सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद अब किसानों को अपनी जमीन वापस नहीं मिलेगी। शीर्ष अदालत के इस फैसले का असर किसानों के साथ उन डेढ़ लाख लोगों पर भी पड़ेगा जिन्होंने नोएडा एक्सटेंशन की बिल्डर परियोजनाओं में अपने फ्लैट बुक करा रखे हैं। मालूम हो कि किसानों ने भूमि अधिग्रहण को चुनौती देते हुए अपनी जमीन वापस मांगी थी।
यह मामला नोएडा, ग्रेटर नोएडा के 65 गावों से जुड़ा है। इसमें नोएडा एक्सटेंशन में प्रस्तावित बिल्डरों की परियोजनाएं भी आती हैं। नोएडा, ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी ने भी हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी और मुआवजा बढ़ाए जाने का विरोध किया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले पर मुहर लगाते हुए प्राधिकरण की याचिकाएं पहले ही खारिज कर दी थीं।
हाईकोर्ट से पहले ही मिला किसानों को झटका –
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 21 अक्टूबर 2011 को दिए गए फैसले में नोएडा और ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी को निर्देश दिया था कि वह किसानों को 64.7 फीसद बढ़ा हुआ मुआवजा और 10 फीसद विकसित भूखंड दे। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर मुहर लगाई थी। नोएडा एक्सटेंशन में फ्लैट लेने वालों के लिए यह बड़ी राहत थी, जबकि किसानों के लिए यह एक बड़ा झटका।
ये किसान का पक्ष-
किसानों ने भूमि अधीग्रहण गैर कानूनी बताते हुए की इसे रद करने की अपील की थी। उन्होंने दलील दी कि सरकार ने आपात उपबंध लगाकर उनकी जमीन अधिग्रहीत कर ली और उन्हें आपत्ति रखने का मौका तक नहीं दिया। उन्होंने कोर्ट से कहा कि अधिग्रहीत जमीनें ज्यादा कीमत पर बिल्डरों को केवल 5.5 फीसद प्रीमियम लेकर दस और बीस साल के लिए लीज दे दी। दे दी गईं। बिल्डरों को जमीन देते समय मास्टर प्लान भी तैयार नहीं था। किसानों प्राधिकरण पर बिल्डरों को जमीन देकर कमाई अवैध कमाई करने का आरोप लगाया था। किसानों ने अपील में जमीन वापस दिलाने की मांग सुप्रीम कोर्ट से की थी।
उधर बादलपुर और साधोपुर गांव के भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाले वकील ब्रम्ह सिंह नागर का कहना था कि उनका मामला बाकी मामले से अलग है। उनकी जमीन वर्ष 2008 में आपात उपबंध लगाकर अधिग्रहीत की गई और उन्होंने तभी हाई कोर्ट में उसे चुनौती दे दी थी। उन लोगों ने मुआवजा भी नहीं लिया है। नागर की दलील थी कि जिस तरह हाई कोर्ट ने तीन गावों का अधिग्रहण रद किया था उसी तरह उनके अधिग्रहण भी रद होने चाहिए। उनकी जमीन औद्योगिक विकास के लिए ली गई थी जबकि वहां मैमोरियल पार्क और हेलीपैड बना दिया गया।
बिसरख में इंडस्ट्रियल यूज के लिए जमीन का अधिग्रहण किया गया था। बाद में लैंडयूज चेंज कर इसे बिल्डरों कोअलॉट कर दिया गया। 2008 में ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी ने अर्जेंसी क्लाज लगाकर बिसरख में 608 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहीत की । 12 मार्च 2008 को धारा 4 की कार्रवाई हुई। 30 जून 2008 को धारा 6 की कार्रवाई की गई। 28 फरवरी 2009 को अथॉरिटी ने जमीन पर पजेशन ले लिया।
1 लाख फ्लैट बनने हैं बिसरख में-
वैसे तो बिसरख ग्रेटर नोएडा वेस्ट ‘नोएडा एक्सटेंशन‘ का पार्ट है, लेकिन अथॉरिटी के दस्तावेजों में इसे सेक्टर 1 बताया है। सेक्टर 1 में करीब 35 बिल्डरों को प्लॉट अलॉट किए गए हैं। यहां करीब एक लाख फ्लैट बनने हैं। फिलहाल बिसरख का 80 पर्सेंट एरिया खाली पड़ा है।
कई गांवों के किसान गए सुप्रीम कोर्ट-
दरअसल जमीन अधिग्रहण के खिलाफ सबसे पहले 12 मई, 2011 इलाहाबाद हाई कोर्ट ने शाहबेरी की 156 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण रद्द कर दिया था। शाहबेरी के किसानों ने जमीन अधिग्रहण के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने भी हाई कोर्ट का निर्णय बरकरार रखा। इसके अगले ही दिन 13 मई को सूरजपुर गांव में 72 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण निरस्त किया गया। 30 मई को गुलिस्तानपुर 170 हेक्टेयर जमीनका अधिग्रहण निरस्त कर दिया।
इसके बाद पतवाड़ी, बिसरख, ऐमनाबाद समेत नोएडा एक्सटेंशन के तमाम गांवों के किसानों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की। किसानों की याचिका पर 21 अक्टूबर, 2011 को फैसला सुनाते हुए हाई कोर्ट ने ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी को किसानों को 64.7 पर्सेंट मुआवजा बढ़ाकर देने और 6 की जगह 10 पर्सेंट विकसित प्लॉट देने का आदेश दिया।
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