वास्तविकता तो यह है कि शनिदेव उतने अशुभ नहीं होते, जितना लोग उन्हें मानते हैं। कहा जाता है कि शनिदेव अपने भक्तों पर शीघ्र ही नाराज और प्रसन्न हो जाते है। मान्यताएं है कि शनिदेव को यदि विधिवत पूजा जाएं, तो वे अपने भक्तों को कभी दुखी नहीं रखते हैं।
यदि कोई व्यक्ति समाज में किसी का अहित नहीं करता तो उसे शनिदेव से डरने की कोई जरुरत नहीं है। निर्दोष व्यक्ति को शनि कुछ नहीं करते, परन्तु दुष्ट व्यक्तियों को शनिदेव के कोप का भाजक बनाना पड़ता है। कहा जाता कि शनिदेव की पूजा में तिल तथा तेल का बहुत महत्त्व है।
अमावस्या जिस दिन चंद्रमा आकाश में दिखाई नहीं देता। ज्योतिष शास्त्र में किसी भी व्यक्ति के जीवन में चंद्रमा का बहुत अधिक महत्त्व बताया गया है। इसलिए हर माह की आमावस्या या पूर्णिमा का दिन हर किसी के जीवन में विशेष होता है। आमावस्या क्योंकि अंधेरी रात से जुड़ी है इसलिए यह अक्सर अनिष्ट या बुरे के रूप देखा जाता है। हालांकि हिंदू धर्म में इस दिन को खास रूप से अपने ऊपर ग्रह-नक्षत्रों आदि के बुरे प्रभाव, पितरों आदि के शाप से मुक्त होने वाला भी माना जाता है।
इन खास आमावस्या के दिनों में विशेष पूजा-अर्चना कर पाऐं बाधाओं से मुक्ति –
कुंडली में शनि की दशा को मारक माना जाता है। शनिदेव सभी ग्रहों के नियंत्रक देव हैं। ये ग्रहों के नियंत्रक मंडल के मुख्य न्यायाधीश माना जाता है। सभी ग्रह शनिदेव के निर्णय के अनुसार ही अपने शुभ या अशुभ फल देते हैं। अत: कमजोर शनि या शनि की साढ़े साती और ढैय्या के प्रभाव में रहने वाली राशियों को अक्सर मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इससे बचने के लिए लोग कई प्रकार के वैदिक उपाय भी अपनाते हैं।
वस्तुत: माना यह जाता है कि बुरे कर्मों से शनिदेव हमेशा क्रोधित होते हैं और व्यक्ति शनि का कोपभाजन बनना पड़ता है जबकि अच्छे कर्मों के जातकों से शनि हमेशा प्रसन्न रहते हैं और जिसपर शनि प्रसन्न हो जाएं उसे शनि के प्रभाव से जीवन में उतना ही अधिक मान-सम्मान और उन्नति मिलती है। जीवन में कई ऐसी बातें होती हैं जो जाने-अनजाने घटित होती हैं और व्यक्ति शनि-दोष का शिकार बन जाता है। इसे दूर कर शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए खास रूप से शनिवार का व्रत किया जाता है लेकिन ‘शनि आमावस्या’ के शनिदेव की पूजा कर व्यक्ति इन दोषों से मुक्त होकर अपनी सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर सकता हैं।
’शनि अमावस्या’ के दिन पितरों की श्राद्ध का विशेष महत्व है। खास तौर से कुंडली में पितृदोष से पीडित जातकों को इस दिन पितृ श्राद्ध तथा दान कर्म आदि अवश्य करना चाहिए कहते हैं हैं पितृ दोष से मुक्त जातक भी अगर इस दिन दान और श्राद्ध करते हैं तो भविष्य में उन्हें हर क्षेत्र में सफलता मिलती है।
अत: इस आमावस्या के दिन पवित्र नदी के जल से स्नान कर शनि देव का आह्वान और दर्शन करना चाहिए।क्योंकि शनिदेव को नीले और पीले फूल और बिल्व पत्र विशेष रूप से पसंद हैं इसलिए अक्षत के साथ शनिदेव को यह अर्पित करना विशेष रूप से लाभकारी होता है।
भगवान शिव के भक्तों को शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है।
शनि मंत्र ॐ शं शनैश्चराय नम: या ॐ प्रां प्रीं प्रौं शं शनैश्चराय नम: मंत्र का जाप करें।
सरसों तेल, उड़द दाल, काला तिल, कुलथी, गुड़, शनि यंत्र शनिदेव को अर्पित कर तेल का अभिषेक करें।
इस दिन शनि चालीसा, हनुमान चालीसा या बजरंग बाण का पाठ अवश्य करें। कुंडली या राशि में शनि की साढ़ेसाती व ढैय्या के प्रभाव वाले जातक को इस दिन पूरे विधि विधान से शनिदेव का पूजन करना शुभ फलदायी होता है.
पीपल के पेड़ पर सात प्रकार के अनाज चढ़ाने के साथ ही सरसों के तेल के दिये जलाएं।
तिल या उड़द दाल या इनसे बने पकवान जरूरतमंदों को दान करें. विशेष रूप से उड़द दाल की खिचड़ी दरिद्र नारायण को दान करें।
इस दिन शनि यंत्र, शनि लॉकेट या काले घोड़े की नाल का छल्ला धारण कर सकते हैं। साथ ही इस दिन नीलम या कटैला धारण करना भी शुभ फलदायी होता है।
इस दिन शनिदेव की विशेष पूजा के पश्चात उनसे अपने अपराधों एवं जाने-अनजाने हुए पाप कर्मों के लिए क्षमा याचना करें। शनिदेव की पूजा के पश्चात ‘राहू’ और ‘केतु’ की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
शनिवार के दिन पीपल के पेड़ को जल देना यूं भी शनि के कष्टों से मुक्त कराने वाला माना जाता है। शनि आमावस्या के दिन इसके साथ ही पीपल में सूत्र बांधकर सात परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए।
विशेष लाभ के लिए शनिदेव के नाम का व्रत रखें।
संध्या काल में शनि मंदिर में दिये जलाकर और उड़द दाल की खिचड़ी का शनिदेव को भोग लगाएं. प्रसाद के रूप में यह खिचड़ी खुद स्वयं भी अवश्य खाएं। काले वस्त्र धारण करें। श्रावण मास में पड़ने वाली इस शनि आमावस्या को शनिवार का व्रत शुरू करना सभी मनोकामना पूर्तिकारक सिद्ध होती है।
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