बरेली निवासी वरिष्ठ पत्रकार निर्भय सक्सेना से मेरी पहली मुलाकात वर्ष 2013 के उत्तरार्ध में फोन पर हुई। उत्तर प्रदेश जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन (उपजा) के द्विवार्षिक चुनाव में मेरी प्रान्तीय महामन्त्री पद के लिए उम्मीदवारी होने की वजह से वोट और सपोर्ट मांगा था। उन्होंने सहर्ष स्वीकृति दे दी। बरेली के ही जनार्दन आचार्य मेरे पुराने मित्र हैं। इन दोनों ने संयुक्त रूप से मेरे पक्ष में मोर्चा खोल दिया। इस विषय पर बरेली के पत्रकारों में काफी हलचल मची, पर वे टस से मस नहीं हुए।
वर्ष 2013 में उपजा का द्विवार्षिक अधिवेशन इलाहाबाद में हुआ। प्रदेश भर के जिलों से पहुंचे डेलीगेट्स ने मतदान किया। निर्भय जी ने डेलीगेट्स से संपर्क साधा। अंततः मेरी विजय हुई। निर्भय जी भी प्रान्तीय उपाध्यक्ष पद पर निर्वाचित हुए। उसके बाद निर्भय जी और लखनऊ के उपजा जिलाध्यक्ष अरविंद शुक्ला के सहयोग से पत्रकार हित में अनेक कार्यक्रम समय-समय पर किए गए तथा कई मांग पत्र प्रदेश के सूचना विभाग के अलमबरदारों से लेकर मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तक भेजे गए।
निर्भय जी के प्रयासों से बरेली में उपजा की दो दिवसीय प्रदेश सम्मेलन/ कार्यकारिणी का आयोजन बरेली उपजा जिलाध्यक्ष पवन सक्सेना, जनार्दन आचार्य,दिनेश पवन, महेश पटेल, सुभाष चौधरी, फिरासत हुसेन, फहीम करार, कृष्ण राज आदि द्वारा किया गया। इस अवसर पर एक स्मारिका का प्रकाशन किया गया।
निर्भय जी के प्रयासों से बरेली में उपजा की दो दिवसीय प्रदेश सम्मेलन/ कार्यकारिणी का आयोजन बरेली उपजा जिलाध्यक्ष पवन सक्सेना, जनार्दन आचार्य,दिनेश पवन, महेश पटेल, सुभाष चौधरी, फिरासत हुसेन, फहीम करार, कृष्ण राज आदि द्वारा किया गया। इस अवसर पर एक स्मारिका का प्रकाशन किया गया।
16 मार्च 1966 में स्थापित उपजा का अभी तक कोई अधिकृत इतिहास उपलब्ध नहीं था। इसे संजोने और संकलित करने का बीड़ा निर्भय जी ने उठा लिया। उन्होंने संस्थापक, कार्यकारिणी और पदाधिकारियों की जानकारी जुटाई तथा उपजा का श्रृंखलाबद्ध इतिहास संकलित किया। इसी दौरान पता चला कि संस्थापक महामन्त्री भगवत शरण के विषय में उपजा के कथित अलम्बरदार भी कोई जानकारी नहीं रखते हैं, लेकिन निर्भय जी ने मुझे साथ लेकर अलीगंज, लखनऊ में घर-घर, चौखट दर चौखट पूछताछ की और 3 घंटे के अनवरत परिश्रम के बाद आखिरकार उन्हें तलाश लिया। निर्भय जी और हमने उनके चरणस्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त किया। ऐसा एक नहीं कई उदाहरण हैं। निर्भय जी ने उपजा के पूर्व पदाधिकारियों (अज्ञात) जैसे गुरुदेव नारायण, राजेन्द्र द्विवेदी आदि के विषय में जानकारी जुटाई, सम्पर्क किया और उपजा के वर्तमान स्वरूप की चर्चा कर मार्गदर्शन करने का अनुरोध किया।
