Opinion

भारत छोड़ो आंदोलन के अमर सेनानी काशीनाथ पगधरे एवं गोविंद ठाकुर

  • बलिदान दिवस 9 अगस्त पर विशेष

नौ अगस्त1942 का भारत के स्वाधीनता संग्राम में विशेष महत्व है।  इस समय तक अधिकतर क्रांतिकारी फांसी पाकर अपना जीवन धन्य कर चुके थे। हजारों क्रांतिवीर जेल में अपना यौवन गला रहे थे। ऐसे में गांधी जी के नेतृत्व में कांग्रेस के मंच से लोग स्वाधीनता के लिए संघर्ष कर रहे थे।

गांधी जी अंहिसा प्रेमी थे। उन्होंने सत्याग्रह को अपने संघर्ष का प्रमुख शस्त्र बनाया था। इससे पूर्व वे कई बार विभिन्न नामों से आंदोलन चला चुके थे। हर आंदोलन से लक्ष्य कुछ निकट तो आता था; पर पूर्ण स्वाधीनता अभी दूर थी। ऐसे में गांधी जी ने ‘करो या मरो’ का नारा देकर नौ अगस्त  1942 से ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ आंदोलन की घोषणा कर दी।

अंग्रेज शासन ने नौ अगस्त तथा उससे पूर्व ही गांधी जी व कांग्रेस के अन्य प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। उन्हें लगता था कि इससे लोग नेतृत्वविहीन होकर घर बैठ जाएंगे और आंदोलन की मृत्यु हो जाएगी; पर हुआ इसका उल्टा। प्रायः सभी स्थानों पर सामान्य नागरिकों और युवाओं ने आगे बढ़कर इस आंदोलन की कमान अपने हाथ में ले ली।

जैसे ही गांधी जी की गिरफ्तारी का समाचार फैला, लोग सड़कों पर उतर आये। अनेक स्थानों पर पुलिस ने गोली चलाई, जिसमें कई लोग बलिदान हुए। महाराष्ट्र में काशीनाथ पगधरे और गोविंद ठाकुर ऐसे ही दो युवक थे, जिन्होंने अपनी प्राणाहुति देकर इस आग को और अधिक तीव्रता प्रदान की।

काशीनाथ और गोविंद का जन्म 1925 में महाराष्ट्र के क्रमशः सतपती एवं पालघर के पास के गांवों में हुआ था। नौ अगस्त को इस क्षेत्र में भी भारी तनाव उत्पन्न हो गया। पुलिस ने विद्रोह को दबाने के लिए चिनचिनी हाईस्कूल में छात्रों पर गोली चला दी। इस समाचार के फैलते ही छात्रों के अभिभावक और आम नागरिक पालघर तहसील केन्द्र पर एकत्र होने लगे।

यह देखकर अंग्रेज अधिकारी बौखला गये। उन्होंने आंदोलन को निर्ममता से कुचलने का आदेश दे दिया; पर वे जितना दमन करते, लोग उतने अधिक उत्साहित हो उठते। छात्रों और युवकों का एक जुलूस नंदगांव से पालघर की ओर बढ़ने लगा। इसका नेतृत्व गोविंद ठाकुर कर रहे थे। दूसरा जुलूस काशीनाथ पगधरे के नेतृत्व में सतपती से चला। ऐसे ही निकटवर्ती सभी गांवों से लोग पालघर की ओर बढ़ने लगे। धीरे-धीरे पालघर में काफी लोग एकत्र हो गये। लोग उत्साह में ‘भारत माता की जय’ के नारे लगा रहे थे।

शासन ने यह देखकर पालघर के तहसील कार्यालय पर सुरक्षा के लिए भारी पुलिस तैनात कर दी। यह देखकर एक बार जनता के कदम ठिठक गये; पर तभी काशीनाथ ने जोर से ‘वन्दे मातरम्’ और ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ की हुंकार भरी। इससे जनता फिर उत्साहित हो उठी और पुलिस का घेरा तोड़कर तहसील कार्यालय पर कब्जा करने के लिए आगे बढ़ने लगी। बाजी को हाथ से निकलता देख पुलिस अधिकारी ने गोली चलाने का आदेश दे दिया; लेकिन लोग फिर भी आगे बढ़ते रहे। अचानक एक गोली ने इस जुलूस के नेता काशीनाथ पगधरे का सीना चीर दिया। उसने तत्काल प्राण त्याग दिये। अन्य सैकड़ों लोग भी घायल हुए। इनमें से एक गोविंद ठाकुर भी था, जिन्होंने अस्पताल में जाकर अपने प्राण छोड़े।

इन युवकों के बलिदान से आंदोलन और अधिक तीव्र हो गया, जिसके परिणामस्वरूप हम 15 अगस्त 1947 का शुभ दिन देख सके। देश की स्वतंत्रता की जंग में इन दोनों नवयुवकों का बलिदान सदेव अमर रहेगा।

सुरेश बाबू मिश्र

(सेवानिवृत प्रधानाचार्य)

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