तय से अधिक फीस वसूलने पर स्कूल प्रबंधन पर पहली बार एक लाख रुपये और दूसरी मर्तबा पांच लाख रुपये आर्थिक दंड लगाया जाएगा। तीसरी बार ऐसा करने पर उनकी मान्यता रद्द कर दी जाएगी।
निजी स्कूलों की मनमानी फीस वसूली पर अंकुश लगाने के लिए सरकार अध्यादेश लाने जा रही हैै। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई कैबिनेट बैठक में उप्र स्ववित्तपोषित स्वतंत्र विद्यालय (शुल्क का निर्धारण) अध्यादेश, 2018 के प्रारूप को मंजूरी दे दी गई है।
कैबिनेट बैठक के बाद इस फैसले की जानकारी उप मुख्यमंत्री डॉॅ.दिनेश शर्मा ने दी। उन्होंने बताया कि सरकार जल्द ही यह अध्यादेश लाएगी। प्रस्तावित अध्यादेश उन सभी निजी स्कूलों पर लागू होगा जिनका वार्षिक शुल्क 20 हजार रुपये से अधिक है। इसके दायरे में यूपी बोर्ड, सीबीएसई, आइसीएसई व अन्य बोर्ड से मान्यताप्राप्त/संबद्ध सकूल सहित वे विद्यालय भी आएंगे जिन्हें अल्पसंख्यक दर्जा हासिल है। यह व्यवसथा प्री-स्कूलों पर लागू नहीं होगी।
उप मुख्यमंत्री के साथ मौजूद अपर मुख्य सचिव माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा संजय अग्रवाल ने बताया कि फीस वृद्धि का यह फॉर्मूला शैक्षिक सत्र 2018-19 से लागू होगा। इसके लिए सत्र 2015-16 को आधार वर्ष माना गया है। उन्होंने बताया कि प्रस्तावित अध्यादेश में यह व्यवस्था है कि स्कूल को अगले शैक्षिक सत्र की शुरुआत से 60 दिन पहले आगामी सत्र में प्रस्तावित फीस को अपनी वेबसाइट या नोटिस बोर्ड पर प्रदर्शित कर उसे सार्वजनिक करना होगा। पहली बार यह व्यवस्था लागू होने पर स्कूल को शैक्षिक सत्र की शुरुआत के 30 दिनों के अंदर फीस को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करना होगा।
छात्रों से वसूली जाने वाली फीस को दो वर्गों में बांटा गया है-संभावित और वैकल्पिक शुल्क संघटक। संभावित शुल्क संघटक के तहत विवरण पुस्तिका व पंजीकरण शुल्क, प्रवेश शुल्क, परीक्षा शुल्क और संयुक्त वार्षिक ट्यूशन फीस शामिल होगी। स्कूल छात्रों से विवरण पुस्तिका और पंजीकरण शुल्क सिर्फ प्रवेश के समय ले सकेंगे। प्रवेश शुल्क स्कूल में दाखिले के समय सिर्फ एक बार लिया जाएगा। छात्रों से कोई कैपिटेशन शुल्क नहीं लिया जाएगा।
डॉ.दिनेश शर्मा ने बताया कि प्रस्तावित अध्यादेश में प्रावधान है कि निजी स्कूल अभिभावकों को किसी दुकान विशेष से किताब-कापियां, यूनीफॉर्म, जूते-मोजे व स्टेशनरी खरीदने के लिए बाध्य नहीं कर सकेंगे।
पांच साल से पहले नहीं बदलेगी यूनीफॉर्म
अभिभावकों को शोषण से बचाने के लिए अध्यादेश के ड्राफ्ट में यह भी व्यवस्था की गई है कि निजी स्कूल पांच साल से पहले विद्यार्थियों की यूनीफॉर्म नहीं बदल सकेंगे। यदि निजी स्कूल पांच साल से पहले ऐसा करते हैं तो उन्हें मंडलायुक्त की अध्यक्षता में गठित मंडलीय शुल्क नियामक समिति से मंजूरी लेनी होगी। इसके लिए अभिभावक संघ की सहमति भी जरूरी होगी।
वैकल्पिक शुल्क संघटक के तहत विभिन्न क्रियाकलापों और स्कूल की ओर से दी गईं सुविधाओं के लिए देय शुल्क शामिल होगा जिसे जमा करना बाध्यकारी नहीं होगा। इसमें आवागमन, बोर्डिंग व भोजन की सुविधाओं, शैक्षिक भ्रमण, स्थानीय दौरा तथा अन्य क्रियाकलापों के लिए निर्धारित शुल्क शामिल होगा। जो छात्र यह सुविधा लेना चाहेंगे, उनके अभिभावकों को उसके लिए तय फीस देनी होगी। प्रत्येक फीस के लिए छात्रों को रसीद दी जाएगी।
प्रत्येक विद्यालय का एक कोष होगा जिसमें छात्रों को दी गईं सुविधाओं के लिए उनसे प्राप्त धनराशि और स्कूल परिसर में आयोजित व्यावसायिक गतिविधियों से होने वाली आय शामिल होगी। व्यावसायिक गतिविधियों से प्राप्त होने वाली आय स्कूल के खाते में जमा की जाएगी, प्रबंध समिति/ट्रस्ट के खाते में नहीं।
फीस को लेकर स्कूल के छात्रों व उनके अभिभावकों तथा अभिभावक संघ की शिकायतों के निस्तारण के लिए मंडलायुक्त की अध्यक्षता में मंडलीय शुल्क विनियामक समिति गठित की जाएगी जिसे सिविल व अपीलीय अदालत की शक्तियां प्राप्त होंगी। अधिसूचित फीस से अधिक लिये गए शुल्क को छात्र को वापस करने के निर्देश के साथ समिति को स्कूल प्रबंधन को आर्थिक दंड देने का अधिकार होगा। समिति के फैसले से असंतुष्ट स्कूल प्रबंध समिति निर्णय प्राप्त होने के 30 दिन के अंदर राज्य स्ववित्तपोषित विद्यालय प्राधिकरण को अपील कर सकते हैं।
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