Opinion

कारगिल विजय दिवस : 16 हजार फीट ऊंचे पहाड़ों पर शौर्य की महागाथा

ड़ोसी देश पाकिस्तान की यह फितरत रही है कि भारत ने जब-जब उससे सम्बन्ध सुधारने की पहल की, तब-तब उसने मित्रता की आड़ लेकर विश्वासघात किया है। कारगिल की ऊंची चोटियों पर हुआ युद्ध कुटिल पाकिस्तान के इसी विश्वासघात की परिणति था। भारतीय जवानों के शौर्य से थर्राई पाकिस्तानी सेना और उसके पालतू आतंकवादियों को अंततः कारगिल की युद्धभूमि से दुम दबाकर भागना पड़ा था।

सन् 1999 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने पाकिस्तान से सम्बन्ध सुधारने की दिशा में एक सार्थक पहल की। दिल्ली से लाहौर तक ‘सदा-ए-सरहद’ नाम से बस सेवा की शुरूआत की।

इस बस सेवा का उद्घाटन 19 फरवरी 1999 को किया गया। इस सेवा के प्रथम यात्री के रूप में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई स्वयं 36 सदस्यीय भारतीय शिष्टमंडल के साथ लाहौर गए। पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने लाहौर पहुंचने पर गर्मजोशी के साथ उनका स्वागत किया। दोनों नेताओं के मध्य अत्यंत सद्भावना पूर्ण माहौल में वार्ता हुई और लाहौर घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर किए गए। दोनों देश की जनता इस बस सेवा के शुरू होने से बहुत प्रसन्न थी। मगर इसके बदले में पाकिस्तान हुक्मरानों ने भारत को कारगिल का जख्म दिया।

पाकिस्तानी सेना के तत्कालीन प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ की शह पर बड़ी संख्या में पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकवादियों ने भारत के कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ करना शुरू कर दी। चोरी-छिपे वे काफी दिनों तक यह नापाक हरकत करते रहे। धीरे-धीरे उन्होंने कारगिल की कई पहाड़ी चोटियों पर कब्जा कर लिया। उन पर कई बंकर भी बना लिये। पाकिस्तानी सेना ने इसे “ऑपरेशन बद्र” का नाम दिया। इसका उद्देश्य कश्मीर और लद्दाख की बीच की कड़ी को तोड़कर भारतीय सेना को सियाचिन ग्लेशियर से हटाना था।

3 मई 1999 को एक भारतीय चरवाहे ने भारतीय सीमा में कई पाकिस्तानी सैनिकों को देखा। उसने इसकी सूचना कारगिल में तैनात भारतीय सैनिकों को दी। 5 मई 1999 को भारतीय सैनिकों की पैट्रोलिंग टीम इस मामले की जानकारी लेने वहां गई तो पाकिस्तानी सैनिकों ने उन्हें पकड़ लिया। उन्होंने पांच भारतीय सैनिकों की हत्या कर दी। इस घटना से भारतीय सैन्य अधिकारी सकते में रह गए।

पाकिस्तानी सैनिकों की नापाक हरकतें जारी रहीं। 9 मई को पाकिस्तानी सैनिकों की गोलाबारी में भारतीय सेना का कारगिल में मौजूद गोला-बारूद का स्टोर नष्ट हो गया। भारतीय सेना द्वारा इसे शुरुआत में पाकिस्तानी सैनिकों की मदद से आतंकवादियों की घुसपैठ कराने का  मामला माना गया। कारगिल में तैनात सैनिक और अर्धसैनिक बल इस घुसपैठ को नाकाम करने के काम में जुट गए। लेकिन, घुपैठियों की रणनीति और वहां बड़ी संख्या में पाकिस्तानी सैनिकों की मौजूदगी को देखकर भारतीय सेना को यह अहसास हुआ कि यह पाकिस्तानी सेना की बड़े हमले की योजना है। इसको देखते हुए पाकिस्तानी सेना के हमलों का मुंहतोड़ जवाब देने की रणनीति बनाई गई।

भारत ने इसको “ऑपरेशन विजय” नाम दिया। इस ऑपरेशन के तहत भारतीय सेना की कई बटालियन युद्ध के मोर्च पर भेजी गईं। पाकिस्तानी सैनिक कारगिल की पहाड़ियों पर पहले ही घुसपैठ करके ऊपर जमा हो गए थे। हमारी सेना के जवान नीचे थे मगर उनके जोश और जज्बे को देखकर पाकिस्तानी सैनिक दंग रह गए।

भारत सरकार ने 26 मई 1999 को भारतीय वायुसेना को पाकिस्तानी सेना के खिलाफ कार्रवाई करने की इजाजत दी। भारतीय वायुसेना में इस युद्ध में मिग 27 एवं मिग 29 का इस्तेमाल किया। मिग 27 एवं मिग 29 की सहायता से पाकिस्तान के कई ठिकानों पर आर-77 मिसाइलों से हमला किया गया।

लगभग 60 दिनों तक चले कारगिल युद्ध में भारतीय सेना द्वारा बड़ी संख्या में राकेट एवं बमों का इस्तेमाल किया गया। इस दौरान करीब 2.5 लाख गोले दागे गए। करीब 5000 बम फायर करने के लिए 300 से ज्यादा मोर्टार तोपों एवं राकेटों का इस्तेमाल किया गया।

