लोकनायक जय प्रकाश
  • 11 अक्टूबर जयन्ती पर विशेष

देश की राजनीति में दो ऐसे महापुरुषों का उदय हुआ, जिन्होंने उस समय के जनमानस पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। पहले महापुरुष थे महात्मा गाँधी और दूसरे लोकनायक जय प्रकाश नारायण। स्वतन्त्रता आन्दोलन में जहाँ पूरा देश महात्मा गाँधी के पीछे खड़ा था, वहीं आपातकाल में लोकतन्त्र को बचाए रखने के लिए चलाये गये आन्दोलन में पूरा विपक्ष लामबन्द होकर जय प्रकाश नारायण के पीछे खड़ा था। इस आन्दोलन को जय प्र्रकाश नारायण ने समग्र क्रान्ति का नाम दिया।

समग्र क्रान्ति के प्रणेता जय प्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को बिहार में सारण जिले के सिताबदियारा में हुआ था। इनके पिता का नाम देवकी बाबू तथा माता का नाम फूलरानी देवी था। गाँव से प्रारम्भिक शिक्षा पूरी करने के बाद यह पटना आ गये। अपनी विद्यालयी शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से बीए किया। सन् 1920 में जब वे बीए फाइनल में थे तभी उनका विवाह प्रभा देवी के साथ हो गया। प्रभा देवी बहुत मधुर स्वभाव की और सुलझी हुई स्त्री थीं।

जय प्रकाश नारायण का परिवार आर्थिक दृष्टि से अधिक समृद्ध नहीं था। फिर भी उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका जाने का निश्चय किया। परिवार वालों ने उन्हें अमेरिका नहीं जाने के लिए समझाने-बुझाने का भरसक प्रयास किया मगर वे अपने निश्चय पर अडिग रहे। और उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका चले गये।

अमेरिका में उन्हें बहुत विषम आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ा, मगर यह कठिनाइयां भी उनके फौलादी इरादों को डिगा नहीं पाईं। अपने अध्ययन के साथ-साथ उन्होंने अपनी जीविका कमाने के लिए काम करना भी जारी रखा। अमेरिका में वे साम्यवादी विचारधारा से बहुत प्रभावित हुए।

अमेरिका से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे सन् 1929 में भारत लौट आए। उस समय उनके विचार साम्यवाद से बहत प्रभावित थे और वे सशस्त्र क्रान्ति के पक्षधर थे। वे क्रान्तिकारियों के साथ मिलकर देश को आजाद कराना चाहते थे।

उनकी पत्नी प्रभावती के पिताजी उस समय कांग्रेस के एक बड़े कार्यकर्ता थे। प्रभादेवी भी कांग्रेस के विचारों से काफी प्रभावित थीं। अपनी पत्नी प्रभावती के कहने पर जय प्रकाश नारायण महात्मा गाँधी से मिले। वे गाँधी जी के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुए और कांग्रेस में शामिल हो गये।

आजादी के आन्दोलन में जय प्रकाश नारायण ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। महात्मा गाँधी जय प्रकाश के साहस और देशभक्ति के बड़े प्रशंसक थे। स्वतंत्रता आन्दोलन को गति प्रदान करने के लिए जय प्रकाश नारायण एक रात अंग्रेज जेल पुलिस को चकमा देकर हजारीबाग जेल से फरार हो गये। यह घटना स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान बहुत चर्चित रही और वे नवयुवकों के प्रेरणास्रोत बन गए।

उनके बेमिसाल राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा पहलू यह है कि उन्हें कभी सत्ता का मोह नहीं रहा। आजादी के बाद नेहरू जी की लाख कोशिशों के बावजूद जय प्रकाश नारायण उनके मन्त्रिमण्डल में शामिल नहीं हुए। वे सत्ता में पारदर्शिता और जनता के प्रति जबावदेही सुनिश्चित करना चाहते थे।

