– अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस 15 मई पर विशेष –
परिवार समाज की सबसे छोटी परंतु सबसे महत्वपूर्ण इकाई है। परिवार के अभाव में मानव समाज के संचालन की कल्पना करना भी कठिन है। हमारे देश में परिवार की संरचना आदिकाल से ही चली आ रही है। समय, परिस्थिति और परिवेश के अनुरूप हमारी संस्कृति एवं सभ्यता में अनेक परिवर्तन होते रहे मगर इन परिवर्तनों का परिवार की संरचना पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा। वह अब भी अबाध गति से चल रही है।
समय के अनुरूप परिवार के स्वरूप में परिवर्तन अवश्य आया है। हमारे मूल्य बदले हैं, सोच बदली है मगर परिवार का अस्तित्व अब भी बना हुआ है। भारत गांवों का देश है और परिवार ग्रामीण संस्कृति की महत्वपूर्ण कड़ी है। आज रोजी-रोटी या रोजगार की तलाश में युवाओं को अपने गांव, कस्बों या शहर से दूर महानगरों में रहना पड़ रहा है, फलस्वरूप एकाकी परिवारों की संख्या तेजी से बढ़ी है। इससे कई प्रकार की विसंगतियां भी उपज रही हैं जो चिंता का विषय है।
परिवार संस्कारों की पाठशाला होता है। अपने बड़ों को देखकर ही बच्चों में आदतों, कौशलों, क्रियाकलापों एवं संस्कारों का बीज अंकुरित होता है। वह वही सीखने का प्रयास करता है जैसा वह अपने से बड़ों को करते देखता है। एक संयुक्त परिवार में कम से कम तीन पीढ़ी के लोग एक साथ रहते हैं। इसलिए एक पीढ़ी के संचित ज्ञान एवं अनुभव का लाभ दो पीढ़ियों को तो सहज ही प्राप्त हो जाता है। बच्चे अपने बड़ों को ही देखकर उठना-बैठना भोजन करना, कपड़े पहनना, बड़ों का अभिवादन करना सीखते हैं। इससे उनमें सहज रूप से ही संस्कारों को सीखने की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है।
कहते हैं कि एक बार वन विभाग की टीम को जंगल में एक दस वर्षीय लड़का मिला। टीम ने उसे इलाज के लिए बलरामपुर अस्पताल में भर्ती करा दिया। वहां के डाक्टर यह देखकर हैरान थे कि वह बालक जानवरों के बच्चों की तरह दोनों हाथों और दोनों पैरों के बल चलता था। उन्हीं की तरह खाता था और उन्हीं की तरह आवाजें निकालता था। खोजबीन करने पर पता चला कि जब वह बालक दो वर्ष का था तो एक भेड़िया उसे उठा ले गया। उसने उस बालक को खाया नहीं बल्क अपने बच्चों के साथ रख लिया इसलिए उस बालक में सारी आदतें भेड़िए के बच्चों जैसी ही थीं। डॉक्टरों को उसमें मनुष्य के बच्चों की आदतें एवं संस्कार विकसित करने में कड़ी मेहनत करनी पड़ी। यह घटना बच्चों के विकास में परिवार के महत्व को प्रतिपादित करती है।
इस समय हमारा पूरा देश कोरोना की भयावह आपदा के कठिन दौर से गुजर रहा है। लॉकडाउन के कारण देश की लगभग आधी आबादी घरों में कैद है। ऐसे में परिवार की महत्ता और बढ़ गई है। परिवार के प्रेम और सौहार्द्रपूर्ण वातावरण से परिवार के सदस्यों के मन में सकारात्मक विचार आते हैं। सकारात्मक विचार हमारे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करते हैं जिससे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। परिवार के सदस्यो के साथ रहने से मन प्रसन्न रहता है और तनाव हमारे पास नहीं फटकता है। इस प्रकार इस भयावह आपदा में परिवार की भूमिका संजीवनी से कम नहीं है।
15 मई का दिन पूरे विश्व में परिवार दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य परिवारों के विघटन की प्रक्रिया को रोकना और विश्व समुदाय को परिवार के अस्तित्व के प्रति जागरूक करना है।
अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस का प्रतीक चिन्ह हरे रंग का एक गोल घेरा है जिसमें एक घर बना हुआ है और घर के अन्दर दिल की आकृति बनी है। यह प्रतीक चिन्ह इस बात को दर्शाता है कि परिवार ही समाज का केंद्र है। परिवार की यह संरचना निरंतर जारी रहे जिससे संस्कारों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया अवाध गति से चलती रहे।
सुरेश बाबू मिश्रा
(सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य)