Opinion

प्लास्टिक वेस्ट से उबल रहे महासागर

विश्व महासागर दिवस 8 जून पर विशेष

पृथ्वी के 70 प्रतिशत भाग पर जल और 30 प्रतिशत पर स्थल है। सम्पूर्ण भूमंडल का क्षेत्रफल 51.6 करोड़ वर्ग किलोमीटर है। इसमें 36.17 करोड़ वर्ग किलोमीटर पर जल और 14.89 करोड़ वर्ग किलोमीटर पर स्थल का विस्तार पाया जाता है। इस प्रकार महासागरों की दुनिया पृथ्वी से काफी बड़ी है।

जलमंडल के अंतर्गत महासागर, सागर, खाड़ियां आदि सम्मिलित हैं। महासागरों में इतनी विशाल जलराशि है कि यदि इसे धरातल पर समतल रूप में फैला दिया जाए तो पूरी पृथ्वी पर 4.8 किलोमीटर गहरा सागर लहराने लगेगा।

महासागरों की तली धरातल की भांति ऊंची-नीची है। महासागर इतने गहरे हैं कि उनमें हिमालय जैसे अनेक विशाल पर्वत समा सकते हैं। धरती की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई 8850 मीटर है जबकि प्रशांत महासागर के मेरियाना गर्त की गहराई 11776 मीटर है। इसके अलावा टोंगा गर्त, क्यूराइल गर्व फिलीपाइन्स गर्त, करमाडेक गर्त और दक्षिणी सोलोमन गर्त की गहराई भी माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई से अधिक है।

समुद्र केवल जलराशि के ही विशाल स्रोत ही नहीं बल्कि ये खनिज सम्पदा, नमक, रत्न, मूंगा, मोती, मछलियां, शंख, घोंघा, सीप के भी विशाल भंडार हैं और मानव के लिए अत्यंत उपयोगी हैं। ये जैविक सम्पदा के भी भंडार हैं। महासागरों और सागरों में मौजूद अपार जल संपदा के कारण ही पृथ्वी को “वाटर प्लेनैट” भी कहा जाता है। जल के कारण ही पृथ्वी पर जीवन है।

समुद्रों की महत्ता को बताने और उसके संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र (यूएन) द्वारा हर साल 8 जून को विश्व महासागर दिवस मनाया जाता है। इसका मकसद लोगों को समुद्र में बढ़ रहे प्रदूषण और उससे होने वाले खतरों के बारे में जागरूक करना है। समुद्र के जल का बढ़ता तापमान पृथ्वी और मानवता के लिए शुभ संकेत नहीं है।

आज पृथ्वी ही नहीं समुद्र के लिए भी सबसे बड़ा खतरा प्लास्टिक अपशिष्ट (Plastic waste) है। प्लास्टिक वेस्ट और अंधाधुंध विस्फोटों के कारण समुद्रों का पानी उबल रहा है। इस वजह से तल में मौजूद समुद्री वनस्पतियां तेजी से खत्म होती जा रही हैं। अमेरिकी सरकार द्वारा हाल में जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाली वेबसाइट इको वाच के अनुसार समुद्र में प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण की वजह से प्रत्येक वर्ष 10 लाख से ज्यादा पक्षी एवं एक लाख से ज्यादा समुद्री जीवों की मौत हो रही है। पानी का तापमान बढ़ने से समुद्र में ऊंची-ऊंची लहरें उठ रही हैं जिसके भयानक समुद्री तूफान आने की आशंका बनी हुई है।

वैज्ञानिकों के अनुसार हम सांस लेने के लिए जिस ऑक्सीजन का प्रयोग करते हैं उसकी 10 प्रतिशत मात्रा हमें समुद से ही प्राप्त होती है। समुद्र में मौजूद सूक्ष्म वैक्टीरिया ऑक्सीजन का उत्सर्जन करते है जो पृथ्वी पर मौजूद जीवन के लिए बेहद जरूरी है। वैज्ञानिकों को अध्ययन में पता चला है कि समुद्र में प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण की वजह से ये वैक्टीरिया पनप नहीं पा रहे हैं। इससे समुद्र में ऑक्सीजन की मात्रा लगातार घट रही है और यह पशु-पक्षियों और इंसानों के लिए बहुत बड़ा खतरा है।

