Astro Desk. BareillyLive. आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद-पूर्णिमा कहते हैं। प्रदोष और निशीथ में व्याप्त होने वाली आश्विन पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा व कोजागर व्रत किया जाता है। इस वर्ष यह पूर्णिमा 9 अक्टूबर 2022 को पड़ रही है। इस दिन तीन शुभ योगों “सर्वार्थ सिद्ध योग, राजयोग एवं ध्रुव योग“ का समावेश है। शरद पूर्णिमा की चाँदनी में अमृत का निवास रहता है, इसलिए उसकी किरणों से अमृत और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
बालाजी ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य पंडित राजीव शर्मा के अनुसार मान्यता है कि सम्पूर्ण वर्ष में केवल इसी दिन चन्द्रमा अपनी षोडश कलाओं का होता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार इसी दिन “कोजागरी व्रत“ किया जाता है। इसी को “कौमुदी व्रत“ भी कहते हैं। इस बार यह व्रत 09 अक्टूबर 2022,रविवार को पड़ रहा है। इस दिन बाल्मीकि जयंती, सरदार पटेल जयंती भी है। इसी दिन पूर्णिमा व्रत एवं सत्यनारायण पूजा की जाएगी। इस दिन यानि शरद पूर्णिमा के दिन से ही व्रत एवं कार्तिक स्नान आरम्भ हो जायेगा।
शरद पूर्णिमा की जितनी महत्ता ज्योतिष और आयुर्वेद में है, उतनी ही प्रेम रस से ओत-प्रोत समाज में है। शरद पूर्णिमा ज्योतिष एवं आयुर्वेद की दृष्टि से तब अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है जब इस पूर्णिमा पूर्ण चन्द्रमा का दर्शन आश्विनी नक्षत्र में हो। पूर्णिमा की रात अश्विनी नक्षत्र पर चन्द्रमा का दर्शन अनंत सुख देने वाला होता है। इससे शरीर के रोग एवं चर्म रोग दूर होते हैं। मनोविकार और मनो रोगियो के लिए यह चन्द्रमा अति स्वास्थ्य वर्धक होता है।
नेत्र रोग वाले व्यक्तियों को इस चन्द्रमा के चन्द्रबिम्ब का एकटक दर्शन नेत्र संजीवन के समान होता है। इस रात नेत्र रोग वाले व्यक्तियों को केवल चन्द्रमा की चांदनी में ही सुई में (100 बार) धागा पिरोना चाहिए इससे नेत्रों की ज्योति बढती है। इसी प्रकार जो हृदय रोग एवं फेफड़ो के रोग से ग्रसित हों उन्हे भी अमृतमयी चन्द्रमा की चांदनी में रखी खीर के सेवन से प्रचुर लाभ मिलता है।’ अश्विन नक्षत्र जो देवताओं के चिकित्सक हैं इसलिए अश्विनी नक्षत्र औषधीय गुणों से भरपूर है। इस पूर्णिमा को खीर का प्रसाद रात में ग्रहण किया जाता है।
इस पूर्णिमा को रात्रि जागरण का भी बहुत महत्व है। इस पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। कोजागरी का अर्थ है कि कौन जाग रहा है? पुराणों के अनुसार इस दिन लक्षमी जी भ्रमण पर निकलती हैं। किस पर कृपा करें यह ढूंढती हैं, जो जाग रहा होता है। कहावत भी है जो जागत है सो पावत है जो सोवत है वह खोवत है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने महारास लीला सम्पन्न की थी। आयुर्वेद के दृष्टिकोण से भी इस दिन विभिन्न औषधियां मिलाकर खीर का निर्माण किया जाता है और उसे रात्रि में चन्द्रमा के प्रकाश मे रखकर उसका वितरण किया जाता है। इससे अनेक रोगो की सहज ही चिकित्सा हो जाती है।
इस दिन प्रातःकाल स्नान करके आराध्य देव को सुन्दर आभूषण से सुशोभित करके आवाहन, आसन, आचमन, वस्त्र, गन्ध, अक्षत, पुष्प, धूप-दीप, नैवेध, ताम्बूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से उनका पूजन करना चाहिए। रात्रि के समय गाय के दूध से बनी खीर अर्द्ध रात्रि के समय भगवान को अर्पण करना चाहिए। खीर को खुली चांदनी में रखकर दूसरे दिन उसका प्रसाद बांटना चाहिए। पूर्णिमा का व्रत करके कथा सुनना चाहिए।
एक लोटे में जल तथा गिलास में गेहूं, पत्ते के दोनों में रोली तथा चावल रखकर कलश पर तिलक करके गेहूं के 13 दाने हाथ में लेकर कथा सुनना चाहिए, लोटे के जल का रात्रि को चन्द्रमा को अर्ध्य देना चाहिए। इस दिन ऐसी मान्यता भी है कि इस दिन माँ लक्ष्मी रात्रि में विचरण करती हैं। इस दिन इन्द्र एवं माता लक्ष्मी की पूजा करके श्रीसूक्त, लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ एवं माँ लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करना चाहिए। रात्रिकाल में घी के 108 दीपक जलाने चाहिए। घर के विभिन्न स्थानों पर रखना चाहिए। इस दिन लक्ष्मी जी की विशेष कृपा उन पर होती है जो जाग रहा होता है। शरद पूर्णिमा का व्रत और उत्सव भौतिक कामनाओं की पूर्ति के साथ ही संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है। इस रात्रि चन्द्रमा अपनी षोडश कलाओं का होने के कारण अमृत की बूंदें बिखेरता है। इति।
ज्योतिषाचार्य पं राजीव शर्मा।
बालाजी ज्योतिष संस्थान,बरेली।
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