Opinion

जमीन पर खड़े होते विमानों का फसाना

पंकज  गंगवार

विजय माल्या को लेकर राजनीतिक दलों ने बखूबी अपनी रोटियां सेंकीं, जनता ने भी खूब कोसा कि आखिर हमारा पैसा लेकर भाग गया। कुल मिलाकर ऐसा लग रहा था कि विजय माल्या ने 8000 करोड़ रुपये बैंकों से लिये और खूब मौज-मस्ती, अय्याशी की और अब इस रकम को वापस नहीं कर रहे हैं। इसके उलट सच्चाई यह है कि घाटे में जा रही अपनी किंगफिशर एयरलाइंस को उबारने के लिए उन्होंने कर्ज लिया पर इसमें सफल नहीं हो सके और कंपनी लगातार घाटा देती रही, आगे और कर्ज मिलना भी बंद हो गया। इस कारण एयरलाइंस भी बंद हो गई। ऐसे में बैंकों से कर्ज के रूप में लिये गए 8000 करोड रुपये डूब गए। सरकार ने उन पर बैंकों से लिया गया कर्ज चुकाने के लिए दबाब बनाया। माल्या को लगा कि सरकार कहीं उन्हें गिरफ्तार न कर ले, इस कारण वह देश छोड़कर चले गए।

अब भारत की निजी क्षेत्र की एक और बड़ी एयरलाइंस जेट एयरवेज भी बंद हो गई है। पूर्व में सहारा,  डेक्कन जैसी कई एयरलाइंस बंद हो चुकी हैं, एयर इंडिया को भी सरकार ने 35 हजार करोड़ रुपये देकर बचा रखा है, अन्यथा वह भी न  जाने कब बंद हो चुकी होती। ऐसे में जिम्मेदार कौन, विजय माल्या या सरकारी नीतियां?

विमानन कंपनियों के लड़खड़ाने के लिए कई कारक जिम्मेदार

भारत दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता हवाई यातायात बाजार है। इसके बावजूद तकरीबन सभी एविएशन कंपनियां घाटे में जा रही हैं या फिर मुनाफा नहीं कमा पा रही हैं। सरकार को सोचना होगा कि आखिर वे कौन से कारण हैं जिनके चलते भारत में एयरलाइंस टिक नहीं पा रही हैं। सरकार ने विमानों के ईंधन पर भारी टैक्स लगा रखा है। किसी भी विमानन कंपनी के संचालन में सबसे बड़ा हिस्सा विमानों के ईंधन का होता है। यही कारण है कि भारत की कई विमानन कंपनियों के विमान जब अंतरराष्ट्रीय उड़ान पर जाते हैं तो वहीं से ईंधन भरवाकर लौटते हैं। लेकिन, वे एविएशन कंपनियां क्या करें जो केवल घरेलू उड़ानें संचालित करती हैं? विमानन कंपनियों को महंगे ईंधन का खर्च उठाने के साथ ही कई तरह के टैक्स भी चुकाने होते हैं। यात्री सुविधाओं के अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन करने पर भी कमाई का एक बड़ा हिस्सा खर्च हो जाता है जबकि आम भारतीय विमान यात्रियों की जेब को देखते हुए कम-से-कम दाम पर हवाई जहाज का टिकट उपलब्ध कराने का दबाव अलग से होता है। इन्हीं सब कारणों के चलते भारत में एयरलाइंस का संचालन घाटे का सौदा होता जा रहा है।

हालात नहीं सुधरे तो होंगे दूरगामी परिणाम

भारत में लंबी दूरी के यातायात के लिए ट्रेनों का ही सहारा है लेकिन ट्रेनों में जगह मिल पाना बहुत मुश्किल हो गया है और ट्रेन समय से पहुंचने के मामले में विश्वसनीय भी नहीं हैं जबकि आज के समय में हर कोई जल्दी पहुंचना चाहता है। ऐसे में हवाई यातायात एक अच्छा विकल्प साबित हो रहा है। पिछले कुछ वर्षों में आम लोग भी हवाई यात्रा को अपनाने लगे हैं। हालांकि इसमें रुपये ज्यादा लगते हैं पर बेशकीमती समय बचता है। लेकिन, यदि इसी तरह एक के बाद एक एयरलाइंस बंद होती रहीं तो हवाई यातायात एक बार फिर आम आदमी से दूर होता चला जाएगा। लोगों का व्यापार और रोजगार के लिए आना-जाना मुश्किल हो जाएगा। इसका सीधा असर देश के विकास पर पड़ेगा।

                           -लेखक न्यूट्रीकेयर बायो साइंस प्राइवेट लिमिटेड

                            के संस्थापक एवं अध्यक्ष हैं।

gajendra tripathi

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