निर्भय जी बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं। कैसी भी परिस्थिति हो, उनकी पेशानी पर लकीरें नहीं उभरती हैं। एक मर्तबा प्रदेश उपजा एवं लखनऊ जिला उपजा द्वारा आयोजित मई दिवस 2016 के अवसर पर प्रदेश अध्यक्ष के नहीं पहुंचने से निर्भय जी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की और मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव का अभिनंदन कर उन्हें सम्मानित किया।
मजीठिया वेज बोर्ड लागू करवाने के लिए बने कन्फेडरेशन का दो दिवसीय कार्यक्रम लखनऊ के गोमती होटल और विश्वेश्वरैया हॉल में आयोजित हुआ। निर्भय ने बढ़-चढ़कर भाग ही नहीं लिया अपितु दो वरिष्ठ पत्रकारों राजेन्द्र प्रभु और नंदकिशोर त्रिखा (दोनों नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट नेता) की पूरी आवभगत और देखभाल की।
श्रम कानूनों को समाप्त करने से रोकने के लिए 10 अक्टूबर 2019 को कन्फेडरेशन (पत्रकार यूनियनों के समूह) द्वारा दिल्ली के जन्तर मन्तर पर किये गए धरना-प्रदर्शन में निर्भय जी शामिल ही नहीं हुए अपितु स्थानीय न्यूज़ चैनल्स को बाइट भी दीं।
प्रयागराज कुम्भ 2019 में उपजा ने दल-बल के साथ शिरकत की। निर्भय जी उसमें भी पीछे नहीं रहे। वे संगठित क्षेत्र के श्रमिकों के हित मे सदैव सक्रिय रहे। कर्मचारी राज्य बीमा निगम( ईएसआईसी ) के तहत 8000 रुपये प्रतिमाह तक वेतन वालो को निःशुल्क इलाज की व्यवस्था निर्धारित थी। निर्भय जी ने श्रमिक संघो के साथ मिलकर संघर्ष किया। पूर्व निर्धारित वेतन सीमा दायरा को बढ़वाकर 15000/- कराया। वह इससे भी संतुष्ट नही हुए। अपने एकल प्रयासों से केंद्रीय श्रम मंत्रालय से वेतनसीमा दायरा बढ़वाकर 21000 रुपये करा दिया। अभी भी वह अधिकतम श्रमिकों को ईएसआईसी का लाभ दिलाने के लिए वेतन सीमा का दायरा 35000 रुपये करवाने के प्रयास में जुटे हुए हैं।
केंद्रीय स्तर पर मजीठिया वेज बोर्ड लागू करना, पत्रकार सुरक्षा कानून बनाकर लागू करना, प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के संरक्षण के लिए प्रेस कौंसिल की बजाय मीडिया कौंसिल का गठन किया जाना, प्रेस आयोग का पुनर्गठन किया जाना आदि के लिए भी उन्होंने प्रधानमन्त्री से लेकर राष्ट्रपति तक कई पत्र लिखे। उत्तर प्रदेश में राज्य स्तर पर पत्रकार सुरक्षा कानून बनाए जाने, सभी पत्रकारों को चिकित्सा सुविधा कार्ड देने, सेवानिर्वत्त वरिष्ठ पत्रकारों को पेंशन आदि मांगो को लेकर केंद्रीय श्रम मंत्री, मुख्यमंत्री और राज्यपाल को अनगिनत पत्र भेजे। यह क्रम आज भी जारी है।
समाजसेवा में भी निर्भय जी पीछे नहीं है। अभी तक 50 बार रक्तदान कर चुके हैं। मानव सेवा क्लब, बरेली के माध्यम से निराश्रितों को भोजन, कपड़े, फल आदि अक्सर मुहैया कराते रहते हैं।
