कोविड-19 (कोरोना वायरस) संक्रमण की दूसरी लहर के चलते लागू किए गए लॉकडाउन ने अधिकतर लोगों को घर में ही रहने पर बाध्य कर दिया है। इससे जहां लोग घर में ही बना पौष्टिक भोजन कर रहे हैं, वहीं बाजार के अशुद्ध खानपान से भी बचे हुए हैं। संयुक्त परिवारों की तरह परिवार के सभी सदस्य महिलाओं का हाथ बंटाकर भोजन के मामले में “आत्मनिर्भर” बनने में कुछ सहयोग करें तो घर में ही कम खर्च में शुद्ध और पौष्टिक खाद्य पदार्थ तैयार किए जा सकते हैं। इन्हें घर में ही उपलब्ध सामग्री से तैयार किया जा सकता है। टमाटर के विभिन्न उत्पाद, आलू के चिप्स, पापड़, कचरी, चना-परवल की नमकीन, मिठाई, शीतल पेय, आटे-मेवे के लड्डू, मेवे वाली नमकीन, गुड़पारे, शक्करपारे, आटे की मठरी आदि कुछ ऐसे ही पौष्टिक खाद्य पदार्थ हैं जिन्हें आसानी से घर में ही तैयार किया जा सकता है।
बाजार में आजकल सीजन की सब्जियों टमाटर, आलू आदि की भरमार है। ऐसे में मौका है अपनी पाक कला को धार देने और परिवार के स्वास्थ्य का ख्याल रखने का। स्कूल-कालेज बंद हैं तो बच्चे घर पर ही हैं। ऐसे में आप उन्हें अपने साथ बैठाकर स्टोर किए जा सकने योग्य और ताजा इस्तेमाल किए जाने वाले तरह-तरह के खाद्य पदार्थ तैयार करिए। इससे आपके रुपयों और स्वास्थ्य दोनों की रक्षा होगी, बच्चों को भी अपनी पारंपरिक पाककला का ज्ञान होगा।
इन्हें तैयार करना कोई कठिन कार्य है भी नहीं। आखिरकार इस बार दीपावली और होली पर तमाम परिवारों ने बाजार से खाद्य पदार्थ खरीदने के बजाय घर में ही ना-ना प्रकार के व्यंजन तैयार कर सेहत के प्रति अपनी जागरूकता का परिचय दिया था। अगर आप और हम भी थोड़ा जागरूक होकर ऐसे मिलावटी सामान से दूरी बनाना शुरू कर दें तो पैसे भी बचेंगे और स्वास्थ्य भी बना रहेगा। साथ ही जब बाजार में खरीदार नहीं मिलेंगे तो मिलावटखोरों के लिए यह मजबूरी हो जाएगी कि वे या तो सुधर जाएं या फिऱ अपना बिस्तर बांध लें। चीन के बने सामान के मामले में हम ऐसा देख भी चुके हैं। पिछले करीब एक साल में लोगों ने चीन के सामान से दूरी बनाई तो इन्हें बेचने वालों ने भी इनके कारोबार से तौबा कर ली। नतीजा यह हुआ कि अब बाजार में चीन के बने उत्पाद कम ही नजर आते हैं।
त्योहारों पर तो मिलावटखोरी रोकने के लिए छापेमारी होती ही है, आजकल विभिन्न अस्पतालों में में कोविड मरीजो से अधिक धनराशि की वसूली की शिकायत पर, जीवन रक्षक दवाओ और ऑक्सीजन की जमाखोरी करने वालों, नकली दवा और उपकरण बेचने वालों पर भी निरंतर छापे पड़ रहे हैं। हालांकि परिणाम कब आएगा, अभी पता नहीं है। बरेली में नगर निगम पार्षद गौरव सक्सेना ने कुछ अस्पतालों से अधिक बसूली गई धनराशि वापस भी कराई। राजेंद्र नगर में पार्षद सतीश कातिब अपने साथियों कुकी अरोरा आदि के साथ जिला प्रशासन के सहयोग से कोरोना की निःशुल्क जांच भी करा रहे है। कई संगठन कोविड से संक्रमित मरीजो को नाममात्र शुल्क पर या निशुल्क दोनों समय भोजन उपलब्ध करा रहे हैं। ऑक्सीजन लंगर भी चला रहे है। बाजारबंदी से मिलावटी दूध बेचने वालों का धंधा भी चौपट हो गया है। मिलावटी का खाद्य सामग्री बेचने वाले भी अब परेशान या डरे-डरे दिखते हैं। उनका यह डर समाज के लिए अच्छा है। लोग जागरूक हुए हैं तो उन्हें अपने गलत काम याद आने लगे हैं।
उदाहरण के लिए लॉकडाउन के कारण मिठाइयों की दुकानें बंद हैं। होटल-रेस्टोरेंट और चाय के खोखे भी बंद हैं। ऐसे में सहज ही सवाल उठता है कि बाजार में रोजाना खपने वाला हजारों-लाखों लीटर दूध कहां जा रहा है। दूसरी ओर आपने अभी तक किसी डेयरी वाले को यह कहते नहीं सुना होगा कि उसे नुकसान हो रहा है। जाहिर है कि बाजार में मिलने वाले दूध में भारी गोलमाल है और रोजाना हजारों-लाखों लीटर मिलावटी दूध बाजार में खपाया जाता है। मांग-उत्पादन और मिलावटखोरी के इस गणित से आप भी सबक लीजिए और शुद्धता पर जोर दीजिए।
निर्भय सक्सेना
(वरिष्ठ पत्रकार)
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