Opinion

आपातकाल : प्रेस में आकर समाचारों की जांच करते थे खुफिया अधिकारी

देश में 46 वर्ष पूर्व 25 जून 1975 को आपातकाल लगाया गया था। उस समय मैं दैनिक विश्व मानव के संपादकीय विभाग में था। आपातकाल की घोषणा होते ही दिल्ली के कई समाचारपत्रों ने संपादकीय स्थान खाली छोड़कर अपना विरोध जताया था। इस पर कुछ संपादकों की गिरफ्तारी भी हुई थी। बरेली में दैनिक विश्व मानव का प्रबंधन लक्ष्मण दयाल सिंघल के हाथ में था जो कांग्रेस के पक्षधर थे। मुझे याद है कि विश्व मानव के समाचार संपादक जितेंद्र भारद्वाज एवं रामगोपाल शर्मा ने संपादकीय के सभी लोगों को सरकार के विरोध में कुछ नहीं लिखने के निर्देश दिए थे। संपादकीय टीम को ज्ञानसागर वर्मा, अशोक जी और कन्हैया लाल वाजपेई देखते थे। सिटी न्यूज़ को स्वतंत्र सक्सेना, राकेश कोहरवाल, निर्भय सक्सेना,  कमल कांत शर्मा, सतीश कमल आदि देखते थे। रात में इंटेलिजेंस के अधिकारी हर खबर पर पास की मोहर लगते थे। जिला सूचना अधिकारी वर्मा जी भी रात में शहर की खबरों पर नजर रखते थे कि कहीं कोई गलत खबर (कांग्रेस सरकार के हिसाब से) न छप जाए।

एक दिन बाद जनसंघ के नेता सत्य प्रकाश अग्रवाल जेल भेजे गए। रिपोर्टर ने देर रात यह समाचार ज्ञान सागर वर्मा को नोट करवाया। ज्ञान सागर जी ने अपनी घसीटा राइटिंग में इसे लिखा। मैंने इंटेलिजेंस टीम को अन्य समाचारों के साथ यह समाचार भी भेज दिया। ज्ञान सागर जी की अपठनीय हस्तलिपि की वजह से गिरफ्तारी का समाचार पास की मोहर लगकर वापस आ गया। सुबह सत्य प्रकाश अग्रवाल की गिरफ्तारी का समाचार छपा तो हंगामा हो गया। संपादक जी ने समाचार पास होने की मुहर लगी कॉपी सूचना अधिकारी को दिखा दी। इस पर उस इंटेलिजेंस कर्मचारी को हटाकर दूसरा व्यक्ति भेजा गया। 

बरेली में उस समय जॉर्ज फर्नांडीज के साप्ताहिक समाचार पत्र ‘प्रतिपक्ष’ के प्रतिनिधि डॉ वीरेन डंगवाल थे जो देर रात आकर विश्व मानव की प्रिंटिंग मशीन के नीचे सोते थे। आपातकाल में मैंने सुभाषनगर गुरुद्वारा जाकर वहां रह रहे लोगों से भी बात की थी। कवि कन्हैया लाल वाजपेयी की इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा के दिए गए निर्णय के बाद लिखी एक कविता उन दिनों चाय घाट ‘फाइव स्टार’ पर बहुत सुनी जाती थी। वह थी … ‘बरुआ भैया कुछ तो जुगत बताओ, जा राजनारायण को जल्दी ही जेल भिजवाओ।’                                 स्मरण रहे 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा द्वारा राजनारायण बनाम इंदिरा गांधी केस में  दिए गए एक महत्वपूर्ण फैसले के बाद देश में राजनीतिक घटनाचक्र तेजी से चलने लगा था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस निर्णय में रायबरेली संसदीय क्षेत्र से इंदिरा गाधी का निर्वाचन भ्रष्ट साधनों के उपयोग के कारण रद्द कर दिया था। इस साहसिक निर्णय की वजह से देश की राजनीति में उफान आ गया था।

न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा का बरेली के पुराने मोहल्ले गुलाब नगर से भी गहरा नाता रहा था। उन्होंने बरेली कॉलेज में उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। इसके बाद 1943 से 1955 तक बरेली में वकालत की।

बहरहाल, हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद सभी को यह उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री इंदिरा गाधी नैतिकता के आधार पर अपने पद से त्यागपत्र दे देंगी  मगर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के कारण उन्होंने ऐसा नहीं किया। कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष देवकांत बरुआ की चौकड़ी ने उन्हें गुमराह कर तानाशाह बनने की राह पर ठेल दिया।

जनसंघ सहित पूरा विपक्ष कांग्रेस पर हमलावर हो गया। इंदिरा गांधी के इस्तीफे की मांग करते हुए विपक्षी दलों ने देशभर में विरोध में धरना, प्रदर्शन एवं रैलियां शुरू कर दीं। सम्पूर्ण विपक्ष द्वारा चलाए जा रहे इस आंदोलन की अगुवाई लोकनायक जयप्रकाश नारायण कर रहे थे। नारा दिया गया- सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

25 जून 1975 तो दिल्ली के रामलीला मैदान में विपक्ष ने एक बड़ी रैली की जिसमें जनसमूह उमड़ पड़ा। लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने रैली में जोशीला भाषण दिया। उन पर लाठीचार्ज भी हुआ। विपक्ष के तेवर से  भन्नाई इंदिरा गांधी ने अपनी कुर्सी बचाने की खातिर उसी दिन आधी रात को देश पर आपातकाल थोप दिया। संविधान के अनुच्छेद 352 का दुरुपयोग करते हुए आपातकाल लगाने की प्रकिया में सारे कानूनी प्रावधानों को दरकिनार कर दिया गया। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने आपातकाल लागू करने की गैरकानूनी प्रक्रिया में इंदिरा गांधी के मोहरे की तरह काम किया।

आपातकाल लागू होते ही पूरे देश में विपक्षी नेताओं, छात्र नेताओं, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं आदि की गिरफ्तारी शुरू हो गई।

निर्भय सक्सेना

(लेखक पत्रकार संगठन उपजा के प्रदेश उपाध्यक्ष हैं।)

gajendra tripathi

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