लखनऊ। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नोएडा की रियल एस्टेट कंपनी सुपरटेक एमेरल्ड (Supertech Emerald) द्वारा अवैध रूप से दो 40-मंजिला ट्विन टॉवर बनाए जाने के मामले की जांच के लिए तत्काल शासन स्तर पर एसआईटी (विशेष जांच दल) गठित करने का निर्देश दिया है। साथ ही शासन को निर्देश दिया है कि वर्ष 2004 से 2017 तक इस प्रकरण से जुड़े रहे प्राधिकरण के सभी अधिकारियों की सूची बनाकर जवाबदेही तय की जाए। मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद एसआईटी गठित कर दी गई है।
मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने कहा कि जनहित को बड़ा नुकसान पहुंचाने वाले इस प्रकरण में समयबद्ध सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए। इस प्रकरण में दोषी हर एक अधिकारी को चिन्हित कर उसके खिलाफ मुकदमा भी दर्ज कराएं। नोएडा प्राधिकरण सहित विभिन्न विभागों के सभी छोटे और बड़े अधिकारी-कर्मचारियों की भूमिका की गहन जांच कराई जाए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अक्षरश: पालन करते हुए इस मामले में निवेशकों की पाई-पाई लौटाई जाएगी।
गौरतलब है कि नोएडा प्राधिकरण की मिलीभगत से नियम विरुद्ध तरीके से बनाए गए सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट के ट्विन टावर्स को ध्वस्त करने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया है। इस मामले को गंभीरता से लेते हुए मुख्यमंत्री ने बुधवार के बाद गुरुवार को भी अपने सरकारी आवास पर उच्च स्तरीय बैठक बुलाई। उन्होंने कहा कि 2004 से 2012 के बीच अलग-अलग समय पर प्रोजेक्ट को अनुमति दी जाती रही। इसमें तत्कालीन अधिकारियों-कर्मचारियों की संदिग्ध भूमिका पाई गई है।
https://6e6338d34cf0493b0bf638a6223c3133.safeframe.googlesyndication.com/safeframe/1-0-38/html/container.html सुप्रीम कोर्ट के मंगलवार के आदेश के अक्षरश: पालन के निर्देश देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि आम आदमी के हितों से खिलवाड़ करने वाला एक भी दोषी न बचे, इसके लिए एक विशेष समिति गठित कर जांच कराई जाए।
यह मामला 2004 से 2012 के बीच का है। इस दौरान प्रदेश में सपा और बसपा की सरकारें रहीं। मामला जब इलाहाबाद हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट गया, तब भी अधिकारी बिल्डर को लाभ पहुंचाने के लिए तथ्यों को छुपाते रहे। ऐसे में जांच समिति की रिपोर्ट के आधार पर अब तो कई अधिकारी-कर्मचारियों पर कार्रवाई तय है।
– ग्रुप हाउसिंग भूखंड संख्या जीएच 4, सेक्टर-93 ए, नोएडा का आवंटन और मानचित्र स्वीकृति का मामला वर्ष 2004 से 2012 के बीच का है। भूखंड का कुल क्षेत्रफल 54815 वर्ग मीटर है। मानचित्र स्वीकृति समय-समय पर वर्ष 2005, 2006, 2009 और 2012 में दी गई।
– 2012 में रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की जिसमें मुख्य बिन्दु यह उठाया गया कि नेशनल बिलडंग कोड-2005 और नोएडा भवन विनियमावली-2010 में दिए प्रविधानों के विपरीत टावर संख्या टी-16 और टी-17 के बीच न्यूनतम दूरी नहीं छोड़ी गई है। वहां रहने वाले निवासियों से सहमति नहीं ली गई है।
– अप्रैल 2014 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने टावर संख्या टी-16 और टी-17 को ध्वस्त करने के साथ-साथ बिल्डर व प्राधिकरण के तत्कालीन दोषी कार्मिकों/अधिकारियों के खिलाफ नियमानुसार कार्रवाई का आदेश दिया।
– हाईकोर्ट के आदेश के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष याचिका पर 31 अगस्त 2021 को विस्तृत आदेश आया।
– सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि टावर संख्या टी-16 और टी-17 को तीन माह के अंदर सुपरटेक लिमिटेड के खर्च पर सीबीआरआइ की देखरेख में ध्वस्त किया जाए। दोनों टावरों के जिन आवंटियों को धनराशि वापस नहीं की गई है, उन्हें 12 प्रतिशत ब्याज के साथ रुपये वापस किये जायें। – प्राधिकरण के तत्कालीन चीफ इंजीनियर यादव सिंह को छोड़कर घोटालों में संलिप्त रहे बाकी अधिकारी अब भी खुले घूम रहे। कई अधिकारियों ने तो बिल्डर प्रोजेक्टों में अपना पैसा तक निवेश कर रखा है।
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