अंतरराष्ट्रीय  गैर सरकारी संगठन वर्ल्ड वाईड फंड फॉर नेचर द्वारा हाल ही में जारी रिपोर्ट के मुताबिक 2030 तक पृथ्वी पर प्लास्टिक प्रदूषण दोगुना हो जाएगा। वैज्ञानिकों के अनुसार समुद में 1950 से 2016 के बीच 66 वर्षों में जितना प्लास्टिक जमा हुआ है उतना केवल आगामी 10 सालों में जमा हो जाएगा। इससे महासागरों में प्लास्टिक कचरा 30 करोड़ टन तक पहुंच सकता है। समुद्र में 2030 तक प्लास्टिक दहन पर कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन तिगुना हो जायेगा जो हृदय सम्बन्धी बीमारियों को तेजी से बढ़ाएगा। हर साल उत्पादित होने वाले कुल प्लास्टिक में से महज 20 प्रतिशत ही रिसाइकल हो पाता है। 39 प्रतिशत जमीन के अदर दबाकर नष्ट किया जाता है और 15 फीसदी जला दिया जाता है। प्लास्टिक के जलने से उत्सर्जित होने वाली कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा 2030 तक तीन गुनी हो जाएगी जिससे हृदय रोग के मामलों में तेजी से वृद्धि होने की आशंका है।

वर्ल्ड वाईड फंड फॉर नेचर का लक्ष्य वर्ष 2030 तक स्ट्रा और पॉलीथिन बैग जैसी सिर्फ एक बार प्रयोग की जा सकने वाली प्लास्टिक की वस्तुओं को इस्तेमाल से हटाने का है। वैज्ञानिकों के अनुसार एक बार इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक सबसे ज्यादा खतरनाक है। प्लास्टिक कचरे में सबसे ज्यादा मात्रा सिंगल यूज प्लास्टिक की होती है।

हर साल तकरीबन 10.4 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा समुद्र में मिल जाता है। 2050 तक समुद्र में मछली से ज्यादा प्लास्टिक के टुकड़े होने का अनुमान है। प्लास्टिक के मलबे से समुद्री जीव बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। कछुओं की दम घुटने से मौत हो रही है और व्हेल इसके जहर का शिकार हो रही है। प्रशांत महासागर में ‘दा ग्रेट पैसिफिक गार्बेज वैच’ समुद्र में कचरे का सबसे बड़ा ठिकाना है। यहां पर 80 हजार टन से ज्यादा प्लास्टिक जमा हो गया है।

इस प्रकार प्लास्टिक वेस्ट समुद्र और समुद्री जीवन के लिए बहुत बड़ा खतरा बनता जा रहा है। समुद्र के जल का तापमान निरंतर बढ़ रहा है जिससे समुद्र में ऊंची-ऊंची लहरें उठ रही हैं। समुद्री तूफानों के आने की आशंका बनी रहती है। हाल ही में आए समुद्री तूफान ‘अम्फान’ और निसर्ग इसके उदाहरण हैं। अगर हम समय रहते नहीं चेते तो समुद्री सुनामी पृथ्वी पर भारी तबाही मचा सकती है।

समुद्र मानव जीवन के लिए अत्यंत उपयोगी है। विश्व के लगभग एक तिहाई लोगों का मुख्य भोजन समुद्री मछलियां हैं। जापान, नार्वे, फिललैंड, आयरलैंड और भारत के समुद्र तटीय प्रदेश अपनी आजीविका के लिए समु्दर पर ही निर्भर हैं। करीब 80 प्रतिशत अंतरराष्ट्रीय व्यापार समुद्री मार्ग से ही होता है।

समुद्र पृथ्वी पर होने वाली वर्षा का स्रोत है। समुद्र के जल से ही वाष्प बनती है जिससे पृथ्वी पर वर्षा होती है। इस प्रकार समुद्र पृथ्वी पर जीवन का आधार है। समुद्र के जल में बढ़ता प्रदूषण पृथ्वी और मानवता के अस्तित्व के लिए गम्भीर खतरा है। प्लास्टिक वेस्ट को समुद्र में जाने से रोक कर ही हम समुद्र और पृथ्वी के अस्तित्व को बनाए रख सकते हैं। विश्व महासागर दिवस पर हम सब समुद्र के जल को प्लास्टिक वेस्ट से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने का संकल्प लें जिससे समुद्र और हमारी धरा का अस्तित्व सुरक्षित रह सके।

सुरेश बाबू मिश्रा

(सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य)

 

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