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यमद्वितीया : कायस्थ 24 घंटे के लिए क्यों नहीं करते कलम का उपयोग

जब भगवान राम के राजतिलक का निमंत्रण छूट जाने से नाराज भगवान् चित्रगुप्त ने रख दी थी कलम!! उस समय परेवाकाल शुरू हो चुका था। परेवा के दिन कायस्थ समाज के लोग कलम का प्रयोग नहीं करते हैं। यानी किसी भी तरह का का हिसाब-किताब नहीं करते हैं। आखिर ऐसा क्यों है?
-भगवान चित्रगुप्त जयंती पर विशेष-

पूरी दुनिया में कायस्थ समाज के लोग दीपावली के दिन पूजन के बाद कलम रख देते हैं और फिर यमद्वितीया के दिन कलम-दवात के पूजन के बाद ही उसे उठाते हैंI इसको लेकर सर्व समाज में कई सवाल अक्सर लोग कायस्थों से करते हैं। जब इसकी खोज की गई तो इससे सम्बंधित एक बहुत रोचक घटना का संदर्भ हमें किंवदंतियों में मिलाI

कहते हैं जब भगवान् राम दशानन रावण का वध कर अयोध्या लौट रहे थे, तब उनके खडाऊं को राजसिंहासन पर रखकर राज्य चला रहे राजा भरत ने गुरु वशिष्ठ को भगवान् राम के राज्यतिलक के लिए सभी देवी-देवताओं को सन्देश भेजने की व्यवस्था करने को कहाI गुरु वशिष्ठ ने यह काम अपने शिष्यों को सौंपकर राज्यतिलक की तैयारी शुरू कर दी।

जब राज्यतिलक में सभी देवी-देवता आ गए, तो भगवान् राम ने अपने अनुज भरत से पूछा कि भगवान चित्रगुप्त नहीं दिखाई दे रहे हैं। इस पर जब खोजबीन हुई तो पता चला की गुरु वशिष्ठ के शिष्यों ने भगवान चित्रगुप्त को निमंत्रण पहुंचाया ही नहीं था, जिसके चलते वे नहीं आयेI इधर भगवान् चित्रगुप्त सब जान चुके थे और इसे प्रभु राम की महिमा समझ रहे थे। फलस्वरूप उन्होंने गुरु वशिष्ठ की इस भूल को अक्षम्य मानते हुए यमलोक में सभी प्राणियों का लेखा-जोखा लिखने वाली कलम को उठा कर किनारे रख दिया I

देवी-देवता जब राजतिलक से लौटे तो पाया कि स्वर्ग और नरक के सारे काम रुके हुए हैं। प्राणियों का लेखा-जोखा न रखे जाने के चलते यह तय कर पाना मुश्किल हो रहा था कि किसको कहां भेजा जाए।

गुरु वशिष्ठ की इस गलती को समझते हुए भगवान राम ने भगवान चित्रगुप्त की स्तुति की और गुरु वशिष्ठ की गलती के लिए क्षमायाचना की। इसके बाद भगवान राम के आग्रह को मानकर भगवान चित्रगुप्त ने लगभग 4 पहर यानी 24 घंटे बाद कलम-दवात की पूजा करने के पश्चात उसको पुनः उठाया और प्राणियों का लेखा-जोखा लिखने का कार्य आरम्भ कियाI  कहते हैं कि तभी से कायस्थ दीपावली की पूजा के पश्चात कलम को रख देते हैं और यमद्वितीया के दिन भगवान चित्रगुप्त का विधिवत कलम-दवात पूजन करने के पश्चात ही कलम को धारण करते हैं।                

-सुरेन्द्र बीनू सिन्हा

(लेखक जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता हैं)

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