भारत में संत, महात्माओं की छवि मुख्यतः धर्मोपदेशक की है; पर कुछ संत पर्यावरण संरक्षण, सड़क-विद्यालय निर्माण आदि द्वारा नर सेवा को ही नारायण सेवा मानते हैं। ऐसे ही एक संत हैं बलबीर सिंह सींचेवाल, जिन्होंने सिख पंथ के प्रथम गुरु श्री नानकदेव के स्पर्श से पावन हुई ‘काली बेई’ नदी को को शुद्ध कर दिखाया। यह नदी होशियारपुर जिले के धनोआ गांव से निकलकर हरीकेपत्तन में रावी और व्यास नदी में विलीन होती है।
संत बलबीर सिंह का जन्म 2 फ़रवरी 1962 को ग्राम सींचेवाल में हुआ था। एक बार भ्रमण के दौरान उन्होंने सुल्तानपुर लोधी (जिला कपूरथला) गांव के निकट बहती काली बेई नदी को देखा। वह इतनी प्रदूषित हो चुकी थी कि स्नान और आचमन करना तो दूर, उसे छूने से भी डर लगता था। दुर्गंध के कारण उसके निकट जाना भी कठिन था। 162 किलोमीटर लम्बी नदी में निकटवर्ती 35 शहरों का मल-मूत्र एवं गंदगी गिरती थी। नदी के आसपास की जमीनों को भ्रष्ट पटवारियों ने बेच दिया था या फिर उन पर अवैध कब्जे हो चुके थे। लोगों का ध्यान इस पवित्र नदी की स्वच्छता की ओर बिल्कुल नहीं था।
ऐसे में संकल्प के धनी संत बलबीर सिंह ने कारसेवा के माध्यम से इस नदी को शुद्ध करने का बीड़ा उठाया। उनके साथ 20-22 युवक भी आ जुटे। 16 जुलाई 2001 ई. को उन्होंने वाहे गुरु को स्मरण कर गुरुद्वारा बेर साहिब के प्राचीन घाट पर अपने साथियों के साथ नदी में प्रवेश किया; पर यह काम इतना आसान नहीं था। स्थानीय माफिया, राजनेताओं, शासन ही नहीं, गुरुद्वारा समिति वालों ने भी इसमें व्यवधान डालने का प्रयास किया। उन्हें लगा कि इस प्रकार तो उनकी चौधराहट ही समाप्त हो जाएगी। कुछ लोगों ने उन कारसेवकों से सफाई के उपकरण छीन लिये।
पर संत सींचेवाल ने धैर्य नहीं खोया। उनकी छवि क्षेत्र में बहुत उज्ज्वल थी। वे इससे पहले भी कई विद्यालय और सड़क बनवा चुके थे। उन्हें न राजनीति करनी थी और न ही किसी संस्था पर अधिकार। अतः उन्होंने जब प्रेम से लोगों को समझाया, तो बात बन गयी और फिर तो कारसेवा में सैकड़ों हाथ जुट गये। उन्होंने गंदगी को शुद्ध कर खेतों में डलवाया, इससे खेतों को उत्तम खाद मिलने लगी और फसल भी अच्छी होने लगी। सबमर्सिबल पम्पों द्वारा भूमि से पानी निकालने की गति जब कम हुई, तो नदी का जल स्तर भी बढ़ने लगा। जब समाचारपत्रों में इसकी चर्चा हुई, तो हजारों लोग इस पुण्य कार्य में योगदान देने लगे। उनके संकल्प और मेहनत ने एक नदी को गंदे नाले से इठलाती, इतराती और बल खाती नदी में बदल दिया।
संत सींचेवाल ने न केवल नदी को शुद्ध किया, बल्कि उसके पास के 160 किमी लम्बे मार्ग का भी निर्माण कराया। किनारों पर फलदार पेड़ और सुंदर सुगंधित फूलों के बाग लगवाये। पुराने घाटों की मरम्मत कराई और नये घाट बनवाए। नदी में नौकायन का प्रबंध कराया, जिससे लोगों का आवागमन उस ओर खूब होने लगा। इससे उनकी प्रसिद्धि चहुं ओर फैल गयी।
होते-होते यह प्रसिद्धि तत्कालीन राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम तक पहुंची। वे एक वैज्ञानिक होने के साथ ही पर्यावरण प्रेमी भी थे। 17 अगस्त 2006 को वे स्वयं इस प्रकल्प को देखने आये। उन्होंने देखा कि यदि एक व्यक्ति ही सत्संकल्प से काम करे, तो वह असम्भव को सम्भव कर सकता है। संत जी को पर्यावरण के क्षेत्र में अनेक राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय सम्मान मिले हैं। भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया है जबकि टाईम पत्रिका ने उन्हें दुनिया के 30 पर्यावरण नायकों (30 environmental heroes of the world) में शामिल किया है; पर वे विनम्र भाव से इसे गुरु कृपा का प्रसाद ही मानते हैं।
सुरेश बाबू मिश्रा
(सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य)