-जयंती पर विशेष-
आज 26 मार्च है, हिंदी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से एक महादेवी वर्मा का जन्मदिन। वे हिंदी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक मानी जाती हैं। महाकवि निराला अपनी इस मुंहबोली बहन को “हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती” कहते थे। कई विद्वानों ने उन्हें “आधुनिक मीरा” भी कहा है।
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित महादेवी वर्मा का बरेली से खास रिश्ता है। उनका बाल विवाह बरेली की नवाबगंज तहसील के रहने वाले स्वरूप नारायण वर्मा से वर्ष 1916 में हुआ था। इस नाते आप उन्हें “बरेली की बहू” भी कह सकते हैं। महादेवी का विवाह उनके पितामह बांके विहारी ने जब स्वरूप नारायण वर्मा से किया, उस समय वह दसवीं कक्षा के विद्यार्थी थे। 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह लखनऊ मेडिकल कॉलेज के बोर्डिंग हाउस में रहने लगे। महादेवी उस समय इलाहाबाद के क्रास्थवेट कॉलेज के छात्रावास में थीं। महादेवी को विवाहित जीवन से विरक्ति थी। कारण कुछ भी रहा हो पर स्वरूप नारायण वर्मा से कोई वैमनस्य नहीं था। सामान्य स्त्री-पुरुष के रूप में उनके संबंध मधुर ही रहे। दोनों में कभी-कभी पत्राचार भी होता था। यदा-कदा स्वरूप नारायण वर्मा इलाहाबाद में उनसे मिलने भी जाते थे। उन्होंने महादेवी के कहने पर भी दूसरा विवाह नहीं किया। दूसरी ओर महादेवी का जीवन एक संन्यासिनी का जीवन था। उन्होंने जीवनभर श्वेत वस्त्र पहने, तख्त पर सोयीं और कभी आईना नहीं देखा। स्वरूप नारायण वर्मा की मृत्यु के बाद वे स्थाई रूप से इलाहाबाद में रहने लगीं।
महादेवी की कविताओं में नारी की पीड़ा और प्रकृति का साक्षात्कार तो होता ही है, उनका इससे भी बड़ा योगदान है हिंदी कविता में उस कोमल शब्दावली का विकास जो उस समय तक केवल बृजभाषा में ही संभव मानी जाती थी। इसके लिए उन्होंने काव्य के अनुकूल संस्कृत और बांग्ला के कोमल शब्दों को चुनकर हिंदी का जामा पहनाया। संगीत की जानकार होने के कारण उनके गीतों का नाद-सौंदर्य और पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है। उन्होंने अध्यापन से अपने कार्यजीवन की शुरुआत की और अंतिम समय तक प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्य के पद पर रहीं।
हिंदी के सर्वाधिक प्रतिभावान और सम्मानीय कवियों में से एक महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” महादेवी वर्मा को न केवल अपनी बहन मानते थे बल्कि उनके अनन्य प्रशंसक भी थे। निराला ने महादेवी वर्मा के लिए कहा था, “शब्दों की कुशल चितेरी और भावों को भाषा की सहेली बनाने वाली एकमात्र सर्वश्रेष्ठ सूत्रधार महादेवी वर्मा साहित्य की वह उपलब्धि हैं जो युगों-युगों में केवल एक ही होती है; जैसे स्वाति की एक बूंद से सहस्त्रों वर्षों में बनने वाला मोती।”
भारतीय साहित्य में अतुलनीय योगदान के लिए महादेवी को 27 अप्रैल 1982 को भारत में साहित्य के सर्वाधिक प्रतिष्ठित सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
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