16 नवम्बर सन् 1965 को ईरान की राजधानी तेहरान में विश्व के शिक्षा मंत्रियों के एक सम्मेलन का आयोजन हुआ। इसमें दुनिया में मौजूद निरक्षर लोगों की बड़ी संख्या पर गहरी चिंता व्यक्त की गई। विश्व भर में लोगों में निरक्षरता उन्मूलन के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने हेतु 8 सितम्बर का दिन अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। इस निर्णय के अनुसार 8 सितंबर 1966 को पहला अन्तरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाया गया। तब से साक्षरता दिवस मनाने का सिलसिला लगातार जारी है।
वर्तमान समय में विश्व की साक्षरता दर 85 प्रतिशत है। भारत की साक्षरता दर विश्व की साक्षरता दर से काफी कम है। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की साक्षरता दर 74.6 प्रतिशत है। आजादी के 73 वर्ष बीत जाने के बावजूद देश की एक चौथाई आबादी अभी भी निरक्षर है, जो गम्भीर चिंता का विषय है। देश में महिलाओं की साक्षरता दर पुरुषों की तुलना में काफी कम है। देश में पुरुषों की साक्षरता दर 82 प्रतिशत है जबकि महिलाओं की साक्षरता दर केवल 65 प्रतिशत ही है। देश की 35 प्रतिशत महिलाएं पढ़ना-लिखना नहीं जानती।
इक्कीसवीं सदी में निरक्षरता किसी अभिशाप से कम नहीं है। निरक्षरता सभी सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं की जननी है। निर्धनता, जनसंख्या वृद्धि, शोषण, नारी अत्याचार एवं कुपोषण का मूल कारण निरक्षरता ही है। अक्षर से अनभिज्ञ ये लोग अपने अधिकार एवं कर्तव्यों से पूरी तरह अनजान हैं। इसलिए हर जगह उनका शोषण होता है।
निरक्षरता और निर्धनता एक दूसरे के पूरक हैं। आमतौर पर जो निरक्षर हैं वे निर्धन भी हैं। एक आंकलन के अनुसार देश में लगभग 31 करोड़ लोग निरक्षर हैं। आंकड़े बताते हैं कि देश के लगभग 30 करोड़ लोग गरीबी की रेखा से नीचे का जीवन जीने को मजबूर हैं। उन्हें दो जून का भरपेट भोजन भी मयस्सर नहीं है। इस प्रकार निरक्षरता को दूर किये बिना देश के विकास की कल्पना करना बेमानी है।
निरक्षरता और जनसंख्या वृद्धि के बीच सकारात्मक सम्बन्ध है। उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, मध्य प्रदेश, झारखंड में निरक्षरों की संख्या सबसे अधिक है जिसके फलस्वरूप इन राज्यों में जनसंख्या वृद्धि की दर भी देश में सबसे अधिक है। इसके विपरीत केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, पंजाब, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्य साक्षरता की दृष्टि से अग्रणी हैं और वहां निरक्षरों की संख्या कम है जिससे वहां जनसंख्या वृद्धि की दर भी कम है। इसलिए यदि हम जनसंख्या वृद्धि पर लगाम लगाना चाहते हैं तो सबसे पहले निरक्षरता को समाप्त करना होगा।
साक्षरता एवं शिक्षा विकास का धरातल तैयार करती है। साक्षरता एवं शिक्षा के बिना हम किसी देश के विकास की कल्पना तक नहीं कर सकते। जब तक देश की एक चौथाई आबादी निरक्षर है तब तक हमारा देश विकसित देश कैसे बन सकता है।
एक आंकलन के अनुसार देश के लगभग ढाई करोड़ युवा निरक्षर हैं। अक्षर से अनभिज्ञ होने के कारण वे अपना पेट पालने के लिए मजदूरी करने पर विवश हैं। प्रवासी मजदूरों की समस्या का एक प्रमुख कारण उनकी निरक्षरता भी है। इसलिए यदि हम चाहते हैं कि हमारा देश विश्व की महाशक्ति बने तो हमें निरक्षरता के खिलाफ जंग छेड़नी होगी।
