BareillyLive. हर्षित रस्तोगी। भारत में मुगल शासन के दौरान अनेक मन्दिरों का विध्वंस किया गया, लेकिन नाथ नगरी बरेली धाम के अलखनाथ मन्दिर में मुगलिया सैनिक प्रवेश नहीं कर सके थे। नाथ नगरी बरेली धाम में नैनीताल रोड पर किला क्षेत्र में स्थित बाबा अलखनाथ मन्दिर (Baba Alakhnath Temple) एक ऐसा सिद्ध स्थल है जहां महादेव शिवलिंग रूप में स्वयं प्रकट हुए थे।
बात करीब एक हजार साल पहले की है। जब बरेली का नैनीताल रोड किला क्षेत्र के चारों ओर घना जंगल था। इसी जंगल में एक वट वृक्ष के नीचे बाबा अलखिया तपस्या में लीन रहते थे। ना मौसम की परवाह और न दिन रात की। कहते हैं कि उन्हें तपस्या के दौरान ज्ञात हुआ कि जिस स्थान पर वह बैठे हैं वहीं वृक्ष के नीचे शिवलिंग है। बाबा अलखिया ने वट वृक्ष के नीचे खोदा तो वहां महादेव शिवलिंग रूप में विराजमान थे। तभी बाबा अलखिया ने यहां मन्दिर की स्थापना की और ये बाबा अलखनाथ मन्दिर (Baba Alakhnath Temple) के नाम से जाना जाता है।
बताते हैं कि 17वीं शताब्दी के आखिर में जब मुगलों का शासन शुरू हुआ तो कई मंदिर तोड़े गए। ऐसे में तमाम साधु-संतों और अन्य लोगों ने बाबा की इस तपस्थली में शरण ली। बाबा के प्रताप के कारण इस तपोवन में मुगल प्रवेश नहीं कर पाए थे।
नाथ नगरी बरेली धाम केसप्तनाथ मंदिरों में बाबा अलखनाथ मंदिर आस्था का प्रमुख केन्द्र है। नागा सम्प्रदाय के पंचायती अखाड़े द्वारा संचालित इस मंदिर की मान्यता सुदूर पहाड़ों तक है।
फिलहाल मौजूदा समय में मंदिर के मुख्य द्वार पर 51 फीट ऊंची रामभक्त हनुमान जी की कनकभूधराकार प्रतिमा है। मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही शनि शिंगणापुर जैसा शनि मन्दिर पीपल वृक्ष के नीचे स्थापित है। अन्दर सूर्य देव और बजरंग बली, माता दुर्गा के साथ ही शनि मन्दिर और पंचमुखी हनुमान प्रतिमा भी स्थापित है।
मंदिर परिसर में रामसेतु वाला पत्थर है जो पानी में डूबता नहीं है। इस बात का उल्लेख बरेली के प्राचीन देवालय पुस्तक में भी मिलता है। बताते हैं कि यहां का वट वृक्ष करीब 32 सौ साल पुराना है। वर्तमान में यहां के महंत बाबा कालू गिरि महाराज हैं।
मन्दिर के चारों ओर कई भवन हैं जिनमें साधू या बाबा रहते हैं। प्रतिदिन अलखनाथ मन्दिर में बड़ी संख्या में भक्त महादेव के दर्शन पूजन को आते हैं। यहां शुद्ध मन से महादेव का जलाभिषेक मात्र से भक्तों की मनोकामना पूर्ण हो जाती है। सावन के दिनों में हजारों की संख्या में भक्त कछला और हरिद्वार से कांवर में जल लाकर महादेव का अभिषेक करते हैं। सावन में महीने भर यहां भक्तों की भारी भीड़ रहती है। विशेषकर सावन के सोमवार में मेला लगता है।
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