वह ऐसे व्यक्तित्व के धनी हैं कि एक बार जिसके साथ हो गए अपनी तरफ से साथ छोड़ने वाले नहीं हैं। बिरादरीवाद, किसी पद-प्रतिष्ठा का प्रलोभन आदि भी उन्हें डिगा नहीं सकते। हमारे बीच अलगाव पैदा करने की कई बार कोशिश की गई पर सभी निष्फल रहीं। पिछले कई वर्षों से हम अभिन्न मित्र हैं। वे सादगी से ओत-प्रोत और सरल स्वभाव के हैं। उनके संपर्क में यदि एक बार कोई आया तो उन्हें भुला नहीं सकता।
मैं प्रभु से उनके उत्तम स्वास्थ्य, कर्मठता, परोपकारी जीवन की कामना करता हूँ।
(प्रान्त महामन्त्री, उपजा)
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जहां तक मुझे याद है दिसंबर 1975 में हाड़ कंपाती सर्दी के बीच ‘दैनिक विश्व मानव’ में मेरी पहली मुलाकात भाई निर्भय सक्सेना से हुई थी। तब आजकल जैसा कम्प्यूटर युग नहीं था, सभी खबरें पहले कागज पर लिखी जाती थीं, फिर कंपोज होती थी। निर्भय जी डेस्क पर खबरें लिखने में तल्लीन थे। खबर पूरी करने के बाद मेरी ओर मुखातिब हुए, परिचय पूरा हुआ। उन्होंने मुझसे बरेली कालेज छात्र संघ से संबंधित कुछ खास बातें पूछीं, फिर अयूब खां चैराहा, जो अब पटेल चैक के नाम से जाना जाता है, वहां चाय के ठेले पर ले जाकर चाय पिलाई। तब से आज तक इन 45 वर्षों से हमारा साथ घनिष्ठ होते हुए पारिवारिक मित्रता पर पहुंच गया है। सन् 2013 में इलाहाबाद में हुए उत्तर प्रदेश जर्नलिस्ट एसोसिएशन (उपजा) के इलाहाबाद में हुए प्रादेशिक चुनाव में निर्भय सक्सेना प्रदेश उपाध्यक्ष के पद पर विजयी हुए तो दूसरी ओर मैंने प्रदेश मंत्री पद पर सफलता प्राप्त की।
पत्रकार निर्भय जी यथानाम तथागुण को चरितार्थ करते हैं। कई वीआइपी की प्रेस वार्ताओं में निर्भय जी निर्भीक होकर प्रश्न पूछते थे तो मंत्रियों/अधिकारियों द्वारा उसका उत्तर देते नहीं बनता था। कुछ बगलें झांकते तो कई तमतमा जाते थे क्योंकि निर्भय जी सटीक सवाल पूछते थे। बरेली के वरिष्ठ पत्रकार के रूप में जाने-माने निर्भय सक्सेना जी ‘दैनिक अमर उजाला’, ‘दैनिक विश्व मानव’, ‘दैनिक विश्वामित्र’, दैनिक आज और ‘दैनिक जागरण’ सहित अन्य कई मासिक व साप्ताहिक सामचार पत्रों से जुड़े रहे। यू.पी. जर्नलिस्ट एसोसिऐशन की बरेली जिला इकाई में सदैव सक्रिय रहे। बरेली में चार बार उत्तर प्रदेश जर्नलिस्ट एसोसिऐशन के प्रांतीय अधिवेशन आयोजित कराओ। तीसरे अधिवेशन में तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह मुख्य अतिथि के तौर पर आए थे। निर्भय जी ने बरेली में उपजा कार्यालय की स्थापना व प्रियदर्शिनी नगर में पत्रकार कालोनी की स्थापना में बढ़-चढ़कर भाग लिया। शहर के बीचोंबीच कोतवाली के सामने न्यू सुभाष मार्केट स्थित सिंघल लाइब्रेरी के अलग कक्ष में उपजा कार्यालय के विकास हेतु उ.प्र. के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी और हरियाणा के मुख्यमंत्री देवीलाल से आर्थिक सहयोग दिलाया। इतना ही नहीं उपजा कार्यालय में उस समय के वरिष्ठ पत्रकार कुलनीप नैय्यर, राजीव शुक्ला, राहुल देव, कमलेश्वर, रामबहादुर राय, महेश्वर दयाल गंगवार, वी.के. सुभाष, वीरेंद्र सिंह, अजय कुमार, अच्युतानन्द मिश्र, दादा पीयूष कांति राय, सांसद कपित वर्मा, पी.वी. वर्मा सहित कई ख्यातिप्राप्त पत्रकारों को बुलाया और उनका मार्गदर्शन लिया।
