Opinion

हिंदी दिवस : वर्चुअल हिंदी बनी विश्व भाषा

हिंदी हमारे देश की राजभाषा है। 14 सितम्बर 1949 को संवैधानिक रूप से इसको राजभाषा का दर्जा दिया गया। संविधान के अनुच्छेद 343 में यह प्रावधान किया गया है कि देवनागरी लिपि के साथ हिंदी भारत की राजभाषा होगी। इसलिए 14 सितम्बर का दिन हमारे देश में हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।

विश्व में हिंदी भाषा बोलने वाले लोगों की संख्या लगभग 70 करोड़ है। यह विश्व की तीसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। विश्व में अंग्रेजी भाषा का पहला और चीनी भाषा मंदारिन का दूसरा स्थान है। एक आंकलन के अनुसार विश्व में लगभग एक अरब बारह करोड़ लोग अंग्रेजी बोलते हैं जबकि लगभग एक अरब दस करोड़ लोग मंदारिन बोलते हैं। विश्व में चौथे नम्बर पर स्पेनिश और पांचवे नम्बर पर अरबी भाषा है।

वर्तमान समय में इंटरनेट ने हिंदी को वैश्विक भाषा (Global language) बना दिया है। पिछले एक दशक में हिंदी की लोकप्रियता और स्वीकार्यता पूरे विश्व में बढ़ी है। आज हिंदी विश्व के हर कोने में पढ़ी और पढ़ाई जाती है। भारत के बाहर विश्व के 138 विश्वविद्यालयों में हिंदी का अध्ययन और अध्यापन किया जाता है। विश्व के लाखों लोग हिंदी फिल्मों को देखने और हिंदी गानों को सुनने के लिए हिंदी सीख रहे हैं।

वेव मैगजीन, ई-बुक्स, ई-मेल और सोशल मीडिया से हिंदी की लोकप्रियता में वृद्धि हुई है। हिंदी जानने, समझने और बोलने वालों की बढ़ती संख्या के कारण विश्वभर की वेवसाइटें हिंदी को महत्त्व दे रही हैं। माइक्रोसाफ्ट, गूगल, आईवीएम और ओरेकल जैसी कम्पनियां भारत में अत्यन्त व्यापक बाजार और भारी मुनाफे को देखते हुए हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा दे रही हैं।

एक आंकलन के अनुसार नेपाल के 8 लाख, अमेरिका के 7 लाख, मारीशस के 7 लाख, दक्षिण अफ्रीका के 9 लाख, यमन में ढाई लाख, युगांडा में डेढ़ लाख, जर्मनी में 30 हजार, न्यूजीलैण्ड में 20 हजार और सिंगापुर में 5 हजार लोग हिंदी बोलते हैं। इसके अतिरिक्त आज विश्व के हर कोने में हिंदी बोलने वाले लोग मिल जायेंगे।

देश के दक्षिणी राज्यों जैसे तमिलनाडु, उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र के लोगों में हिंदी के प्रति रुचि बढ़ी है और हिंदी बोलने वालों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। पूर्वोत्तर के राज्यों असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय एवं त्रिपुरा के लोग भी हिंदी सीख रहे हैं जो हिंदी के लिए शुभ संकेत हैं।

आज फेसबुक, व्हाट्सअप, ट्विटर आदि सोशल मीडिया प्लेफार्म्स पर हजारों साहित्यिक पटल संचालित किए जा रहे हैं जिनसे देश और विदेशों के लाखों साहित्यकार जुड़े हुए हैं। इनमें नवोदित एवं स्थापित दोनों प्रकार के साहित्यकार हैं। इन साहित्यिक पटलों पर युवा साहित्यकार अपनी रचनाओं को अन्य साहित्यकारों के साथ साझा कर रहे हैं। इन साहित्यिक पटलों से बड़ी संख्या में हिंदी एवं साहित्य प्रेमी जुड़ रहे हैं। वेब मैगजीन, ई-बुक्स, फेसबुक, व्हाट्सअप, ट्विटर और ब्लॉग ने हमारे युवा साहित्यकारों को अपनी प्रतिभा प्रदर्शित करने के लिए उचित मंच प्रदान किया है जो हिंदी साहित्य और हिंदी दोनों के लिए सुखद है।

इंटर परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद ज्यादातर विद्यार्थी बीएससी, बीसीए, बीबीए, बीटेक, आईआईटी, एमबीबीएस, एमबीए आदि में प्रवेश लेना चाहते हैं। इन सभी के शिक्षण का माध्यम अंग्रेजी भाषा ही है। इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि स्वतन्त्रता के 75 वर्ष पश्चात् भी इन पाठ्यक्रमों के लिए हमारी सरकारें हिंदी माध्यम की पुस्तकें उपलब्ध नहीं करा पायी हैं, फिर छात्रों में हिंदी के अध्ययन के प्रति रुचि कैसे उत्पन्न होगी। यदि इन सभी व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की पुस्तकें हिंदी में उपलब्ध हो जायें तो हिंदी की लोकप्रियता एवं स्वीकार्यता में भारी वृद्धि हो जायेगी।

