सनातन भारतीय संस्कृति में एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है करवाचौथ। करवाचौथ का व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है। इस बार यह 27 अक्टूबर को किय जाएगा। इस व्रत में शाम को व्रत परायण के समय करवाचौथ की कहानी पढ़ी जाती है। यहां पढ़ें व्रत की कहानी और जानें पूजा का समय –
ज्योतिर्विद डॉ. नरेश चंद्र मिश्रा के अनुसार इस बार पूजा मुहूर्त- सायंकाल 6ः35 से रात 8ः00 बजे का है। इसी समयावधि में पूजन करना शुभ फलदायी है। किन्तु अर्घ्य रात्रि 8 बजे के बाद दें। चंद्रोदय- सायंकाल 7ः38 बजे के बाद होगा तथा चतुर्थी तिथि आरंभ– 27 अक्टूबर को रात में 07ः38 बजे होगा।
एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। सेठानी के सहित उसकी बहुओं और बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा था। रात्रि को साहकार के लड़के भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी बहन से भोजन के लिए कहा। इस पर बहन ने बताया कि उसका आज उसका व्रत है और वह खाना चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही खा सकती है। सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। जो ऐसा प्रतीत होता है जैसे चतुर्थी का चांद हो।
उसे देख कर करवा उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है। जैसे ही वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और तीसरा टुकड़ा मुंह में डालती है तभी उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बेहद दुखी हो जाती है।
उसकी भाभी सच्चाई बताती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं। इस पर करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं करेगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।
एक साल बाद फिर चौथ का दिन आता है, तो वह व्रत रखती है और शाम को सुहागिनों से अनुरोध करती है कि ’यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो’ लेकिन हर कोई मना कर देती है। आखिर में एक सुहागिन उसकी बात मान लेती है। इस तरह से उसका व्रत पूरा होता है और उसके सुहाग को नये जीवन का आशीर्वाद मिलता है। सभी व्रत करने वाली महिलाएं इसी कथा को कुछ अलग तरह से पढ़ती और सुनती हैं।
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