देश में फैले चतुर्दिक भ्रष्टाचार, भाई-भतीजाबाद, बेरोजगारी, गरीबी और शोषण को देखकर जय प्रकाश नारायण बहुत दुःखी थे। सन् 1974 में उन्होंने बिहार में पटना से तत्कालीन सरकार के खिलाफ एक आन्दोलन शुरू किया। इसे उन्होंने “समग्र क्रान्ति“ का नाम दिया। पटना से उठी यह चिन्गारी कब दावानल बनकर पूरे देश में फैल गई कुछ पता ही नहीं चला।

12 जुलाई 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने चुनाव के दौरान भ्रष्ट साधनों के प्रयोग के साक्ष्य मिलने पर तत्कालीन प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी के रायबरेली से लड़े गये संसदीय चुनाव को रद्द कर दिया। इस ऐतिहासिक फैसले के बाद सबको उम्मीद थी कि इन्दिरा गाँधी प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे देंगी, परन्तु ऐसा नहीं हुआ। इसके कारण जेपी की अगुयाई में सम्पूर्ण विपक्ष लामबन्द हो गया। पूरे देश में धरने-प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया।

25 जून सन् 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में एक ऐतिहासिक सभा हुई जिसमें विशाल जनसमूह उमड़ पड़ा। सभा को सम्बोधित करते हुए जेपी ने समग्र क्रान्ति की हुंकार भरी और लोगों के दिलों को झकझोर देने वाला भाषण दिया।

जेपी के नेतृत्व में विपक्ष को मिल रहे व्यापक जनसमर्थन से बौखलाकर 25 जून 1975 की आधी रात को पूरे देश में आपतकाल लागू करने की घोषणा कर दी। जेपी सहित विपक्ष के सारे प्रमुख नेताओं को रातों-रात गिरफ्तार कर लिया गया। सारे संवैधानिक अधिकार समाप्त कर दिए गये और प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी गई।

जेपी तथा विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ पूरे देश की जनता में गहरा रोष व्याप्त हो गया। देश में लोकतन्त्र की बहाली की मांग को लेकर सत्याग्रह करके गिरफ्तारी देने का सिलसिला शुरू हो गया। पुलिस के दमन का भय और अनिश्चितकाल तक जेल में रहने का खतरा भी इन लोकतन्त्र रक्षकों के इरादे को डिगा नहीं सका। पूरे देश में लगभग एक लाख लोग सत्याग्रह करके जेल गये। हजारों लोगों को उनके घरों से गिरफ्तार किया गया। पुलिस ने महिलाओं एवं किशोरों तक को नहीं छोड़ा।

18 जनवरी 1977 को इन्दिरा गाँधी ने 23 मार्च 1977 से आपातकाल हटाने और आम चुनाव कराने की घोषणा की। जेपी के प्रयासों से समस्त विपक्ष ने मिलकर जनता पार्टी का गठन किया। यह जेपी के करिश्मायी नेतृत्व का ही कमाल था कि 1977 के चुनावों में जनता पार्टी को अभूतपूर्व सफलता मिली। मोरारजी देसाई के नेतृत्व में आजादी के बाद पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी।

जय प्रकाश नारायण को सन् 1965 में समाज सेवा के लिए “मैगसेसे पुरस्कार“ प्रदान किया गया। सन् 1999 में अटल बिहारी सरकार ने उन्हें मरणोपरान्त देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न प्रदान किया। पटना के हवाई अड्डे का नाम उनके नाम पर रखा गया। दिल्ली सरकार का सबसे बड़ा अस्पताल लोकनायक जय प्रकाश अस्पताल उन्हीं के नाम पर है। राजनीति के इस निष्काम कर्मयोगी ने 8 अक्टूबर 1999 को पटना में अन्तिम श्वांस ली और और इस नश्वर संसार से विदा हो गये।

सुरेश बाबू मिश्रा

(सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य)

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