जयंती 3 जून पर विशेष –

बालकृष्ण भट्ट हिंदी के महान साहित्यकार हैं। उन्होंने पत्रकार, उपन्यासकार, आलोचक एवं निबंधकार के रूप में विशेष ख्याति अर्जित की। हिंदी साहित्य की विकास यात्रा में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हें गद्य काव्य विधा का जनक कहा जाता है। वे भारतेंदु युग के एक प्रमुख स्तम्भ थे। उनकी कृतियां हिंदी साहित्य की अनमोल धरोहर हैं। उनके निबंध एवं नाटक संग्रह पाठकों के मध्य बहुत लोकप्रिय हुए।

बालकृष्ण भट्ट का जन्म  3 June जून 1844 प्रयाग के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित बेणी प्रसाद भट्ट था। उनकी मां बहुत ही विदुषी महिला थीं। इस प्रकार बालकृष्ण भट्ट को साहित्य के गुण अपनी मां से विरासत में मिले थे। विद्यालय में 10वीं कक्षा तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने घर पर रहकर ही संस्कृत का अध्ययन किया। संस्कृत के अतिरिक्त उन्हें हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, फारसी आदि भाषाओं का भी अच्छा ज्ञान हो गया था।

भट्ट जी स्वतंत्र प्रकृति के व्यक्ति थे और किसी के अनुशासन में बंधकर रहना उनके स्वभाव के विपरीत था। उन्होंने कुछ समय तक कायस्थ पाठशाला, प्रयाग में संस्कृत अध्यापक के रूप में कार्य किया परंतु अपनी स्वतंत्र प्रवृत्ति के कारण अधिक समय तक वहां नहीं टिक सके। बाद में उन्होंने व्यापार किया परंतु इसमें भी अपेक्षित सफलता नहीं मिली।

भारतेंदु हरिश्चंद्र से प्रभावित होकर उन्होंने हिंदी साहित्य सेवा का व्रत लिया और हिंदी प्रदीप नामक मासिक पत्र निकालना प्रारम्भ किया। वे इस पत्र के सम्पादक थे। उन्होंने हिंदी प्रदीप के माध्यम से निरंतर 32 वर्ष तक हिंदी की सेवा की।

हिंदी प्रचार

हिंदी के प्रचार के लिए उन्होंने संवत् 1933 में प्रयाग में हिंदी वर्द्धिनि नामक सभा की स्थापना की। काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा आयोजित हिंदी शब्द सागर के सम्पादन में भी उन्होंने बाबू श्याम सुंदरदास और आचार्य रामचंद्र शुक्ल के साथ मिलकर कार्य किया। हिंदी प्रदीप के अतिरिक्त उन्होंने 2-3 अन्य पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया।

भट्ट जी भारतेंदु युग के प्रतिष्ठित निबंधकार थे। अपने निबंधों द्वारा हिंदी की सेवा करने के लिए उनका नाम सदैव अग्रगण्य रहेगा। उनके अधिकतर निबंध हिंदी प्रदीप मासिक पत्र में प्रकाशित होते थे जो सदा मौलिक और भावनापूर्ण होते थे।

भट्ट जी ने हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं में लेखन कार्य किया मगर उन्हें मूलरूप से निबंध लेखक के रूप में जाना जाता है। निबंध के अतिरिक्त उन्होंने उपन्यास और नाटक भी लिखे। भट्ट जी ने बांग्ला और संस्कृत के नाटकों का अनुवाद भी किया जिनमें वेणी संहार, मृच्छकटिक, पद्मावती आदि प्रमुख हैं।

बालकृष्ण भट्ट : कालजयी कृतियों की रचना

भट्ट जी इतने व्यस्त रहते थे कि उन्हें पुस्तकें लिखने का समय ही नहीं मिलता था। इस व्यस्तता के बीच भी उन्होंने कई कालजयी कृतियों की रचना की। “सौ अजान एक सुजान“, “रेल का निकट खेल“, “नूतन ब्रह्मचारी“, “बाल विवाह“ और “भाग्य की परख“ जैसी उनकी कृतियां हिंदी जगत में बहुत लोकप्रिय एवं प्रसिद्ध हुईं। ये कृतियां हिंदी साहित्य प्रेमियों द्वारा बहुत सराही गईं।

भारतेंदु काल के निबंध लेखकों में भट्ट जी का सर्वोच्च स्थान है। उन्होंने पत्र, नाटक, काव्य, निबंध, उपन्यास और अनुवाद कार्य कर हिंदी की अमूल्य सेवा की और हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

साहित्य की दृष्टि से भट्ट जी के निबंध अत्यन्त उच्चकोटि के हैं। समीक्षक निबंधों के मामले में उनकी तुलना अंग्रेजी के प्रसिद्ध निबंधकार चार्ल्स लैंव से करते हैं। भट्ट जी को गद्य काव्य का जनक कहा जाता है उन्होंने ही हिंदी गद्य काव्य की रचना प्रारम्भ की। 20 जुलाई 1914 को उनकी आत्मा ने यह नश्वर शरीर त्याग दिया। एक प्रतिष्ठित निबंधकार और प्रखर पत्रकार के रूप में उन्हें सदैव याद किया जाएगा।

सुरेश बाबू मिश्रा

(साहित्य भूषण से सम्मानित वरिष्ठ साहित्यकार)
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