बलिदान दिवस 27 मई पर विशेष

वलदार हंगपन दादा का जन्म 2 अक्टूबर 1979 को अरुणांचल प्रदेश के बोदुरिया गांव में हुआ था। वे भारतीय सेना के एक जवान थे जो 27 मई 2016 को उत्तरी कश्मीर के शमसाबाड़ी में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में शहीद हो गए। वीरगति प्राप्त करने से पूर्व उन्होंने 4 हथियारबंद आतंकवादियों को मौत के घाट उतार दिया। इस शौर्य के लिए उन्हें 26 जनवरी 2017 को मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया। अशोक चक्र शांतिकाल में दिया जाने वाला देश का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है।

26 जनवरी 2017 को गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में नई दिल्ली के राजपथ पर आयोजित समारोह में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से अशोक चक्र प्राप्त करतीं शहीद हंगपन दादा की पत्नी।

हंगपन दादा 1997 में भारतीय थलसेना की असम रेजीमेंट में शामिल हुए थे। बाद में उन्हें 35 राष्ट्रीय राइफल्स में तैनात किया गया। 26 मई 2016 को जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के नौगाम सेक्टर में सैन्य ठिकानों का आपसी संपर्क टूट गया था। इस दौरान हवलदार हंगपन दादा की टीम को भाग रहे आतंकवादियों का पीछा करने और उन्हें पकड़ने का जिम्मा सौंपा गया। उनकी टीम एलओसी के पास शामशाबारी पहाड़ी पर करीब 13000 की फीट की ऊंचाई वाले बर्फीले इलाके में तेजी से आगे बढ़ी और आतंकवादियों के बच निकलने का रास्ता रोक दिया। इसी बीच आतंकवादियों ने फायरिंग शुरू कर दी। मुठभेड़ लंबी खिंचती जा रही था। आतंकवादियों की तरफ से हो रही भारी फायरिंग की वजह से सैन्य टुकड़ी आगे नहीं बढ़ पा रही थी। तब हंगपन दादा जमीन पर पेट के बल सरकते हुए और पत्थरों की आड़ में छुपते-छुपाते अकेले आतंकियों के काफी करीब पहुंच गए और दो आतंकवादियों को मार गिराया। इस गोलीबारी में वे बुरी तरह जख्मी हो गए। तीसरा आतंकवादी बच निकला और भागने लगा। दादा ने जख्मी होने के बाद भी उसका पीछा किया और उसे पकड़ लिया। इस दौरान दादा की इस आतंकवादी के साथ हाथापाई भी हुई लेकिन उन्होंने उसे भी मार गिराया। इस मुठभेड़ में चौथा आतंकी भी मार गिराया गया। लेकिन, गंभीर रूप से घायल दादा को बचाया नहीं जा सका और 7 मई को उन्होंने प्राण त्याग दिए।

नवंबर 2016 में शिलांग के असम रेजीमेंटल सेंटर (एआरसी) में प्लेटिनियम जुबली सेरेमनी के दौरान एक एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक का नाम हंगपन दादा के नाम पर रखा गया।

 सुरेश बाबू मिश्रा

(सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य)

 
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