Opinion

भाषा आंदोलन का प्रधानमंत्री के नाम खुला पत्र

सेवा में, 

     आदरणीय नरेंद्र मोदी जी,

     प्रधानमंत्री,  भारत सरकार, नई दिल्ली।

विषय : जो सरकार जनता की भाषा में कार्य नहीं करा पाए वह मानसिक रूप से गुलाम, कायर और जनविरोधी कही जाएगी। इससे मुक्ति के लिए भारतीय भाषाओं को महत्व और पारित संसदीय संकल्प लागू कराने के संबंध में…

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महोदय,

जिस देश की सरकार अपनी भाषाओं का सम्मान और उन्हें महत्व नहीं दे सकती एवं जनता की भाषा में कार्य नहीं कर सकती, वह मानसिक रूप से गुलाम, कायर और जन विरोधी ही कही जाएगी। वोट मांगने की भाषा अलग और राजकाज की भाषा अलग…। सरकारों द्वारा आजादी के इतने वर्ष बाद भी अंग्रेजियत की जो अघोषित वकालत जारी है वह भारतीय भाषाओं का अपमान है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी, वर्ष 1990-97 तक भाजपा के नेता पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी हों या अन्य प्रमुख नेता, कई बार अखिल भारतीय भाषा संरक्षण संगठन के बैनर तले आंदोलन का समर्थन कर चुके हैं। इनमें कई नेताओं ने तब धरने पर बैठ कर समर्थन दिया। इतना ही नहीं, पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की अगुवाई में पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह, चौधरी देवीलाल समेत विपक्ष के प्रमुख नेताओं, अनेक जाने-माने बुद्धिजीवियों और विभिन्न संगठनों के प्रमुखों ने 13 मई 1994 को संघ लोक सेवा आयोग के समक्ष धरना भी दिया। संगठन की प्रमुख मांगों में एक यह है कि संघ लोक सेवा आयोग की सभी परीक्षाएं भारतीय भाषाओं में आयोजित की जाएं और इनमें अंग्रेजी की अनिवार्यता हटाई जाए।

पूर्व में भारतीय राजनीति की अंग्रेजीपरस्ती के खिलाफ आवाज उठाई गई थी तो भाषा आंदोलनकारियों को हथकड़ी तक लगाई गई थी लेकिन हमारे इरादे नहीं बदल सके। भारत सरकार से मांग है कि तत्काल अपनी भाषा नीति में बदलाव कर राष्ट्रीय स्वाभिमान को स्थान दिया जए और भारतीय भाषाओं में केंद्रीय परीक्षाओं की व्यवस्था की जाए। इस मांग के लिए आंदोलन चलता रहेगा। यह आंदोलन हर सच्चे भारतीय का है। भारतीय भाषाओं की अस्मिता की रक्षा के लिए केंद्र सरकार कदम उठाए। किसी देश की कामकाज की भाषा विदेशी है तो इसका सीधा अर्थ है कि वह देश अभी भी मानसिक रूप से गुलाम है। आखिर कब तक यह देश मानसिक रूप से अंग्रेजियत का गुलाम बना रहेगा? भारतीय भाषाओं की रक्षा के लिए संसद पूर्व में दो बार संकल्प ले चुकी है, राष्ट्रपति द्वारा इस बारे में आदेश जारी किए जा चुके हैं। देश के प्रमुख राजनीतिक दल पूर्व में संगठन की मांगों का समर्थन कर चुके हैं। इस मामले में अब अधिक देरी उचित नहीं है। इस मामले में जल्द कार्रवाई नहीं हुई तो आंदोलन तेज किया जाएगा।

                                               भवदीय

                                             रवींद्र सिंह धामी,

                                             (राष्ट्रीय सचिव),

                                    अखिल भारतीय भाषा संरक्षण संगठन,  

                                                नई दिल्ली।

                                       ईमेल-  rdhami1972@gmail.com

                                           फोन- 9410112344

दिनांक-20 अक्टूबर 2020,

स्थान-खटीमा, उत्तराखंड

gajendra tripathi

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