इस समय पूरा देश एक कठिन दौर से गुजर रहा है। कोरोना महामारी के कारण नित नई-नई कठिनाइयां, नई-नई चुनौतियां हमारे सामने उत्पन्न हो रही हैं। पहले देश ने लगभग एक साल तक कोरोना की पहली लहर को झेला। हम समझ रहे थे कि हमने जंग जीत ली है मगर तभी कोरोना की दूसरी लहर ने हमारे जीवन के ताने-बाने को अस्त-व्यस्त कर दिया। दूसरी लहर में संक्रमण की गति इतनी प्रचण्ड थी कि इसने सरकारों को संभलने का मौका ही नहीं दिया। अभी देश दूसरी लहर से उबरने के प्रयास में लगा हुआ है तो स्वास्थ्य विशेषज्ञ तीसरी लहर की आशंका व्यक्त कर रहे हैं। इसी बीच कोरोना महामारी से जंग जीत चुके लोगों के लिए ब्लैक फंगस एक नई मुसीबत बनकर आया है। ऐसे में हर व्यक्ति तनाव में है। यह तनाव या स्ट्रेस हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) को कम कर रहा है जिससे लोग लगातार संक्रमण का शिकार हो रहे हैं। यह स्थिति बहुत ही चिंताजनक है।
मन को संयत और तनाव मुक्त रखने का सबसे अच्छा साधन है साहित्य। साहित्य पढ़ने से मन में सकारात्मक विचार आते हैं। सकारात्मक विचार हमारे शरीर में सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करते हैं जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है जो संक्रमण से हमारा बचाव कर सकती है।
तुलसीकृत रामचरित मानस में एक बहुत ही प्रेरणादायक प्रसंग है। जब भरत को राम के वनगमन और अपने पिता दशरथ के असमय निधन का समाचार मिलता है तो वे बहुत दुखी और व्याकुल हो जाते हैं और विलाप करने लगते हैं। मुनि वशिष्ठ भरत को समझाते हुए कहते हैं-
“सुनउ भरत भावी प्रबल बिलखि कहेउ मुनिनाथ।
हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हाथ।“
इस दोहे की बड़ी सुन्दर विवेचना करते हुए तुलसी दास कहते हैं कि हम विधि के विधान को टाल तो नहीं सकते हैं मगर डटकर परिरिस्थतियों का सामना तो कर सकते हैं। इसलिए परिस्थितियां कितनी भी जटिल हों हमें धैर्य नहीं खोना चाहिए और मन को व्याकुल नहीं करना चाहिए।
प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानन्दन पंत की कविता सुख-दुख की पंक्तियां देखिए-
“मैं नहीं चाहता चिर सुख, मैं नहीं चाहता चिर दुख।
सुख-दुख की खेल मिचैनी, खोले जीवन अपना मुख।“
छायावाद के प्रमुख स्तम्भ जयशंकर प्रसाद कहते हैं-
“दुख की पिछली रजनी बीत,
निकलता सुख का नवल प्रभात।“
साहित्य ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है। इसलिए आपदा के इस कठिन दौर में मन को प्रसन्न और भयमुक्त रखने के लिए अच्छा साहित्य पढ़ें। जो लोग साहित्य की रचना करने में सक्षम हैं वे अच्छी और प्रेरणादायी रचनाएं समाज तक पहुंचाएं।
सुरेश बाबू मिश्रा
(लेखक साहित्य भूषण से सम्मानित वरिष्ठ साहित्यकार हैं)