नई दिल्ली। कैंसर! एक ऐसा रोग जिसका नाम सुनते ही सिहरन होने लगती है। दुर्भाग्यवश पिछले करीब तीन दशक में भारत में कैंसर का बोझ दोगुना से अधिक हो गया है। स्तन, गर्भाशय ग्रीवा, मुंह और फेफड़े के कैंसर एक साथ देश में बीमारी के बोझ का 41 प्रतिशत हैं। आंकड़े यह भी बताते हैं कि वर्ष 2018 से 2040 के बीच प्रथम कीमोथेरेपी की आवश्यकता वाले रोगियों की संख्या 98 लाख से बढ़कर 1.5 करोड़ हो जाएगी। इसके बावजूद हालात सुधरते नजर नहीं आ रहे। दरअसल, कैंसर एक ऐसा रोग है जिसकी रोकथाम की महत्ता पर जागरूकता पैदा करना बेहद जरूरी है पर इस दिशा में कोई खास काम नहीं हो पा रहा है।
स्वास्थ्य संबंधी जर्नल द लांसेट, ऑन्कोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन बताता है कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में कीमोथेरेपी के योग्य रोगियों की संख्या में 2018 के 63 प्रतिशत से 2040 में 67 प्रतिशत तक की एक स्थिर वृद्धि देखी जाएगी। हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया (एचसीएफआई) के अध्यक्ष डॉ.केके अग्रवाल का कहना है, “हमारे देश में कैंसर की व्यापकता एक समान नहीं है। कैंसर के प्रकारों में अंतर है जो लोगों को ग्रामीण और शहरी सेटिंग्स के आधार पर प्रभावित करता है। ग्रामीण महिलाओं में गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर सबसे व्यापक है जबकि शहरी महिलाओं में स्तन कैंसर सबसे उग्र है।”
डॉ.केके अग्रवाल ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुष माउथ कैविटी कैंसर से प्रमुख रूप से प्रभावित होते हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में फेफड़े के कैंसर से प्रभावित होते हैं। इस तरह की घटनाओं में तेजी से वृद्धि के साथ ही कैंसपर एक महामारी बन गया है। विडंबना यह है कि कैंसर की दवाएं बहुत महंगी और आम आदमी की पहुंच से परे हैं। कैंसर की सस्ती दवाएं उपलब्ध कराकर लोगों को राहत प्रदान करने के लिए इसकी दवाओं पर मूल्य नियंत्रण बहुत आवश्यक है।
डॉ.अग्रवाल ने कहा कि कैंसर संबंधित बीमारियों के संग्रह का एक नाम है जो तब होता है जब असामान्य कोशिकाओं का एक समूह अनियंत्रित रूप से बढ़ने लगता है और अक्सर एक ट्यूमर बनाता है। ट्यूमर सौम्य या घातक कैसा भी हो सकता है। हालांकि कैंसर के सही कारण का अब तक पता नहीं चला है लेकिन शोध बताता है कि कुछ जोखिम कारक किसी व्यक्ति के कैंसर के विकास की संभावना को बढ़ा सकते हैं। इनमें ऐसी चीजें शामिल हैं जिन्हें नियंत्रित नहीं किया जा सकता है जैसे उम्र और परिवार का इतिहास. जीवनशैली के विकल्प जो आपके कैंसर की संभावना को बढ़ाते हैं। जीवनशैली में धूम्रपान, मोटापा, व्यायाम की कमी और खराब आहार शामिल है।
नैदानिक निवारक देखभाल के चार प्रमुख प्रकार हैं- टीकाकरण, स्क्रीनिंग, व्यवहार परामर्श (जीवन शैली में परिवर्तन) और कीमोप्रिवेंशन। स्क्रीनिंग एक स्पशरेन्मुख रोग, अस्वास्थ्यकर स्थिति या जोखिम कारक की पहचान है। प्राथमिक रोकथाम रोग को होने से रोकने के लिए हस्तक्षेप है (जैसे, संचारी रोग के लिए टीकाकरण)। प्रारंभिक स्पशरेन्मुख रोग (जैसे स्क्रीनिंग) का पता लगाने के रूप में माध्यमिक रोकथाम और तृतीयक रोकथाम रोग की जटिलताओं को कम करने के रूप में (उदाहरण के लिए, मधुमेह के रोगियों में आंखों की जांच)। यह नामकरण कुछ अन्य विषयों द्वारा अलग तरीके से लागू किया जाता है।
–कैंसर के लक्षणों पर ध्यान दें और नियमित रूप से जांच कराएं।
-तंबाकू उत्पाद, चाहे वे किसी भी रूप में हों, के सेवन से कैंसर का खतरा बढ़ता है। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि तंबाकू कैंसर के सबसे बड़े कारकों में शामिल हैं। तंबाकू या तंबाकू उत्पादों के सेवन से बचना कैंसर की रोकथाम में सबसे महत्वपूर्ण कदम है।
-पानी के इसतेमाल में सावधानी बरतें। पानी यदि नल का है तो उसे पीने से पहले छान लें। ऐसा करने से कार्सिनोजोन्स और हार्मोन-विघटनकारी रसायनों से काफी हद तक बचान हो सकता है।
-पानी खूब पियें, अन्य तरल पदार्थों का भी सेवन करते रहें। इससे मूत्राशय के कैंसर के खतरे को कम करने में मदद मिल सकती है।
-कैंसर की संभावना को कम करने और बचाव के लिए सबसे महतवपूर्ण है जीवनशैली में बदलाव/सुधार। प्रातः जल्दी उठने और रात को जल्दी सोने को दिनचर्या का अनिवार्य हिस्सा बनाएं। नियमित व्यायाम करें। व्यायाम जरूरी नहीं कि बेहद थकाऊ टाइप के हों। सवेरे की ताजी हवा में तेज कदमों से टहलना भी बहुत अच्छा व्यायाम है। कम वसायुक्त, तेल-घी में कम से कम तला आहार लें। मौसमी फलों और सब्बियों का अधिक से अधिक सेवन करें। मौसमी फल-सब्जियों एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर होती हैं जो बीमारियों को दूर करने में मदद कर सकती हैं। इनमें भरपूर फाइबर होता है जो आंत और मलाशय के कैंसर से बचाव में मददगार हो सकता है।
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