Opinion

भारत में बच्चों की कोरोना वैक्सीन का परीक्षण, दबाव में विश्व स्वास्थ्य संगठन

भारत सरकार द्वारा कोवैक्सीन की उत्पादक कंपनी भारत बायोटेक को बच्चों के लिए वैक्सीन का परीक्षण करने की अनुमति दिए जाने के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) दवाब में आता लग रहा है। दुनिया को अपने इशारे पर नचा रही दवा लॉबी में भी घबराहट है। इधर भारत ने एक कदम और आगे बढ़ते हुए रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ ) द्वारा तैयारी की गई कोरोना की दावा ‘2 डी जी’  को सोमवार को लॉन्च कर दिया। यह भी दवा लॉबी को एक और बड़ा झटका है। मुंह के जरिये ली जाने वाली इस दवा को कोरोना वायरस के मध्यम से गंभीर लक्षण वाले मरीजों के इलाज में इस्तेमाल करने की अनुमति सहायक पद्धति के रूप में दी गई है।

यह दवा पाउडर के रूप में आती है और इसे पानी में घोलकर पीना होता है। इस दवा के असर की बात की जाए तो जिन लक्षण वाले मरीजों का इस दवा से इलाज किया गया, वे मानक इलाज प्रक्रिया से पहले ठीक हुए बताए गए हैं। पिछले साल के शुरुआत में भारत में कोरोना महामारी शुरू होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस महामारी से निपटने के लिए देश में ही तैयारियां करने का आह्वान किया था जिसके बाद डीआरडीओ के डॉ अनंत नारायण भट्ट ने अपनी टीम के साथ इस परियोजना पर काम शुरू किया था।                 

गौरतलब है कि भारत में ही विभिन्न रोगों के इलाज में इस्तेमाल होने वैक्सीन का सबसे अधिक उत्पादन होता है। भारत में बनी विभिन्न वैक्सीन को दुनियाभार के औषधि विज्ञानियों ने सराहा है। भारत कोविडकाल में भी काफी अधिक वैक्सीन का निर्यात कर चुका है। भारत की इस सफलता को देख दुनिया के कई महत्वपूर्ण संगठनों औऱ फार्मा कंपनियों के पेट में मरोड़े उठ रहे हैं। अपने वर्चस्व को चुनौती मिलती देख वे तरह-तरह के हथकंडे अपना रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अमीर देशों से बच्चों को अभी कोरोना का टीका नहीं लगाने की अपील करने को इसी अभियान की कड़ी माना जा रहा है। लगता है उसने यह कदम दवाब में उठाया है। मजेदार बात यह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन साथ ही यह भी चेतावनी दे रहा है कि कोविड-19 महामारी का दूसरा साल अब ज्यादा जानलेवा साबित हो रहा है। ये दोनों ही सर्वथा विपरीत बातें हैं। ऐसा लगता है विश्व स्वास्थ्य संगठन पर भी दवा उत्पादक लॉबी का दवाब है।

अगर अमेरिका की बात की जाए तो वहां कोरोना संक्रमण के मामलों में कमी हो रही है। लेकिन, विशेषज्ञ अब नए खतरे को लेकर चिंता में हैं।  एक रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल 2021 की शुरुआत से ही अमेरिकी बच्चों में कोरोना के संक्रमण के मामले वयस्कों की तुलना में ज्यादा सामने आए हैं। इससे आशंका पैदा हो गई है कोरोना बच्चों के लिए भी गंभीर संकट बनने जा रहा है।                                      

भारत में भी कई विशेषज्ञ बच्‍चों को होने वाले खतरों को लेकर चेतावनी दे चुके हैं। सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक, अप्रैल की शुरुआत में छोटे बच्चों से लेकर 12 साल तक की उम्र के बच्चों में कोरोना के मामले 65 या उससे ऊपर के वयस्कों की तुलना में बढ़ गए। ताजा आंकड़े भी भारत में इस रुख के बरकरार रहने की ओर इशारा करते हैं। यही नहीं, कोरोना के कारण बच्चों के अस्पताल में भर्ती होने की दर में भी कमी नहीं आई है। ऐसे में रिसर्च करने वालों को आशंका है कि कोरोना के वैरिएंट युवाओं को नए-नए तरीके से प्रभावित कर रहे हैं।

भारत मे स्वास्थ्य विशेषज्ञ यह भी आशंका व्यक्त कर रहे हैं कि तीसरी लहर का कोरोना वैरिएंट बच्चों को बहुत तेजी से अपनी गिरफ्त में ले सकता है। बच्चे देश का भविष्य हैं। उन्हें कोरोना की आपदा से सुरक्षित रखना जरूरी है। बाल स्वभाव को देखते हुए उनसे कोरोना प्रोटोकॉल के पूरी तरह से पालन करने की उम्मीद करना भी बेमानी है। ऐसे में  हमारे देश में बच्चों के लिए कोरोना की वैक्सीन का शीघ्र बनना जरूरी है। अमेरिका में तो बच्चों के लिए फाइजर वैक्सीन बन भी गई है और 12 से 15 वर्ष तक के बच्चों में इसका वैक्सीनेशन भी शुरू हो चुका है। कनाडा में भी बच्चों का वैक्सीनेशन शुरू हो गया है।

भारत मे एक माह से लेकर 18 वर्ष तक के बच्चों एवं किशोरों की कुल संख्या देश की आबादी का लगभग 30 प्रतिशत है। आधिकारिक आकलन के अनुसार, देश में बच्चों एवं किशोरों की कुल संख्या 36 करोड़ के आस-पास है। इन सबको कोरोना के संक्रमण से बचाना सरकार के साथ-साथ सामाजिक जिम्मेदारी भी है। इसके लिए जरूरी है कि हम किसी बाहरी दबाव में नहीं आएं।                        

निर्भय सक्सेना

(लेखक पत्रकार संगठन उपजा के प्रदेश उपाध्यक्ष हैं)

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