BareillyLive, अन्सफ शम्सी। नाथ नगरी के नाम से मशहूर बरेली में खानकाह-ए- नियाजिया (Khanqah-e-Niyazia), एक ऐसी जगह है जहां हिन्दू और मुसलमान दोनों ही सजदा करते हैं। सूफी संगीत के माध्यम से दुनिया को शान्ति का पैगाम देने वाली ये दरगाह बरेली की शान है। इस खानकाह की स्थापना हजरत शाह नियाज़ अहमद ने की थी। इस खानकाह में लोंगो का सिर्फ एक मजहब है, इंसानियत।
यहाँ साल में एक बार मन्नतों के चिराग रोशन किये जाते हैं। इस पर्व को जश्न-ए-चिरागा (Jashn-e-chiraga) के नाम से जाना जाता है। कहते हैं कि इस जश्न-ए-चिरागां के अवसर पर खानकाह पर मांगी गई मन्नत एक साल के भीतर पूरी हो जाती है।
खानकाह-ए-नियाजिया के प्रबंधक शब्बू मियां के अनुसार यहाँ ये सिलसिला 300 से अधिक वर्षो से चल रहा है। खानकाह के बुजुर्ग हजरत शाह नियाज अहमद को गौस पाक ने बिशारत दी। कहा कि अगर खानकाह में 17वीं रबीउल दिन कोई अपना चिराग रोशन करेगा तो उसकी हर जायज मुराद एक साल के भीतर जरूर पूरी होगी। तभी से ये सिलसिला लगातार चल रहा है। मुराद पूरी होने के बाद लोग यहाँ पर अगले साल एक चांदी का और 11 मिट्टी के चिराग रोशन करते हैं।
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