आज वामन द्वादशी है अर्थात भगवान श्रीहरि विष्णु का वामन रूप में अवतरण दिवस। श्रीमद्भगवद पुराण के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की द्वादशी को श्रवण नक्षत्र के अभिजित मुहूर्त में श्री विष्णु के पंचम रुप भगवान वामन का अवतार हुआ था। इस वार यह दिवस रविवार, 3 सितंबर को है। रविवार को 9ः28 बजे से श्रवण नक्षत्र शुरू होगा। इसी नक्षत्र में वामन देव अवतरित हुए थे इसलिए भगवान श्री विष्णु के मंदिरों में 9ः30 बजे विशेष पूजा की जाएगी।
इसी शुभ तिथि को भगवान विष्णु, देवताओं से रूष्ट हुई श्री को, दानवश्रेष्ठ महाराज बलि से वापस लाने के लिए माँ अदिति और कश्यप के यहाँ चतुर्भुज रूप में प्रकट हुए। चतुर्भुज भगवान ने सामान्य नर का रूप ना लेकर वामन रूप लिया, और उनका एक नाम उरुक्रम भी पड़ा- अर्थात, जो असामान्य कार्य करें। भगवान वामन को भोग लगाकर सकोरों (मिट्टी के पात्र) में दही, चावल, चीनी, शरबत, दक्षिणा दी जाती है।
जानिए.वामनदेव को तथा उनकी पूजा विधि, महत्व और फल के बारें में-
इस दिन सुबह उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर श्री हरि का स्मरण करें और विधि-विधान से पूजा करें। भगवान वामन का पंचोपचार अथवा षोडषोपचार पूजन करने के पश्चात चावल, दही इत्यादि वस्तुओं का दान करना उत्तम माना गया है। संध्या समय व्रती भगवान वामन का पूजन करना चाहिए और व्रत कथा सुननी चाहिए तथा समस्त परिवार वालों को भगवान का प्रसाद ग्रहण करना चाहिए।
श्रीमद्भगवद पुराण में वामन अवतार का उल्लेख मिलता है। वामन अवतार कथा अनुसार देव और दैत्यों के युद्ध में देव पराजित होने लगते हैं। असुर सेना अमरावती पर आक्रमण करने लगती है। तब इन्द्र भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं। भगवान विष्णु उनकी सहायता करने का आश्वासन देते हैं और भगवान विष्णु वामन रुप में माता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होने का वचन देते हैं। दैत्यराज बलि द्वारा देवों के पराभव के बाद कश्यप जी के कहने से माता अदिति पयोव्रत का अनुष्ठान करती हैं जो पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है। तब भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन अदिति के गर्भ से प्रकट हो अवतार लेते हैं तथा ब्राह्मण-ब्रह्मचारी का रूप धारण करते हैं।
वामनदेव जन्मने के पश्चात ही निकल पड़े राजा बलि की यज्ञशाला की ओर- जहाँ १००वें अश्वमेध यज्ञ की पूर्णाहुति होने होने वाली थी।
वामन देव के प्रवेश करते ही यज्ञमंडप जगमगा उठा उनके अद्वितीय तेज़ से और बलि दौड़ पड़े थे ब्राह्मण देव को यथोचित दान देने के लिए। और वामन देव के ये कहते ही कि सिर्फ़ ३ पग भूमि चाहिए, शुक्राचार्य ने आगाह किया बलि को-
1. बिना बुलाया गया बौना ब्राह्मण, और
2. इतनी विचित्र और क्षुद्र याचना (सिर्फ़ ३ पग भूमि…!)
यह ब्राह्मण के विद्वत उपदेश और अलौकिक मुखमंडल से मेल नहीं खाता राजन…! आप अस्वीकार कर दीजिए।
पर भक्त शिरोमणि प्रह्लाद के पौत्र और सात्विक दानवराज विरोचन के पुत्र, राजा बलि ने कहा- “मैं सर्वस्व हारने को तैयार हूँ पर अपने दिए गए शब्दों को व्यर्थ नहि जाने दे सकता।
उसके बाद की कहानी सबको विदित हैं- ३ पग भूमि दान में माँगने वाले भगवान ने २ पग में ‘समस्त ब्रह्मांडो’ को नाप कर मुस्कुराते हुए बलि से तीसरे पग के लिए जगह माँगी और विष्णुलीला को समझ गए बलि ने कहा-
१. मैंने अहं किया कि “आप माँगिए” और इतना माँगिए कि फिर कभी किसी से ना माँगना पड़े और आपने २ पग में सब कुछ नाप कर बता दिया कि- ‘ सब तो आपकी कृपा से ही प्राप्तहैं मुझे। जिसे मैंने जीवन भर इतने संघर्ष से अर्जित किया, वो आपके २ पग के समकक्ष भी नहीं है।
2. इसलिए तीसरे पग में आप मुझे अर्जित कर लीजिए, क्यूँकि मैं आपको पा सकूँ, ऐसी मेरी योग्यता नहीं, पर अगर आप मुझे संग्रहित कर लेंगे, फिर खोने/ पाने के लिए शेष ही क्या रहा.l
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