हिंदी के प्रचार-प्रसार और देश में हिंदी बोलने वालों की संख्या में वृद्धि करने के लिए यह आवश्यक है कि हिंदी रोजगार की भाषा बने।

आज सरकारी क्षेत्र में रोजगार की सम्भावनाएं बहुत सीमित हैं। प्रतिभाशाली युवा सार्वजनिक क्षेत्र की ओर तेजी से आकर्षित हो रहे हैं। वर्तमान समय में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का जाल पूरे देश में फैला हुआ है। ये हमारे देश के करोड़ों युवाओं को रोजगार उपलब्ध करा रही हैं। देश-विदेश की बड़ी कम्पनियां होने के कारण इनमें अधिक कार्य अंग्रेजी में ही होता है। इन कम्पनियों में रोजगार की असीम सम्भावनाओं को देखते हुए देश के युवा हिंदी के स्थान पर अंग्रेजी को महत्व देते हैं क्योंकि इन कम्पनियों में रोजगार पाने के लिए अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान होना और अंग्रेजी में संवाद करने की योग्यता होना आवश्यक है।

आज भी देश की अधिकतर प्रतियोगी परीक्षाएं अंग्रेजी माध्यम से कराई जा रही हैं। केन्द्र सरकार के अधिकतर विभागों में सारा कामकाज अंग्रेजी में ही होता है। न्यायालयों की भाषा भी अंग्रेजी ही है। इसलिए स्वतंन्त्रता के इतने वर्षों बाद भी देश में अंग्रेजी का वर्चस्व बना हुआ है।

बच्चों को इंग्लिश मीडियम स्कूलों में पढ़ाना समाज में एक स्टेटस सिम्बल सा बनता जा रहा है जिसके चलते देश के अधिकतर विद्यालयों में आज भी अंग्रेजी ही शिक्षा का माध्यम बनी हुई है। अंग्रेजी के बढ़ते प्रभाव के कारण इन विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र अपनी सभ्यता, संस्कृति एवं संस्कारों से दूर होते जा रहे हैं जो गम्भीर चिन्ता का विषय है।

शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी होने के कारण विद्यार्थियों को विषयों को सीखने में अधिक समय और श्रम लगता है जबकि वे हिंदी में चीजों को आसानी और सहजता से सीख और समझ सकते हैं। मातृभाषा में अध्ययन के महत्व को प्रतिपादित करते हुए राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन ने कहा था.‘सर्वसाधारण की उन्नति मातृभाषा के द्वारा ही हो सकती है और मनुष्य की मातृभाषा उसकी माँ के समान महत्व रखती है।’महान वैज्ञानिक सीवी रमन ने कहा था, ‘यदि भारत में विज्ञान मातृभाषा के जरिए पढ़ाया गया होता तो भारत इस समय दुनिया के अग्रगण्य देशों में होता।’

केन्द्र सरकार द्वारा जारी ‘नई शिक्षा नीति-2020’ में विद्यालयी शिक्षा मातृभाषा में देने का प्रावधान है। यदि हमारी वर्तमान केन्द्र और राज्य सरकारें पूरी प्रतिबद्धता और दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ विद्यालयी शिक्षा मातृभाषा में प्रदान कराने में सफल हो जाती हैं तो इससे देश में हिंदी के स्वर्णिम युग की शुरुआत होगी। हिंदी के साथ ही देश की अन्य भाषाओं को भी बल मिलेगा और देश से अंग्रेजी का वर्चस्व समाप्त करने में मदद मिलेगी।

वर्तमान समय में हिंदी के प्रचार-प्रसार और हिंदी में पारंगत नौजवानों को रोजगार के अवसर सुलभ कराने में हिंदी प्रिन्ट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। देश में बड़ी संख्या में हिंदी के समाचारपत्र एवं पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं। बड़ी संख्या में हिंदी टीवी चैनल हैं। यूट्यूब चैनल का प्रचलन भी बहुत तेजी से बढ़ा है। मीडिया के क्षेत्र में पैसा भी है और ग्लैमर भी। इसके साथ ही इनमें आगे बढ़ने की असीम सम्भावनाएं भी हैं। हिंदी का ज्ञान रखने वाले तथा प्रभावी तरीके से हिंदी लिखने और बोलने वाले युवा इनमें संवाददाता, उप सम्पादक, वरिष्ठ उप सम्पादक, मुख्य उप सम्पादक, समाचार सम्पादक, सह सम्पादक, फीचर सम्पादक, सम्पादक, टीवी एंकर, छायाकार आदि के पदों पर अपनी क्षमता एवं योग्यता के अनुसार रोजगार के अवसर पा सकते हैं। मीडिया के बढ़ते प्रभाव के कारण आज हिंदी बोलने वालों की संख्या में पूरे देश में तेजी से वृद्धि हो रही है।

