पंकज गंगवार
अगर हम गीले कचरे और सूखे कचरे को अलग-अलग करना सीख ले तो यूरोप की तरह हमारे शहर भी साफ सुथरे हो जाएंगे और खेती में भी केमिकल फर्टिलाइजर का उपयोग कम हो जाएगा।
सरकार इसके लिए बहुत कोशिश कर रही है। अलग-अलग डस्टबिन बना रही है लेकिन मजाल क्या हम लोग उनका सही तरह से उपयोग करें। हमारे घर के बाहर जो गाड़ी कूड़ा लेने आती है उसमें भी अगर आप सुखा और गीला कचरा अलग-अलग करके भी देंगे तो वह भी उसको एक साथ मिक्स कर लेते हैं, जबकि उसकी गाड़ी में इसके लिए अलग-अलग व्यवस्था बनी होती है।
पिछले दिनों काफी दिनों बाद रेलवे स्टेशन पर अपनी पत्नी बच्चों को रिसीव करने जाना हुआ ट्रेन आने में समय था। मैने नोटिस किया की प्लेटफार्म पर गीले कचरे और सूखे कचरे के लिए अलग अलग डस्टबिन जगह-जगह पर रखे हुए थे। डस्टबिन देख कर मैं काफी इंप्रेस हुआ। पहले प्लेट फार्म पर पहले इतने डस्टबिन नहीं रखे होते थे। मैंने एक एक डस्टबिन को झांक कर देखा पर सब में सूखा और गीला कचरा एक साथ ही पड़ा हुआ था। अभी मुझे दक्षिण भारत में बेंगलुरु, मैसूर ऊटी जाना हुआ, वहां के शहरों के डस्टबिन में भी रखे हुए थे उनमें भी सूखा और गीला कचरा एक साथ ही पड़ा हुआ था।
मुझे लगता है की समस्या का एक ही समाधान है लोगों को यह शिक्षित करना कि सूखा कचरा और गीला कचरा क्या होता है। हम गांव के लोग चाहे अनपढ़ हों या पढ़े लिखे खूब अच्छे से जानते हैं, किस कूड़े का क्या करना है। मुझे आज तक अपने घर का गीला कचरा बाहर फेंकते या कूड़े वाले को देते समय यह लगता है कि कोई अनमोल खजाना मेरे घर से बाहर जा रहा है। इसलिए अधिकतर उससे कंपोस्ट घर पर ही बना लेता हूं।
समाधान सिर्फ डस्टबिन रख देना नही है, जब तक लोग उनका सही प्रयोग नहीं करेंगे तब सिर्फ धन की बरबादी ही होगी। मुझे लगता है कक्षा एक से लेकर ग्रेजुएशन तक जितने भी क्लास हैं सब में गीला कचरा और सूखे कचरे पर एक चैप्टर जरूर होना चाहिए। जितने भी कंपटीशन के एग्जाम है सब में गीला कचरा और सूखा कचरा पर सवाल जरूर होने चाहिए। शायद तभी भारत के लोग कुछ सीख समझ पाएंगे वरना ऐसे ही हमारे शहर गंदगी से सड़ते रहेंगे और खेती की जमीन ज्यादा रसायनिक उर्वरकों के प्रयोग से बंजर होती रहेगी।