Opinion

नए कृषि कानून पर किंतु-परंतु के बीच लुटता किसान

ए कृषि कानून को लेकर जिस तरह के दावे किए जा रहे हैं कि यह किसानों के बहुत हित में है, उन्हें देख-सुन कर लगता है कि शायद यह किसानों के हित में ही होगा। सभी सरकारें भी किसानों की हितैषी होने की दावा करती हैं। नरेंद्र मोदी भी हमेशा किसानों की आय में वृद्धि की बात करते हैं। ऐसे में नहीं लगता कि सरकार किसानों के विरोध में कोई कानून लाएगी। एक बात मैं कहना चाहूंगा कि कोई भी कानून कितना अच्छा है या कितना बुरा है उसका पता तब चलता है जब उसे व्यवहार में लाया जाता है। लेकिन, नए कृषि कानून के लागू होने के बाद जो रुझान आ रहे हैं उससे बिल्कुल नहीं लगता कि यह बिल किसानों को फायदा पहुंचाएगा।

इस बार किसान सबसे ज्यादा परेशान हो रहा है। सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान, गेहूं आदि अनाजों की खरीद करती है। जब भी धान का सीजन होता है तो सरकार का जो न्यूनतम समर्थन मूल्य होता है, उससे 300 से 400 रुपये कम पर वह बाहर बाजार में बिकता है क्योंकि सरकारी खरीद में रुपये मिलने में थोड़ा समय लगता है। ऐसे में जो किसान नकद बेचना चाहते हैं या जिनको तुरंत रुपयों की जरूरत होती है, वे मंडी के बाहर बिचौलियों के हाथों या राइस मिलर्स को सीधे बेच देते हैं। दुर्भाग्यवश इस बार बाहर बिकने वाले धान में 300 से 400 का नहीं बल्कि 50 प्रतिशत तक का फर्क है यानी कि बाहर बाजार में 800 से लेकर 1100 रुपये प्रति कुंतल तक धान बिक रहा है, जबकि सरकारी मूल्य 1888 रुपये है।

सरकारी खरीद केंद्रों पर इतनी औपचारिकताएं कर दी गई हैं कि किसानों के लिए अपना धान बेच पाना दुश्वार हो जाता है। उनको भगाने के तमाम बहाने मंडी कर्मचारियों के पास हैं। सबसे पहले तो ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराना होता है और वह साइट भी ढंग से काम नहीं करती। मैं खुद भुक्तभोगी हूं। मेरे खेत के धान को खरीद केंद्र वालों ने महीनों चक्कर लगाने के बाद इस आधार पर लेने से मना कर दिया कि इसकी क्वालिटी ठीक नहीं है। हालांकि बाद में उच्च अधिकारियों से शिकायत करने पर उनको वह खरीदना पड़ा। यदि मेरे जैसे व्यक्ति के साथ ऐसा हो सकता है तो आम किसानों की औकात ही क्या है।

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सरकारी खरीद केंद्र पूरी तरह से भ्रष्टाचार का केंद्र बन गए हैं। उन पर खरीद तो हो रही है लेकिन किसानों से नहीं बल्कि उन लोगों से जो किसानों का अनाज औने पौने-दामों पर खरीद लेते हैं और सरकार को महंगे दाम पर यानी कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेचते हैं। इससे सरकार को भी नुकसान हो रहा है और किसानों की बेहाली का तो कहना ही क्या।

किसान संगठनों की मांग है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर अनाज को बेचना प्रतिबंधित कर दिया जाए। मेरे विचार से इसे लागू करने में कोई समस्या नहीं है क्योंकि न्यूनतम मजदूरी देने का प्रावधान है। कोई इससे कम मजदूरी देता है तो उसके लिए दंड का प्रावधान है। तो ऐसे ही जो कोई भी व्यक्ति न्यूनतम कीमत पर खरीदे तो उसे भी सजा का प्रावधान होना चाहिए। हां, इसमें एक समस्या यह आ सकती है कि यदि किसी की फसल की गुणवत्ता ज्यादा अच्छी नहीं हुई तो उसे बेचने में समस्या हो सकती है। इसके लिए सरकार फसल प्रमाणित करने की एजेंसियों की नियुक्ति कर सकती है। वह समर्थन मूल्य भी फसल के ग्रेड के आधार पर तय कर सकती है।

पंकज गंगवार

(चेयरमैन, न्यूट्री केयर बायो साइंस, बरेली)

gajendra tripathi

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