लाइफस्टाइल डेस्क। शास्त्रों और पुराणों में एकादशी व्रत का बड़ा महत्व बताया गया है। एकादशी व्रत को लेकर कई मान्यताएं हैं । इनमें चावल नहीं खान भी है। इसके पीछे धार्मिक के साथ ही वैज्ञानिक कारण भी है।
मान्यता है कि महर्षि मेधा, चावल और जौ के रूप में उत्पन्न हुए थे। इसलिए चावल और जौ को जीव माना जाता है। जिस दिन महर्षि मेधा का अंश पृथ्वी में समाया, उस दिन एकादशी तिथि थी। इसलिए एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित माना गया। मान्यता है कि एकादशी के दिन चावल खाना महर्षि मेधा के मांस और रक्त का सेवन करने जैसा है।
वैज्ञानिक तथ्य के अनुसार चावल में जल तत्व की मात्रा अधिक होती है। क्योंकि चावल की खेती पूरी पानी में होती है। इसलिए इसमें पानी का प्रभाव अधिक होता है। जल पर चन्द्रमा का प्रभाव अधिक पड़ता है, क्योंकि जल को अग्नि का विपरीत माना गया। चंद्रमा को सूर्य का विपरीत इसलिए चंद्रमा का प्रभाव जल पर अधिक होता है।
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चावल खाने से शरीर में जल की मात्रा बढ़ती है। इससे मन विचलित और चंचल होता है। कारण-चंद्र का संबंध जल से है। वह जल को अपनी ओर आकर्षित करता है। यदि व्रती चावल का भोजन करे तो चंद्रकिरणें उसके शरीर के संपूर्ण जलीय अंश को तरंगित करेंगी।
परिणाम जिस एकाग्रता से उसे व्रत के अन्य कर्म-स्तुति पाठ, जप, श्रवण करने होते हैं, उन्हें सही प्रकार से नहीं कर पाएगा। मन के चंचल होने से व्रत के नियमों का पालन करने में बाधा आती है। एकादशी में मन का निग्रह और सात्विक भाव का पालन अति आवश्यक होता है इसलिए एकादशी के दिन चावल से बनी चीजें खाना वर्जित कहा गया है।