प्रसार भारती ने हिंदी को पूरे देश में लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके साथ ही प्रसार भारती हिंदी में प्रवीणता रखने वाले नौजवानों को रोजगार के अवसर भी सुलभ करा रही है। पूरे देश में प्रसार भारती द्वारा लाखों आकाशवाणी एवं दूरदर्शन केन्द्र संचालित किए जा रहे हैं। इनमें लाखों युवाओं को रोजगार के अवसर मिले हैं। इन केन्द्रों से प्रसारित कार्यक्रम से हिंदी बोलने एवं समझने वालों की संख्या भी काफी तेजी से बढ़ी है।

देश का इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है कि स्वतंन्त्रता के इतने वर्षों बाद भी हम आम आदमी को उसकी अपनी भाषा में न्याय सुलभ नहीं करा पा रहे हैं। वर्षों तक न्यायालयों के चक्कर काटने और अपनी गाढ़ी कमाई का लाखों रुपये खर्च करने के उपरान्त जब उसके मुकदमे में निर्णय सुनाया जाता है और उसे न्याय की जो प्रति दी जाती है वह अंग्रेजी भाषा में होती है जिसे वह न पढ़ सकता है और न ठीक तरह से समझ सकता है। बस उसका वकील उसे इतना समझा देता है कि वह मुकदमा जीत गया है या हार गया है।

आम आदमी को उसकी भाषा में न्याय मिले यह समय की मांग है। तहसील स्तर के मुंसिफ अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पूरे देश में लाखों की संख्या में न्यायालय हैं। इन न्यायालयों में करोड़ों लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिला हुआ है। यदि सरकार हिंदी को न्यायालय की भाषा बना दे तो कुछ ही समय में देश में हिंदी बोलने वालों की संख्या में करोड़ों लोगों की वृद्धि हो जाएगी।

वर्तमान समय में निश्चित रूप से हिंदी की लोकप्रियता और स्वीकार्यता बढ़ी है परन्तु हिंदी को रोजगार से जोड़े बिना इसको राष्ट्रभाषा बनाना कठिन प्रतीत होता है। नई शिक्षा नीति में विद्यालयी शिक्षा को मातृभाषा में दिए जाने का प्रावधान उम्मीद है कि हिंदी के विकास में और हिंदी को रोजगारपरक बनाने में निर्णायक भूमिका निभाएगा। यदि ऐसा होता है तो फिर हिंदी को देश की राष्ट्रभाषा बनने से कोई नहीं रोक पायेगा। वर्तमान समय में हिंदी का भविष्य उज्जवल है और यदि विश्व में हिंदी बोलने वालों की संख्या इसी गति से बढ़ती रही तो अगले दशक में हिंदी विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा बन जायेगी।

सुरेश बाबू मिश्रा

(सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य एवं साहित्यकार)

बरेली में भी हो रहा है हिंदी के विकास के लिए काम

रिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र बीनू सिन्हा ने 33 वर्ष पहले 1988 में बरेली से हिंदी साहित्यिक पत्रिका विविध संवाद त्रैमासिक के प्रकाशन का    शुभारंभ हिंदी के विकास के उद्देश्य से किया। इसके अनेक ऐतिहासिक अंक निकले जो शोधार्थियों के लिए भी उपयोगी सिद्ध हुए। इन अंकों में साहित्यकार अज्ञेय, माखन लाल चतुर्वेदी, जैनेंद्र कुमार, विष्णु प्रभाकर, कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर, आचार्य क्षेम चंद सुमन, समालोचक नामवर सिंह सरीखे विद्वानों के बारे में दुर्लभ जानकारी दी गई है। इस त्रैमासिकी में समालोचक मधुरेश, कवि-गीतकार किशन सरोज और शायर वसीम बरेलवी पर भी विशेषांक छापकर साहित्य जगत में उनके योगदान को उजागर किया।

पत्रिका के सम्पादक सुरेन्द्र बीनू सिन्हा कहते हैं कि विविध संवाद भविष्य में भी साहित्य से जुड़े लोगों और हिंदी भाषा की सेवा करती रहेगी। देश के चोटी के साहित्यकारों को बरेली बुलाकर हिंदी के विकास के लिए कई गोष्ठियों का आयोजन किया जा चुका है और भविष्य में भी होता रहेगा।

gajendra tripathi

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