साक्षरता के मामले में महिलाओं की स्थिति बहुत ही चिन्ताजनक है। देश की 35 प्रतिशत महिलाएं अंगूठा टेक हैं। वे पढ़ना-लिखना नहीं जानतीं। बढ़ते नारी अत्याचार, आये दिन उनके साथ होने वाली छेड़छाड़ और दुष्कर्म का एक मुख्य कारण उनकी निरक्षरता भी है। अनपढ़ होने के कारण वे अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों के बारे में कुछ नहीं जानतीं जिससे उनका कदम-कदम पर शोषण होता है। नारी समानता, नारी जागृति जैसे शब्द उनके लिए निरर्थक और बेमाने हैं। महिलाओं की इसी स्थिति को देखकर गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में लिखा होगा- केहि विधि सृजी नारि जग माही, पराधीन सपनेहु सुख नाहि।
साक्षरता ही महिलाओं के पैरों के नीचे वह जमीन तैयार करती है जिस पर उसे अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा व अधिकारों की लड़ाई लड़नी है।
पिछले कुछ दशकों में भारतीय महिलाओं में अपने अधिकारों के प्रति जो चेतना आई है उसका मुख्य कारण साक्षरता और शिक्षा ही है। महिला साक्षरता ने गाँवों में भी नारी स्वतंत्रता एवं चेतना के बीज वो दिए हैं बस फसल कटने का इंतजार है।
नारी देश के भावी नागरिक को जन्म देने वाली और उसकी प्रथम शिक्षिका है। यदि घर की महिला साक्षर होगी तो वह बच्चों की शिक्षा के प्रति जागरूक रहेगी तथा परिवार के आर्थिक विकास में भी पुरुषों का हाथ बंटा सकेगी। इसलिए कहा जाता है- पढ़ी लिखी गर घर की नारी, हो कुटुम्ब की शिक्षा सारी।
निरक्षरता के कारण जिस ग्रामीण समाज में धृतराष्ट्र जैसे अंधे अंधविश्वास हों, गांधारी जैसी बहकी-बहकी मान्यताएं हों, जहां गाँव की चौपाल पर रोज द्रौपदी जुएं के दांव पर लगती हो ऐसे समाज में महिलाओं की असहाय स्थिति का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। निरक्षरता का अजगर महिलाओं के विकास की राह में फन फैलाए खड़ा है। गाँवों में महिला साक्षरता की स्थिति अभी भी बहुत दयनीय है।
विश्व भर में सबसे अधिक निरक्षरों की संख्या भारत में है जो हमारी प्रगति एवं विकास पर सवालिया निशान लगाती है। जब तक हम देश के प्रत्येक नागरिक को साक्षर नहीं बना देते तब तक विश्व की महाशक्ति बनने की बातें करना दिवास्वप्न देखने के समान है।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009 पूरे देश में एक अप्रैल 2010 को लागू किया गया। इसमें 6 से 14 वर्ष के बच्चों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान कराने का प्रावधान है। बच्चों की उपस्थिति विद्यालयों में बढ़े इसे सुनिश्चित करने के लिए कक्षा आठ तक के छात्रों के लिए मिड डे मील एवं निःशुल्क यूनिफार्म की व्यवस्था की गई है। छात्रों की ड्राप आउट दर को शून्य करने के लिए माध्यमिक शिक्षा अभियान चलाया जा रहा है।
इन सब प्रयासों के सुखद परिणाम सामने आ रहे हैं और देश का साक्षरता प्रतिशत काफी बढ़ा है, मगर अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। वयस्कों की निरक्षरता को दूर करने के लिए जन सहभागिता की आवश्यकता है। यदि हर शिक्षित व्यक्ति यह संकल्प कर ले कि वह कम से कम एक व्यक्ति को अवश्य साक्षर करेगा तो देश से निरक्षरता का उन्मूलन करने में अधिक समय नहीं लगेगा।
(सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य)
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