निर्भय सक्सेना को मैंने सदैव ही पूर्ण गतिशील देखा है। उन्होंने पत्रकारों के संगठन को नए आयाम दिए। सदैव संगठन को मजबूती के साथ आगे बढ़ाने में कमर्ठता दिखायी है। उनमें कर्मठता, लगनशीलता, सादगी, ईमानदारी, भाईचारा एवं अपनत्व की भावना कूट-कूट कर भरी हुई दिखायी देती है। अहम से दूर सदैव ही चौथे स्तंभ को मजबूत करते हुए उसके प्रकाश को बढ़ाने में अभी भी गतिशील हैं। मेरी प्रभु से प्रार्थना है कि उन्हें और अधिक शक्ति दे, वह स्वस्थ रहें और आने वाली पीढ़ी को मार्गदर्शन देते रहें यही मेरी शुभकामनाएं हैं।
(लेखक वरिषठ पत्रकार हैं)
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यह बात काफी हद तक ठीक है कि नाम ही आपके व्यक्तित्व की प्रथम काल्पनिक पहचान होता है। कोई नाम सुनते ही हमारी कल्पना में एक प्रतिबिम्ब उभरता है जिसके माध्यम से हम यह तय कर लेते हैं कि इस नाम वाला व्यक्ति इस तरह का होगा। नाम से ही प्रायः यह पता चल जाता है कि व्यक्ति का आचार-व्यवहार कैसा होगा। यह बात हमेशा हर नाम वाले पर पूरी तरह खरी उतरती हो ऐसा भी नहीं है पर काफी हद तक तो ठीक होती ही है। कम से कम मेरा तो यही मानना है। मेरे अनेक परिचित, मित्र हैं जिनका आचरण कामोवेश उनके नाम के अनुकूल ही है। इन्हीं में से एक नाम है निर्भय सक्सेना। एक बार बोलने लगे, “यार मेरे नाम के आगे जी मत जोड़ा करो। ऐसा लगता है जैसे हम संघ के स्वयंसेवक हों और आप हमें शाखा में चलने को बुला रहे हों।” हम भी कहां चूकने वाले थे। बोल दिया, “हमारा जी आरएसएस वाला नहीं है। यह तो ‘जीनियस’ का शार्टफार्म है। हम आपको जीनियस मानते हैं। यह जान कर कुछ लोग आपकी टांग खिंचाई न करें इसलिए जी से ही काम चला लेते …।”
(लेखक वरिषठ पत्रकार हैं)
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निर्भय सक्सेना उस पीढ़ी के पत्रकार हैं जब पत्रकार “बतौर पत्रकार” कार्य करते थे। निर्भय जी से मेरा परिचय उस समय का है जब उन्होंने पत्रकारिता में अपना पहला कदम रखा था। प्रेस कांफ्रेंस में तीखे सवाल उनकी पहचान होते थे। मुझे एक प्रसंग याद आ रहा है। बात 1977 की है। लंबे संघर्ष के बाद कांग्रेस की हार हुई और जनता पार्टी की सरकार बनी। उसी दौर में मेरे घर पर एक बैठक हुई जिसमें ड़ॉक्टर मुरली मनोहर जोशी आये थे। (जोशी जी जब भी इलाहाबाद या दिल्ली से अल्मोड़ा जाते थे तो बरेली में हमारे घर पर ही ठहरते थे )
