बता दें कि उत्तर प्रदेश में जब समाजवादी पार्टी की सरकार होती है, तो हर महत्वपूर्ण पदों पर, विकास प्राधिकरणों, पुलिस कप्तान, थाना प्रभारी या अन्य सरकारी विभागों के अधिकांश महत्वपूर्ण पदों पर यकायक यादवों की तैनाती हो जाती है। इससे विपक्षी कहने लगते हैं कि यह सरकार समाजवादी नहीं परिवारवादी और यादववादी है। कई बार मुस्लिमपरस्त होने के आरोप भी सपा सरकार को झेलने पड़ते हैं।
इसी यादव वादी होने के आरोप में शुक्रवार को अखिलेश यादव ने कहा कि “प्रधानमंत्री कहते थे कि उत्तर प्रदेश के थानों को यादव चला रहे हैं। जाति के आधार पर वे ऐसा कहते थे। किसी पुलिस अधिकारी के नाम के आगे यादव लिखा होता तो वे कहते कि रिश्तेदार है उनका। हम भी पूछना चाहते हैं कि अगर यादव-यादव रिश्तेदार है तो पैसे ले जाने वाला रिश्तेदार किसका है। उन्होंने यह सवाल पीएनबी घोटाले के आरोपी नीरव मोदी को लेकर पीएम नरेन्द्र मोदी से किया?
इस सवाल के इतर यदि अखिलेश यादव अपनी फेसबुक आईडी पर खुद के द्वारा लगायी गयी प्रोफाइल फोटो देख लेते तो शायद सवाल पूछना भूल जाते?
फेसबुक पर अखिलेश यादव को सर्च करने पर कई आईडी आती हैं। इनमें से एक आईडी के कवर फोटो में अखिलेश यादव का साइकिल चलाते हुए कार्टून लगा है। वहीं प्रोफाइल पिक्चर में अखिलेश का एक कार्टून लगा है जिसके पीछे बैकग्राउण्ड में सिर्फ यादव-यादव (yadav) लिखा है। ऐसे में सवाल फिर आ जाता है कि क्या अखिलेश यादव केवल और केवल यादवों के ही नेता हैं?
अखिलेश ने जनसभा में यह भी कहा कि बड़े ही करीने से खुद को बैकवर्ड क्लास के लीडर के रूप में और विकासवादी सोच को भी पेश करने का काम किया। लेकिन क्या केवल यादव जाति ही पिछड़ी जाति है। ओबीसी यानि अन्य पिछड़ा वर्ग की अन्य दो दर्जन से ज्यादा जातियां क्या पिछड़ी नहीं रहीं।
हर बात पर बयानों को तोड़मरोड़ कर पेश करने वाली बात कहकर अखिलेश और उनके समर्थक इस फेसबुक आईडी को नकार भी सकते हैं। लेकिन ऐसे में सवाल ये भी कि क्या कोई मुख्यमंत्री या निवर्तमान मुख्यमंत्री और एक बड़ी पार्टी के मुखिया के नाम से सोशल मीडिया पर आईडी बनाकर एक्टिव रह सकता है?
2012 में जब अखिलेश यादव को समाजवादी पार्टी के मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाया गया था तो जनता को उम्मीद थी कि विदेश में पढ़े अखिलेश यादव की सोच उनके पिता और चाचा के मुकाबले कुछ प्रगतिवादी होगी। शुरू में यह संकेत मिले भी लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया अखिलेश भी यादव-मुस्लिम के समीकरणों में पूरी तरह उलझ गये। अब उनकी फेसबुक आईडी पर लगी प्रोफाइल पिक्चर ने उनकी इस जातिवादी संकीर्ण सोच को पूरी तरह उजागर कर दिया है। हालांकि जनता इस यादववाद से प्रताड़ित हो चुकी थी और उसने 2017 में सत्ता भाजपा को सौंपकर समझाने का प्रयास किया। इसके बावजूद अखिलेश अपनी सोच बदलने को तैयार नहीं प्रतीत होते। यही हाल रहा तो आने वाले दशक में प्रधानमंत्री पद का दावेदार होने का सपना देखने वाले एक युवा नेता को जनता एक जातिगत संगठन का नेता का ही स्थायी ठप्पा लगा देगी।
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