गोआश्रयों में खाने-पीने, स्वास्थ्य और सुरक्षा का पक्का इंतजाम रहेगा। पशुओं को ऊर्जा के लिए गुड़ या राब मिलेगा। आहार का 10 प्रतिशत हिस्सा रेशायुक्त होगा। अनियंत्रित प्रजनन रोकने के लिए नर पशुओं का बंध्याकरण भी किया जाएगा।
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में लोगो को जल्द ही बेसहारा-.आवार पशुओं से राहत मिलेगी। किसानों को बेसहारा-आवार पशुओं से राहत मिले, मार्ग दुर्घटनाओं में जान-माल की क्षति रुके और हिंसक बेसहारा पशुओं के हमले में लोग घायल न हों इसे लेकर सरकार ने कदम उठाए हैं। दरअसल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ महीनों में आवारा पशुओं द्वारा फसलों को क्षति पहुंचाने की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने निर्देश दिया था कि बेसहारा पशु 10 जनवरी तक खेतों और सड़कों पर नहीं दिखने चाहिए। सबको स्थायी या अस्थायी गोआश्रयों में पहुंचा दिया जाए। प्रदेश सरकार ने अब अस्थायी गोआश्रयों में रखे जाने वाले पशुओं के लिए विस्तृत गाइड लाइन जारी कर दी है। पशुपालन विभाग ने इस बाबात 23 पन्नों का शासनादेश सभी वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों के साथ ही प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों को भेजा दिया है।
ये है गाइड लाइन
गोआश्रयों में खाने-पीने, स्वास्थ्य और सुरक्षा का पक्का इंतजाम रहेगा। पशुओं को ऊर्जा के लिए गुड़ या राब मिलेगा। आहार का 10 प्रतिशत हिस्सा रेशायुक्त होगा। अनियंत्रित प्रजनन रोकने के लिए नर पशुओं का बंध्याकरण भी किया जाएगा। स्थानीय लोगों को गोआश्रयों से पशुओं को गोद लेने के लिए प्रेरित किया जाएगा। पूरी लिखा-पढ़ी के बाद इस शर्त के साथ उनको गोवंश सौंपा जाएगा कि वे उसे बेसहारा नहीं छोड़ेंगे। गांव से लेकर वार्डो तक ऐसे पशुओं की पहचान का काम राजस्व, पुलिस, सिंचाई, ग्राम्य विकास और पंचायती राज विभाग मिलकर करेंगे। पकड़े गए पशु और उपलब्ध हो तो पशु स्वामी का पूरा विवरण भी दर्ज किया जाएगा।
प्रदेश सरकार के नियंत्रण में जो भी जमीन खाली है, गोचर, मंडी परिषद, चीनी मिल, शिक्षण संस्था, सहकारी क्षेत्र और केंद्र सरकार के प्रतिष्ठानों की निष्प्रयोज्य जमीन पर आवश्यकता के अनुसार गोआश्रय या चारा बैंक बनाए जा सकेंगे। जिलाधिकारी को इसके लिए संबंधित विभाग के जिला स्तरीय अधिकारी से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) लेना होगा। जमीन का टाइटिल यथावत रहेगा। किसी संस्था या व्यक्ति के पक्ष में संबंधित जमीन पट्टे पर नहीं दी जा सकेगी। अलबत्ता इच्छुक व्यक्ति को गोआश्रय के संचालन की जिम्मेदारी दी जा सकेगी। ऐसी जमीन की पहचान कृषि और उद्यान विभाग के लोग करेंगे। पहचान के बाद ग्राम्य विकास और पंचायतराज विभाग इसे पशुओं के रहने योग्य बनाएंगे। रोशनी एवं पानी की जिम्मेदारी ग्राम और क्षेत्र पंचायतों की होगी।
उम्र के अनुसार पशुओं के रहने की अलग-अलग व्यवस्था होगी। छह माह तक बच्चे मां के ही साथ रहेंगे। अशक्त पशुओं के लिए बिछावन की व्यवस्था होगी। पशुओं के रहने के लिए लगभग उन्हीं मानकों का पालन होगा जो किसी डेयरी में होता है। उदाहरण के लिए केवल 10 प्रतिशत हिस्से में ही शेड होगा, बाकी खुला स्थान होगा। इसके कुछ हिस्से में पशु खुले में घूम सकेंगे। शेष में ऐसे पौध लगाए जाएंगे जिनकी पत्तियों का उपयोग चारे के रूप में होता है। स्वास्थ्य जांच और टीकाकरण की जिम्मेदारी मुख्य चिकित्साधिकारी की होगी।
गोआश्रयों में रहने वाले हर पशु की टैगिंग होगी। अभी तक टैगिंग के लिए केंद्र सरकार धनराशि देती है। प्रदेश में पशुओं की संख्या को देखते हुए पशुपालन विभाग योजना बनाकर प्रदेश सरकार से बजट में अतिरिक्त टैग उपलब्ध कराने के लिए धन की मांग करेगा।
पशुओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी स्थानीय थाने की होगी। जिला स्तरीय समिति के कहने पर चौकीदार को इसके लिए कुछ अतिरिक्त रुपये भी दिए जा सकते हैं। समिति गोआश्रयों के रखरखाव के लिए भी 2000 रुपये देकर अंशकालिक श्रमिक रखने की अनुमति दे सकती है। प्रयास होगा कि इसके लिए उनको ही तैयार किया जाए जो पहले से किसी योजना के तहत अंशकालिक रूप से काम कर रहे हों।
शासनादेश में कहा गया कि आवारा पशु सड़कों और खेतों में घूमते न पाए जाएं। आवारा पशुओं खासकर गोवंश को आश्रय स्थल में ले जाकर रखा जाए। गोआश्रय सरकार के लिए स्थायी बोझ ने बनें इसके लिए इनको स्वावलंबी बनाया जाएगा। लोगों को पंचगव्य से बने औषधियों, फसलों के लिए जीवामृत की उपयोगिता और जीरो बजट खेती के प्रति जागरूक किया जाएगा। इससे गाय के दूध के अलावा गोबर, और मूत्र का भी उपयोग हो सकेगा। गोबर के अन्य तरह प्रयोग को भी बढ़ावा दिया जाएगा।
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