कार्यकर्ताओ की बैठक में पत्रकार निर्भय सक्सेना को भी आमंत्रित किया गया था लेकिन एक उत्साहित नेता ने उनकी उपस्थिति पर आपत्ति की जिस पर हंगामा हो गया। बाद में जोशी जी ने पत्र भेज इसके लिए खेद जताया।
(पूर्व भाजपा सांसद)
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मैं निर्भय जी को विगत 10 वर्षों से अधिक समय से जानता हूं। वह कई सामाजिक एवं साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हैं। इस कारण निरंतर उनसे भेंट होती रहती है। उनकी सहभागिता और सक्रियता देखते ही बनती है। दो बातें जो मैंने खास नोट की हैं, उनका उल्लेख अवश्य ही करना चाहूंगा। एक, वह अधिकतर कार्यक्रमों में अवश्य आते हैं और समय से आते हैं और दूसरा, वह बरेली शहर के विकास, निर्माण कार्य, जाम, स्वच्छत, अन्य अभियान आदि के बारे में निरंतर प्रशासन,शासन को अवगत कराने के साथ ही समाचार पत्रों, व्हाट्सएप ग्रुप व अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर बेझिझक लिखते रहते हैं।
(साहित्यकार एवं समाजसेवी)
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निर्भय सक्सेना बरेली के पत्रकारों की उस श्रेणी में हैं, जब इस छोटे से माने जाने वाले शहर में अखबार और पत्रकार बहुत सीमित संख्या में थे। उस दौर में पत्रकारों को बहुत सम्मान मिलता था। हालांकि पत्रकारिता की आड़ में कुछ लोग व्यवसाय भी करते थे और अंशकालिक पत्रकारों की प्रथा एक आम बात थी। वजह यही कि पत्रकारिता से आय का प्रचलन बहुत कम था और जो कुछ भी आय होती थी उसमें घर का खर्च और बच्चों की शिक्षा का खर्च उठा पाना बहुत संभव नहीं था ।
धीरे-धीरे यह शहर नगर से महानगर बना और व्यावसायिक गतिविधियों का अच्छा केंद्र बन गया। उद्योग धंधे जो उस समय थे भी, वे चीनी मिलों को छोडकर लगभग समाप्त हो गए। अखबारों के लिए यह एक अच्छा संकेत नहीं था। यह मुद्दा विकास और स्थानीय जनप्रतिनिधियों से जुड़ा है मगर इसकी चर्चा यहां बेमानी नहीं है जरूरी है। इसलिए कि निर्भय सक्सेना जब पत्रकारिता में रम गए तो इस शहर और जिले के विकास की चिंता खुद करने लगे। जनसमस्याओं पर वह जितना स्थानीय प्रशासन का ध्यान आकर्षित करते, उतना ही शासन स्तर के मुद्दों को बरेली आने वाले सरकार के मंत्रियों के समक्ष उठाते थे और खुद ही उनकी खबरें बनाकर अखबार में छाप देते थे। कई बार इस तरह से बहुत से मसले हल भी हो जाते थे। यह जनप्रतिनिधियों और अफसरों की व्यक्तिगत मानसिकता पर भी निर्भर करता है कि वे अपने काम में कितनी रुचि लेते हैं और कौन सिर्फ नौकरी या ज़िम्मेदारी पूरी करने कि औपचारिकता निभाता है। खैर इस मानवीय स्वभाव को आज तक नहीं बदला जा सका है और आगे भी इस पर किसी का नियंत्रण नहीं है।
