देहरादून : राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द रविवार और सोमवार को उत्तराखंड (हरिद्वार-ऋषिकेश) के दो दिवसीय दौरे पर रहे और दोनों जगह कई कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। इस दौरान उन्होंने गंगा और भारत को एक दूसरे का पूरक बताया।
रविवार को राष्ट्रपति पत्नी सविता कोविन्द और पुत्री स्वाति के साथ परमार्थ निकेतन आश्रम, ऋषिकेश में थे जहां आचार्यों ने पुष्प वर्षा, शंख ध्वनि व मंत्रोच्चार के साथ स्वागत किया। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती ने राष्ट्रपति व सविता कोविन्द का इलाइची की माला पहनाकर स्वागत किया। इसके बाद उन्होंने सांध्यकालीन गंगा आरती में भाग लिया। आरती से पूर्व राष्ट्रपति ने परिवार के साथ गंगा तट पर विश्व शांति के लिए यज्ञ में आहुति दी।
गंगा तट पर अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने कहा कि वह मोक्षदायिनी गंगा के तट पर आकर स्वयं को अभिभूत महसूस कर रहे हैं। यह वास्तव में हृदय को स्पर्श करने वाला क्षण है। गंगा के बारे में जितना कहा जाए कम है। सृष्टिकर्ता ने अपने कर कमलों से विश्व कल्याण के लिए ही गंगा को भारत भूमि पर भेजा है। हमें भी गंगा के प्रति अपनी मर्यादाओं का पालन करना होगा। कहा कि गंगा गंगोत्री से उत्पन्न होती है और गंगा सागर में विसर्जित हो जाती है। इतनी लंबी यात्रा में गंगा ने अपना नाम और चरित्र नहीं छोड़ा, यही गंगा की सार्थकता है। गंगा के बिना भारत अधूरा है और भारत के बिना गंगा। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि वह विश्व के कई देशों में गए। स्विट्जरलैंड जैसे खूबसूरत देश में भी लोग भारतीय संस्कृति, अध्यात्म व शांति को याद करते हैं। यह हम सबके लिए गौरव की बात है।
स्वामी चिदानंद सरस्वती ने राष्ट्र की सेवा के लिए राष्ट्रपति की प्रतिबद्धता और उनके अद्भुत नेतृत्व के साथ कुंभ मेला प्रयागराज यात्रा की स्मृतियों को ताजा किया। कहा कि यह यात्रा स्वयं से स्वयं की यात्रा है, अनेकता से एकता की यात्रा है।
परमार्थ निकेतन में राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द के आगमन पर गंगा आरती कार्यक्रम में विश्व प्रसिद्ध ग्रैमी पुरस्कार विजेता गायिका स्नातम कौर आनलाइन जुड़ीं। उनके साथ ग्रैमी पुरस्कार से सम्मानित देवा प्रेमल और मितेन, कृष्णा दास, सीसी व्हाइट और अन्य साथियों ने ‘गंगा गान’ (गंगा एंथम) प्रस्तुत किया। यह गान गंगा को प्रदूषण से बचाने और संरक्षित करने का संदेश देता है।
इससे पूर्व राष्ट्रपति हरिद्वार में पंतजिल योगपीठ पहुंचे जहां वे पतंजलि विवि के दीक्षांत समारोह में शामिल हुए। कहा कि दस से पंद्रह वर्ष पूर्व भारत में योग को एक तपस्या माना जाता था। लोग समझते थे कि संन्यासी ही योग कर सकते हैं लेकिन स्वामी रामदेव ने योग की परिभाषा को बदल दिया है। आज चाहे कोई भी व्यक्ति चाहे वह रेलवे स्टेशन और कहीं प्रतीक्षा के कक्ष में बैठा हो, वह अनुलोम-विलोम आदि करता हुआ मिल जाएगा। योग की लोकप्रियता को बढ़ाने में योग गुरु बाबा रामदेव के प्रयासों की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि आज योग से अनगिनत लोगों को फायदा पहुंचा है। भारत सरकार के प्रयासों से संयुक्त राष्ट्र संघ ने योग दिवस घोषित किया। 2016 में यूनेस्को ने विश्व की अमूल्य धरोहर की सूची में योग को शामिल किया। उन्होंने कहा कि योग पंथ संप्रदाय से नहीं जुड़ा है,
बल्कि शरीर और मन को स्वस्थ रखने की यह पद्धति है। इसलिए योग को हर विचारधारा के लोगों ने अपनाया। सूरीनाम और क्यूबा का उदाहरण देते हुए कहा कि साम्यवादी देशों में भी अंतरराष्ट्रीय योग दिवस समारोह धूमधाम से आयोजित किया जाता है।
राष्ट्रपति ने प्रकृति के अनुरूप जीवनशैली अपनाने पर जोर दिया। कहा कि, प्राकृतिक उत्पादों का प्रयोग करना लाभदायक होगा। पतंजलि शिक्षण संस्थान के माध्यम से देश की ज्ञान परपंरा को संपूर्ण विश्व प्रसारित किया जा सकेगा। ऐसे में विदेशी विद्यार्थी भारतीय मूल्यों और विचारों का प्रचार-प्रसार कर सकेंगे। इसमें पतंजलि विश्वविद्यालय का अहम योगदान रहेगा। कहा कि, अप्रैल के महीने में उनका पतंजलि आगमन कार्यक्रम बना था लेकिन, कोविड-19 के चलते स्थगित हो गया था। उन्होंने कहा कि एक अच्छा कार्य जो अधूरा रह गया था वह आज स्वस्थ और उत्साह भरे वातावरण में पूरा हो रहा है। पुरस्कार प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को बधाई देते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि देवभूमि में आना हर किसी के लिए सौभाग्य की बात होती है।
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