कारगिल युद्ध में भारतीय सैनिकों के लिए परिस्थितियां बहुत ही विषम एवं प्रतिकूल थीं। शत्रु सैनिक पहाड़ियों के ऊपर थे और हमारे सैनिक नीचे। कहा जाता है कि जब इरादा दृ़ढ़ हो और हौसले बुलद हों तो पर्वत रूपी बाधाएं भी अपना रास्ता बदल देती हैं। भारतीय सैनिकों ने ऐसा करके दिखा दिया। उन्होंने कारगिल युद्ध में असाधारण शौर्य एवं वीरता का प्रदर्शन किया। दुर्गम परिस्थितियों में लड़े गए इस युद्ध में भारतीय सैनिकों ने जैसी असाधारण शौर्य का प्रदर्शन किया, उसके चलते कारगिल युद्ध पूरे विश्व के लिए एक मिसाल बन गया। दुनियाभर के युद्धों का इतिहास साहसी सैनिकों की शौर्य गाथाओं से भरा पड़ा है। कारगिल युद्ध भारतीय सैनिकों की बहादुरी और उनके जज्बे के लिए याद किया जाता है।

जून 1999 में ही पाकिस्तान को लगने लगा कि वह यह युद्ध हार जाएगा। इसलिए उसने पहले ईरान, फिर चीन और अंत में अमेरिका से युद्ध रोकने के लिए दोनों देश के बीच मध्यस्थता करने की अपील की। ईरान ने उसकी मध्यस्थता की अपील को ठुकरा दिया। अमेरिका ने पाकिस्तान को लताड़ा और कहा कि पाकिस्तानी सेना ने ही नियंत्रण रेखा का उल्लंघन किया है। चीन ने भी पाकिस्तानी की इस अपील पर मध्यस्थता करने से हाथ खड़े कर दिए।

युद्ध जारी रहा और पाकिस्तानी सेना की सांस फूलने लगी। परेशान पाकिस्तान ने युद्ध रुकवाने के लिए एक और नापाक चाल चली। पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने अमेरिकी विदेश मंत्रालय के अधिकारी के नाम से भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई को फोन कर चेतावनी दी कि यदि भारत ने युद्ध नहीं रोका तो पाकिस्तान परमाणु हथियारों का प्रयोग कर सकता है जिससे आधे से अधिक भारत नष्ट हो जायेगा। हाजिर जवाब अटल जी ने कहा कि हम तो आधा भारत नष्ट करवाने के लिए तैयार बैठे हैं मगर याद रखना कि यदि परमाणु हथियारों का प्रयोग हुआ तो दुनिया के नक्शे से पाकिस्तान का नामोशिान मिट जायेगा। अटल जी की यह दृढ़ता देख पाकिस्तानी अधिकारी हक्का-बक्का रह गया और उसने तुरंत फोन बंद कर दिया।

कारगिल युद्ध के दौरान आम जनता में देश प्रेम की भावना अपनी चरम सीमा पर पहुंच गई थी। पूरा देश पूरी मजबूती के साथ एकजुट होकर सेना के जवानों के पीछे खड़ा था और उनका मनोबल बढ़ा रहा था। पूरे देश में सैनिकों के समर्थन में रोज रैलियां निकाली जातीं। चारों तरफ भारत माता की जय और जय हिंज- जय हिंद की सेना के नारे गूंजते रहते। इससे भारतीय सैनिकों का जोश और जज्बा अपने पूरे उबाल पर पहुंच गया था।

कारगिल युद्ध में भारत के 527 जवान शत्रु से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। 1363 जवान गम्भीर रूप से घायल हुए। भारतीय जांबाजों ने असाधारण वीरता एवं शौर्य का प्रदर्शन करते हुए पाकिस्तानी सैनिकों एवं आतंकवादी घुसपैठियों को भारत की सीमा से खदेड़ दिया और कारगिल की चोटियों को पूरी तरह से मुक्त करा लिया। हमारी सेना ने यहां भी मानवता और उदारता का अनोखा उदाहरण प्रस्तुत किया और जो पाकिस्तानी सैनिक जान बचाकर वापस भाग रहे थे उन्हें अपनी गोलियों का शिकार नहीं बनाया।

26 जुलाई 1999 को अधिकारिक रूप से कारगिल विजय की घोषणा कर दी गई। इस युद्ध के दौरान भारतीय सैनिकों ने असाधारण वीरता एवं शौर्य का प्रदर्शन किया। कारगिल की 16 हजार फीट ऊंची पहाड़ियों पर भारत के जांवाज सैनिकों ने अपने रक्त से विजय का एक नया इतिहास रचा। उन्होंने पूरी दुनिया को यह बता दिया कि भारतीय सेना अजेय है और किसी भी देश की सेना उसे पराजित नहीं कर सकती।

इस युद्ध की एक खास बात यह थी कि इसमें शहीद होने वाले अधिकतर सैनिक 18 वर्ष से 35 वर्ष की उम्र के नौजवान थे। फरीदाबाद के वराड़ा गांव के रहने वाले मनजीत सिंह कारगिल युद्ध के सबसे कम उम्र के शहीद थे। वे 18 वर्ष की उम्र में ही देश के लिए लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। इस युद्ध में शहीद हुए जवानों का नाम देश के इतिहास में सदैव अमर रहेगा। यह देश और समाज सदैव उनका ऋणी रहेगा।

सुरेश बाबू मिश्रा

(साहित्य भूषण से सम्मानित वरिष्ठ साहित्यकार)

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