कहने का आशय यह है पत्रकारिता एक सामाजिक ज़िम्मेदारी से भरा काम था तब। वे लोग ही इस पेशे में आते थे जिनके भीतर एक टीस होती थी– उपेक्षा शोषण अन्याय के खिलाफ। यह कहना अतिशयोक्ति और अनुचित नहीं होगा कि तब की सरकारें स्थानीय अखबारों पर बहुत ध्यान देती थीं और मसले हल होते थे, अफसरों से पूछताछ अलग। सो प्रशासन भी सजग रहता था। लिहाजा इस माहौल का निर्भय सक्सेना खूब फायदा आम जनता को दिलवाते थे। यही काम वह आज तक कर रहे हैं। फिलहाल किसी अखबार में ज़िम्मेदारी के पद पर अपनी भूमिका न होते हुए भी वह एक सामान्य नागरिक की भूमिका में खुद को पत्रकारिता से अलग नहीं कर पाये और न ही कर सकते हैं।
जैसा कि नाम है निर्भय, वह वास्तव में निर्भय रहे और आज तक हैं । उन्होंने कभी एक पत्रकार के नाते किसी भी वैश्य को अपनी प्रतिष्ठा से नहीं जोड़ा। हां, नौकरी में जरूर उन्होंने हमेशा श्रम क़ानूनों के मुताबिक खुद के लिए और साथ में काम करने वालों के लिए आवाज़ उठाई। सफलता मिली हो या न मिली हो मगर उन्होंने समझौता नहीं किया। उनकी यही सोच आज भी है। कई मामलों के मुकदमे अभी भी चल रहे होंगे।
निर्भय सक्सेना को अपनी इस “निर्भयता” का खामियाजा भी भुगतना पड़ा और संकट आते रहे मगर उन्होंने कभी किसी से कोई मदद नहीं मांगी और न ही अपनी समस्या का रोना रोया। उनका समूचा कैरियर बेदाग रहा ।
कई बार अखबारों ने उनके इसी अड़ियलपन को लचाने-झुकाने के लिए उनके तबादला दूर-दराज़ के जिलों में कर दिया। वह खुशी से गए और अपना काम करके आए। खास बात उनके व्यक्तित्व कि यह रही कि अपनी व्यक्तिगत उपेक्षा, प्रताड़ना को वह हंसकर सहते गए। इससे भी ज्यादा यह कि साथियों से उनका कभी मन-मुटाव नहीं हुआ। व्यक्तित्व कि सरलता, मदद का हौसला और खुद के लिए किसी भी तरह का लोभ-लालच न होने कि प्रवृत्ति ने उन्हें आज तक एक तरह से निर्भयता का वरदान दे रखा है ।
(वरिष्ठ पत्रकार)
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हमारे अपने बरेली के खालिस पत्रकार निर्भय सक्सेना। सही मायने में पत्रकार ऐसे लोगों को ही कहते हैं। आज के इस दौर में जब हर रिश्ता, हर पद बिका हुआ है, पत्रकारिता को उसके सही अर्थ – गणतंत्र के चौथे खम्बे – को तौर पर निभाने वाले निर्भय जी अपने नाम को चरितार्थ करते हैं।
सुप्रिया ऐरन
(बरेली की पूर्व मेयर)
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वरिष्ठ पत्रकार निर्भय सक्सेना ने चित्रांशो के प्रतीक ‘कलम दवात’ को कोहाड़ापीर पेट्रोल पंप के पास लगाने का जो प्रस्ताव रखा था, वह आज सार्थक होता प्रतीत हो रहा है। इसमें विशेष सहयोग सतीश कातिब मम्मा, संजय सक्सेना, शालिनी जी का भी रहा। सभी लोगों के प्रयासों से कायस्थ चेतना मंच का यह कदम अब मूर्त रूप लेता नजर आ रहा है। सभी को इस काम के लिए धन्यवाद।
अखिलेश सक्सेना
(कोषाध्यक्ष, कायस्थ चेतना मंच, बरेली)
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