प्रवर्तन निदेशालय ने उत्तर प्रदेश की जांच एजेंसियों से उन घोटालों की सूची मांगी है जिनमें पांच करोड़ रुपये से ज्यादा के घोटाले से जुड़े हुए हैं। ईडी की तरफ से इस संबंध में इन एजेंसियों को पत्र लिखे गए हैं।
लखनऊ । करीब 1400 करोड़ रुपये के स्मारक घोटाले में बसपा सुप्रीमो मायावती पर शिकंजा कस गया है। तीन साल से लगभग ठंडे बस्ते में पड़ी इसकी जांच में तेजी लाते हुए प्रवर्तन निदेशालय (ED) की टीम ने गुरुवार को लखनऊ और नोएडा में कई स्थानों पर छापेमारी की। मायावती के मुख्यमंत्री रहने के दौरान लखनऊ और नोएडा में कई स्मारकों का निर्माण किया गया था जिसकी जांच अब अंतिम दौर में है।
ईडी ने उत्तर प्रदेश की सभी जांच एजेंसियों से उन सभी घोटालों की सूची मांगी है जिनमें पांच करोड़ से ज्यादा के घोटाले से जुड़े हुए हैं। इस संबंध में ईडी की तरफ से सभी एजेंसियों को पत्र लिखे गए हैं। ईडी ने सीबीसीआईडी, ईओडब्ल्यू, एसआईटी, विजिलेंस और ऐंटी करप्शन ऑर्गेनाइजेशन को पत्र लिखकर जानकारी मांगी है कि उनके यहां पांच करोड़ से ज्यादा के घोटाले के कौन-कौन से मामले हैं, इन सभी मामलों की क्या स्थिति है, कितने में चार्जशीट हो चुकी है और कौन से मामले ट्रायल पर हैं। एजेंसियों को भेजे गए इन पत्रों के जरिए ईडी स्मारक घोटाले जैसे मामलों का ब्यौरा जुटाएगी।
स्मारक घोटाले में सतर्कता अधिष्ठान (विजिलेंस) के साथ ही ईडी ने भी मामला दर्ज कर रखा है। लंबे समय से विजिलेंस की जांच आगे नहीं बढ़ रही है। इस मामले में अभी तक विजिलेंस की तरफ से आरोप पत्र भी नहीं दाखिल किए गए हैं। कोई छापेमारी और गिरफ्तारी भी नहीं हुई है। इसके चलते प्रवर्तन निदेशालय की जांच भी आगे नहीं बढ़ पा रही है। इस मामले की जांच में बसपा सरकार के दो कद्दावर मंत्रियों नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा समेत तीन दर्जन से ज्यादा इंजीनियरों और अन्य विभागों के अधिकारियों का फंसना तय माना जा रहा है। तमाम दुश्वारियों के बाद विजिलेंस इस मामले में जल्द अपनी रिपोर्ट शासन को सौंपने की तैयारी में है। हालांकि सतर्कता अधिष्ठान इससे पहले विधिक राय भी लेगा ताकि कोई भी आरोपी कानून के शिकंजे से बचने में कामयाब न हो सके।
सपा सरकार ने लोकायुक्त की जांच रिपोर्ट मिलने के बाद विजिलेंस को इसकी जांच का जिम्मा सौंपा था। विजिलेंस ने जांच के बाद पांच साल पहले लखनऊ के गोमती नगर थाने में करीब सौ आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करायी थी।
तीन साल ठंडे बस्ते में पड़ी रही जांच
मुकदमा दर्ज होने के तीन साल बाद तक इस मामले की जांच ठंडे बस्ते में पड़ी रही। यहां तक कि आरोपी पूर्व मंत्रियों के बयान तक दर्ज नहीं किए गये थे। उत्तर प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद विजिलेंस में स्मारक घोटाले की फाइलों पर से धूल हटानी शुरू की गई। मामलो की जांच के लिए सात इंस्पेक्टरों की एक एसआईटी टीम का गठन भी किया गया जो जल्द ही इस मामले में अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचकर अपनी रिपोर्ट शासन को सौंपने की तैयारी में है। शासन में अपनी रिपोर्ट पेश कर विजिलेंस सभी आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने की अनुमति मांगेगी। लोकसभा चुनाव के नजदीक आने के साथ ही सूबे में बढ़ती सियासी सरगर्मियों के बीच यदि यह रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है तो बसपा की परेशानियों में इजाफा होना तय है क्योंकि इसमें उसके मंत्रियों के साथ कई विधायकों की भूमिका भी है।
विजिलेंस ने डेढ़ साल पहले स्मारक घोटाले के दो आरोपों की जांच पूरी कर शासन से आरोपियों के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति मांगी थी। निर्माण निगम के तत्कालीन प्रबंध निदेशक समेत तमाम इंजीनियर्स, खनन महकमे के निदेशक व संयुक्त निदेशक के खिलाफ गृह विभाग में अभियोजन स्वीकृति मांगे जाने का यह मामला लंबित है। विजिलेंस ने भूतत्व एवं खनिकर्म विभाग के तत्कालीन निदेशक रामबोध मौर्या, संयुक्त निदेशक सुहेल अहमद फारुकी, निर्माण निगम के सीपी सिंह, राकेश चंद्रा, केआर सिंह, राजीव गर्ग, एके सक्सेना, एसके त्यागी, कृष्ण कुमार, एस. कुमार, चौधरी, एसके अग्रवाल, आरके सिंह, केके कुंद्रा, कामेश्वर शर्मा, राजीव गर्ग, मुकेश कुमार, एसपी सिंह, मुरली मनोहर सक्सेना, एसके वर्मा, पीके शर्मा, एसएस तरकर, बीके सिंह, एके गौतम, बीडी त्रिपाठी, एके सक्सेना, एसपी गुप्ता, एसके चौबे, हीरालाल, एसके शुक्ला, एसएस अहमद, राजीव शर्मा, एए रिजवी, पीके जैन, राजेश के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति मांगी थी। स्मारक घोटाले की जांच की जद में आए मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा और नसीमुद्दीन सिद्दीकी अब बसपा में नहीं हैं। बाबू सिंह कुशवाहा एनआरएचएम घोटाले में भी फंस चुके हैं।