Opinion

इलाहाबाद हाईकोर्ट का 12 जून का वह फैसला जिसने बदल दी देश की राजनीति

बरेली के रहने वाले न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा पर पूरे देश की नज़रें थीं  क्योंकि वे राजनारायण बनाम इंदिरा गांधी के मामले में फ़ैसला सुनाने जा रहे थे।

भारतीय राजनीति के इतिहास में ऐसे कई मौके आए हैं जिन्होंने देश की दशा और दिशा ही बदल दी। 1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी ने रायबरेली में जीत हासिल की। उनकी जीत को उनके प्रतिद्वंद्वी राजनारायण ने चुनौती दी। भारतीय राजनीति के इतिहास में इस मुक़दमे को इंदिरा गांधी बनाम राजनारायण के नाम से जाना जाता है। अदालत के इस फ़ैसले के बाद देश में कई जगहों पर इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।

1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया। 12 जून 1975 को सुबह 10 बजे से पहले ही इलाहाबाद हाईकोर्ट का कोर्टरूम नंबर 24 खचाखच भर चुका था। बरेली के रहने वाले न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा पर पूरे देश की नज़रें थीं  क्योंकि वे राजनारायण बनाम इंदिरा गांधी के मामले में फ़ैसला सुनाने जा रहे थे।

मामला 1971 के रायबरेली चुनाव से जुड़ा था। यह वही लोकसभा चुनाव था जिसमें इंदिरा गांधी ने अपनी पार्टी कांग्रेस को जबर्दस्त क़ामयाबी दिलाई थी। वह खुद रायबरेली से चुनाव जीती थीं और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार राजनारायण को भारी अंतर से हराया था। हालांकि राजनारायण अपनी जीत को लेकर इतने आश्वस्त थे कि चुनाव नतीजे घोषित होने से पहले ही उनके समर्थकों ने विजय जुलूस निकाल दिया था।

जब परिणाम घोषित हुआ तो राजनारायण के होश उड़ गए। चुनाव नतीजों के बाद वह शांत नहीं बैठे और हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। उन्होंने अपील की जिसमें कहा गया कि  इंदिरा गांधी ने चुनाव जीतने के लिए सरकारी मशीनरी और संसाधनों का दुरुपयोग किया है, इसलिए उनका चुनाव निरस्त कर दिया जाए।

न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा ठीक 10 बजे अपने चेंबर से कोर्टरूम में आए। सभी लोग उठकर खड़े हुए। शुरुआत में ही उन्होंने साफ़ कर दिया कि राजनारायण की याचिका में उठाए गए कुछ मुद्दों को उन्होंने सही पाया है। राजनारायण की याचिका में जो सात मुद्दे इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ गिनाए गए थे, उनमें से पांच में तो न्यायमूर्ति सिन्हा ने इंदिरा गांधी को राहत दे दी थी लेकिन दो मुद्दों पर उन्होंने इंदिरा गांधी को दोषी पाया।

फ़ैसले के अनुसार, जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत अगले छह सालों तक इंदिरा गांधी को लोकसभा या विधानसभा का चुनाव लड़ने के अयोग्य ठहरा दिया गया।

मार्च 1975 का घटनाक्रम

न्यायमूर्ति सिन्हा की कोर्ट में दोनों तरफ से दलीलें पेश होने लगीं। दोनों पक्षों को सुनने के बाद उन्होंने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उनका बयान दर्ज कराने के लिए अदालत में पेश होने का आदेश दिया। तारीख तय की गई 18 मार्च 1975।

भारत के इतिहास में यह पहला मौका था जब किसी मुक़दमे में प्रधानमंत्री को पेश होना था। न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा ने भी पेशी की तैयारी की। सवाल यह भी था कि जज के सामने प्रधानमंत्री और बाकी लोगों का शिष्टाचार कैसा हो क्योंकि अदालत में सिर्फ और सिर्फ़ जज के प्रवेश करने पर ही उपस्थित लोगों के खड़े होने की परंपरा है, पर जब प्रधानमंत्री सामने हों तो…?

राजनारायण की ओर से जिरह करने वाले वकील शांति भूषण याद करते हैं, “इंदिरा के कोर्ट में प्रवेश करने से पहले न्यायमूर्ति सिन्हा ने कहा, अदालत में लोग तभी खड़े होते हैं जब जज आते हैं, इसलिए इंदिरा गांधी के आने पर किसी को खड़ा नहीं होना चाहिए। लोगों को प्रवेश के लिए पास बांटे गए थे।”

अदालत में इंदिरा गांधी को करीब पांच घंटे तक सवालों के जवाब देने पड़े। इंदिरा गांधी और उनके समर्थकों को अंदाज़ा लगने लगा था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का फ़ैसला उनके ख़िलाफ़ जा सकता हौ। ऐसे में न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा को प्रभावित करने की कोशिशें भी शुरू हुईं। इलाहाबाद हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डीएस माथुर इंदिरा गांधी के निजी डॉक्टर केपी माथुर के क़रीबी रिश्तेदार थे।

शांति भूषण के बताते हैं कि न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा के घर पर न्यायमूर्ति माथुर  अपनी पत्नी के साथ पहुंचे। उन्होंने न्यायमूर्ति सिन्हा से कहा कि अगर वह राजनारायण वाले मामले में सरकार के अनुकूल फ़ैसला सुनाते हैं तो उन्हें तुरंत सुप्रीम कोर्ट में भेज दिया जाएगा लेकिन इसका न्यायमूर्ति सिन्हा पर कोई असर नहीं हुआ।

न्यायमूर्ति सिन्हा ने अपने फैसले में लिखा कि इंदिरा गांधी ने अपने चुनाव में भारत सरकार के अधिकारियों और सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किया। जन प्रतिनिधित्व कानून में इनका इस्तेमाल चुनाव कार्यों के लिए करना ग़ैर-क़ानूनी है।

इन्हीं दो मुद्दों को आधार बनाकर न्यायमूर्ति सिन्हा ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का रायबरेली से लोकसभा के लिए हुआ चुनाव निरस्त कर दिया। साथ ही उन्होंने अपने फ़ैसले पर बीस दिन का स्थगन आदेश दे दिया।

यह न सिर्फ भारत में, बल्कि दुनिया के इतिहास में भी पहला मौका था जब किसी हाईकोर्ट के जज ने किसी प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ इस तरह का कोई फैसला सुनाया हो।

इस फैसले ने आगे चलकर देश की राजनीति बदल दी। विपक्षी दल एकजुट होकर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के इस्तीफे की मांग कर रहे थे। बढ़ते दबाव को देखते हुए इंदिरा गांधी जी ने पूरे देश में आपातकाल लगाने की घोषणा कर दी। बाद में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया। स्वयं इंदिरा गांधी भी चुनाव हार गईं।

सुरेश बाबू मिश्रा

(सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य)

 
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