होने वाले भगवन है| गणेश जी बुद्धि के भी देवता है, उन्हें अत्याधिक ज्ञान था|पढाई करने वाले बच्चे का गणेश जी की आराधना करने से अच्छी बुद्धि मिलती है|
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