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इलाहाबाद। सभी सरकारी अधिकारी और सरकार से वेतन या अन्य लाभ ले रहे लोग सरकार द्वारा संचालित अस्पतालों में ही इलाज करायें। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए यह सुनिश्चित करने का निर्देश राज्य सरकार दिया। कोर्ट ने कहा कि यदि चिकित्सा सेवा निजी अस्पताल से ली जाती है तो सरकार को इलाज के खर्च की प्रतिपूर्ति नहीं करनी चाहिए। साथ ही कहा कि सरकारी अस्पतालों में विशिष्ट लोगों को इलाज के दौरान खास तबज्जों नहीं दी जानी चाहिए।

जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस अजित कुमार की पीठ ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश पारित किया। इस याचिका में उत्तर प्रदेश में सरकारी अस्पतालों में दयनीय स्थिति की ओर अदालत का ध्यान आकर्षित किया गया था। ये निर्देश पारित करते हुए अदालत ने कहा कि यदि चिकित्सा सेवा निजी अस्पताल से ली जाती है तो सरकार को इलाज के खर्च की प्रतिपूर्ति नहीं करनी चाहिए। हालांकि ऐसे मामलों में जब अमुक बीमारी का इलाज सरकारी अस्पताल में उपलब्ध नहीं हो तो उक्त शर्त लागू नहीं होगी।

निजी प्रैक्टिस में लगे चिकित्सा अधिकारियों पर दर्ज करायें FIR

अदालत ने सरकारी अस्पतालों में मेडिकल, पैरा मेडिकल एवं अन्य कर्मचारियों के रिक्त पदों को भरने के लिए तत्काल कदम उठाने का भी निर्देश दिया। अदालत ने अस्पतालों में कुप्रबंधन, उपलब्ध कराए गए धन और खर्च के संबंध में कैग के जरिए राज्य के मेडिकल कालेजों का अंकेक्षण कराने का भी निर्देश दिया।

अदालत ने महानिदेशक (सतर्कता) को निजी प्रैक्टिस, निजी अस्पताल और नर्सिंग होम चलाने में लगे राज्य सरकार के चिकित्सा अधिकारियों का पता लगाने के लिए विशेष टीमें गठित करने और उनके खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज कराने का निर्देश दिया।

इस अदालत के समक्ष गलत हलफनामा दाखिल करने के लिए पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार के प्रधान सचिव (चिकित्सा शिक्षा) रजनीश दूबे और इलाहाबाद मेडिकल कालेज के प्रधानाचार्य डाक्टर एस.पी. सिंह को नोटिस जारी कर उनसे पूछा कि गलत हलफनामा दाखिल करने के लिए उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों न शुरू की जाए। अदालत ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को इन निर्देशों को ध्यान में रखने और इनका अनुपालन कराने का निर्देश दिया।

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